लोकसभा चुनावों में ब्राह्मण, विस चुनावों में पिछड़े वर्ग का अध्यक्ष बनाती है UP भाजपा

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अजय कुमार । Jul 17 2019 2:25PM

अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही स्वतंत्र देव की पहली परीक्षा 12 विधान सभा सीटों के लिए होने वाले उप-चुनाव में होगी। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के बाद स्वतंत्र देव पिछड़े वर्ग के दूसरे ऐसा नेता हैं जिसे भाजपा ने पिछड़ों को लुभाने के लिए आगे किया है।

उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय के मोदी सरकार में शामिल होने के बाद भाजपा आलाकमान की प्रदेश संगठन को लीड करने के लिऐ नये अध्यक्ष की तलाश की तलाश स्वतंत्र देव सिंह के रूप में पूरी हो गई है। वैसे भी स्वतंत्र देव के अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलें सबसे अधिक लग रही थीं। पिछड़ा समाज से आने वाले स्वतंत्र देव भले ही इस समय योगी सरकार में परिवहन मंत्री हों, लेकिन उनके पास संगठन का अच्छा-खासा तर्जुबा है। आरएसएस से भी उनकी नजदीकियां हैं। अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही स्वतंत्र देव की पहली परीक्षा 12 विधान सभा सीटों के लिए होने वाले उप-चुनाव में होगी। इसके अलावा संगठनात्मक ढांचे को भी मजबूत करना होगा। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के बाद स्वतंत्र देव पिछड़े वर्ग के दूसरे ऐसा नेता हैं जिसे भाजपा ने पिछड़ों को लुभाने के लिए आगे किया है।

दरअसल भाजपा में एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत लागू है, लिहाजा कैबिनेट मंत्री की शपथ लेने के बाद महेंद्र नाथ पांडेय का अध्यक्ष पद से इस्तीफा तय था। महेंद्र नाथ पांडेय ब्राह्मण नेता हैं। इसलिए माना यही जा रहा था कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर किसी ब्राह्मण नेता की ही ताजपोशी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसी पिछड़े वर्ग के नेता को मौका मिलेगा। भाजपा आलाकमान की इस सोच में स्वतंत्र देव बिल्कुल फिट बैठे।

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हाँ, चर्चा यह भी थी कि पश्चिम यूपी में जातिगत समीकरण और अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने के लिए भाजपा पश्चिम के किसी चेहरे को मौका दे सकती है। कहा जा रहा था कि यूपी में जिस तरह से पार्टी आलाकमान ने पूर्वांचल के नेताओं को तरजीह दी है उसकी वजह से पश्चिमी यूपी अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है। इसके अलावा पश्चिम यूपी में भाजपा को गठबंधन के हाथों सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, अमरोहा और संभल जैसी सीट गंवानी पड़ी थी, जिसकी वजह से भी शीर्ष नेतृत्व पश्चिमी यूपी में नए सिरे से मेहनत कर रहा था, लेकिन कमान फिर से मूल रूप से मिर्जापुर के रहने वाले स्वतंत्र देव सिंह के हाथ आई।

खैर, स्वतंत्र देव सिंह के अलावा अध्यक्ष पद के लिए जो नाम सबसे अधिक चर्चा में था, वह भाजपा के दिग्गज ब्राह्मण नेता डॉ. महेश शर्मा थे। शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं और इस बार उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी। इसके अलावा गाजीपुर से चुनाव हारने वाले मनोज सिन्हा के बारे में भी कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें भी संगठन की जिम्मेदारी मिल सकती है। भले ही सिन्हा चुनाव हार जाने के कारण मंत्री नहीं बन पाए हों, लेकिन उनकी साफ-सुथरी छवि हमेशा मोदी को प्रभावित करती रही है।

अंत में स्वतंत्र देव का नाम सामने आया। अब स्वतंत्र देव की अगुवाई में भाजपा 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ेगी। स्वतंत्र देव को भाजपा पिछड़ा ट्रम्प कार्ड के रूप में इस्तेमाल करेगी। स्वतंत्र देव सिंह को यूपी के कुर्मी नेताओं में प्रमुख माना जाता है। देव को संगठन का काम करने का अच्छा अनुभव है। छात्र राजनीति से सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले स्वतंत्र देव सिंह लंबे वक्त तक विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे हैं। 90 के दशक में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री बनाए गए थे। इसके बाद उन्होंने भाजपा युवा मोर्चा के साथ कानपुर और बुंदेलखंड के हिस्सों में काम किया।

वह 1996 में युवा मोर्चा के महामंत्री और फिर 2001 में युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने। इसके बाद स्वतंत्र देव सिंह को एमएलसी बनाया गया और फिर संगठन के अलग-अलग पदों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। 2014 में यूपी लोकसभा चुनाव के दौरान स्वतंत्र देव सिंह यूपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में प्रमुख रणनीतिकार के तौर पर काम करते रहे। स्वतंत्र देव को मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है।

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2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले स्वतंत्र देव को कमान सौंपकर पार्टी ने अपना 2017 का फार्मूला दोहराया है। भाजपा ने पिछला विधानसभा चुनाव पिछड़ी जाति के केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई में ही लड़ा था और भारी सफलता हासिल की थी। अबकी से स्वतंत्र देव भी इस मुहिम का हिस्सा रहेंगे तो भाजपा को और अधिक पिछड़ों का समर्थन मिल सकता है। पूर्वांचल के मिर्जापुर के मूल निवासी स्वतंत्र देव की कर्मभूमि बुंदेलखंड रही है। स्वतंत्र पिछड़े वर्ग में कुर्मी समाज से आते हैं। प्रदेश में इस बिरादरी के भाजपा के छह सांसद और 26 विधायक हैं। स्वतंत्र की ताजपोशी ऐसे समय हुई है जब सहयोगी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री न बनाये जाने से नाराज चल रही हैं। जातीय समीकरण को मजबूत करने में स्वतंत्र देव बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी सहायक साबित हुए थे।

जहां तक पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्षों की जातिवार नुमांइदगी की बात है तो प्रदेश में छह बार ब्राह्मण नेता माधव प्रसाद त्रिपाठी, कलराज मिश्र (दो बार), केशरी नाथ त्रिपाठी, रमापति राम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत वाजपेयी और महेन्द्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी प्रकार एक बार ठाकुर नेता राजनाथ सिंह, एक बार वैश्य नेता राजेन्द्र कुमार गुप्ता, एक भूमिहार सूर्य प्रताप शाही, चार बार पिछड़े वर्ग के नेता कल्याण सिंह, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार और केशव मौर्या का नाम इस सूची में शामिल हैं। पार्टी ने अभी तक किसी मुस्लिम या दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान नहीं सौंपी है। भाजपा में किसी मुस्लिम नेता के प्रदेश अध्यक्ष बनने की फिलहाल कल्पना नहीं की जा सकती है। हाँ, मोदी जी जिस तरह से मुसलमानों को लुभाने में लगे हैं, उससे इस संभावना को सिरे से भी खारिज नहीं किया जा सकता है। 

बहरहाल, अबकी से किसी दलित नेता के प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावनाओं में भी काफी दम दिखाई दे रहा था। यूपी में पिछड़ों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में सफल नजर आ रही भाजपा लम्बे समय से मायावती के दलित वोट बैंक को भी हथियाने के फिराक में है। ऐसे में किसी दलित नेता का यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनना भाजपा के लिए फायदे का सौदा हो सकता था। मगर समस्या यह थी कि अभी तक भाजपा में कोई दमदार दलित नेता उभर कर सामने नहीं आ सका है, जो प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभाल कर और सबको साथ लेकर चलने की कूवत रखता हो।

-अजय कुमार

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