भाजपा बात तो ''सबका साथ'' की करती है लेकिन मुस्लिमों को टिकट नहीं देती

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सबका साथ, सबका विकास का दावा करने का भारतीय जनता पार्टी का दावा खोखला साबित हो गया। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम प्रत्याशियों को दरकिनार करके भाजपा अपने असली रूप में सामने आ गई है।

सबका साथ, सबका विकास का दावा करने का भारतीय जनता पार्टी का दावा खोखला साबित हो गया। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम प्रत्याशियों को दरकिनार करके भाजपा अपने असली रूप में सामने आ गई है। दिखावे को भले ही भाजपा सबको साथ लेकर चलने की नीति पर चल रही हो, किन्तु सच्चाई यही है कि देश के अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति उसका दृष्टिकोण बिल्कुल जुदा है। भाजपा इस वर्ग को किसी तरह पचा नहीं पा रही है। यही वजह है कि पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मुस्लिम प्रत्याशियों को पूरी तरह से दरकिनार करके टिकट बांटे हैं।

राजस्थान में 200 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार टोंक विधानसभा क्षेत्र से उतारा है। टोंक से भाजपा प्रत्याशी और काबीना मंत्री युनूस खान को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खास सिपहसालार माना जाता है। भाजपा हिन्दुत्व कार्ड के चलते राजस्थान से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देने के पक्ष में नहीं थी। खान को लेकर कई दिनों तक गहमागहमी चलती रही। आखिरकार वसुंधरा राजे के भारी दबाव के चलते पार्टी बड़ी मुश्किल से इकलौते मुस्लिम को अपना उम्मीदवार बनाने पर पार्टी राजी हो गई। खान का मुकाबला इस सीट पर कांग्रेस के युवा नेता और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट से होगा।

राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार के तौर पर फातिमा रसूल सिद्दीकी को टिकट दिया है। फातिमा को भोपाल उत्तर से प्रत्याशी घोषित किया गया है। इन दोनों प्रदेशों में भाजपा ने फिर भी एक चेहरा चुना लिया किन्तु छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने अल्पसंख्यकों से पूरी तरह दूरी बनाए रखी। इस प्रदेश में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है। कमोबेश यही नजरिया तेलंगाना में देखने को मिला। इस राज्य में भाजपा ने एक मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है। हैदराबाद की चंद्रयानगुट्टा सीट से सैयद शहजादी को उम्मीदवार घोषित किया गया है।

ऐसा नहीं है कि भाजपा का हिन्दुत्व कार्ड विचारधारा का प्रबल प्रतीक हो। मिजोरम में भाजपा ने कुल 40 सीटों में 39 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। सत्ता की खातिर ईसाई बाहुल्य मिजोरम में भाजपा हिन्दुत्व कार्ड पर कायम नहीं रह सकी। करीब 87 प्रतिशत ईसाई आबादी वाले इस प्रदेश में भाजपा के ज्यादातर प्रत्याशी ईसाई ही हैं। यहां भाजपा सत्ता की खातिर पलटी खा गई। सत्ता के लिए भाजपा की ईसाई उम्मीदवारों को टिकट देना मजबूरी हो गई। हालांकि भाजपा बार−बार यही दावा करती रही कि टिकटों के वितरण में जिताऊ दावेदारों का ध्यान रखा गया है। इन पांच राज्यों की अल्पसख्ंयक आबादी में भाजपा को एक भी जीतने लायक चेहरा नहीं मिला। भाजपा का यह दावा इसलिए भी उल्टा पड़ता है कि इन चुनावी राज्यों में कांग्रेस ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को प्रत्याशी बनाया है।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों के 25 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी। इसके विपरीत भाजपा को चुनावी प्रक्रिया से गुजर रहे तीन राज्यों में से केवल दो ही मुस्लिम प्रत्याशी जीतने लायक लगे। केंद्र और राज्यों में सत्ता में होने के कारण भाजपा की संवैधानिक मजबूरी हो गई है कि खुलकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ बोल नहीं सकती। लेकिन मौजूदा राजनीति से भाजपा के इरादे जाहिर हो चुके हैं। पार्टी में अब मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है। भाजपा किसी भी सूरत में सत्ता में हिस्सेदारी मुस्लिमों से बांटने के खिलाफ है। भाजपा को ध्रुवीकरण की इस राजनीति का मार्ग मिला था, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से।

हिन्दुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर योगी आदित्यानाथ को आगे रखकर भाजपा ने बगैर मुस्लिमों के चुनाव लड़ा। इस प्रदेश से भाजपा ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं देकर भविष्य की राजनीति के स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि पार्टी में मुस्लिमों के कोई जगह नहीं है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत हासिल करने से भाजपा के हौसले बुलंद हो गए। अब इसी की पुनरावृत्ति अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में की जा रही है। इस दौरान भाजपा ने ध्रुवीकरण के जितने भी प्रयास हो सकते थे, उनमें कसर बाकी नहीं रखी। तीन तलाक का मुद्दा हो या सबरीमाला मंदिर का मामला। इन दोनों मुद्दे के बाद योजनाबद्ध तरीके से राममंदिर मुद्दा फिर से उठाया गया।

सत्ता में आने के बावजूद मंदिर बनाने में नाकामयाब रही भाजपा का यह स्थायी चुनावी मुद्दा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद भाजपा ने मंदिर मुद्दे के तौर पर तुरूप की चाल चली है। चुनावों में इसे उछाल कर आरक्षण के मुद्दे पर संभावित नुकसान की भरपाई का इंतजाम किया है। तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा का पूर्वानुमान था कि इससे वोटों का कोई नुकसान नहीं होगा। इसके विपरीत भाजपा की महिलाओं को सशक्तिकरण की नीति का श्रेय मिल जाएगा। हालांकि यही श्रेय सबरीमाला के मंदिर विवाद में उल्टा भी पड़ गया, जहां भाजपा परंपरा की दुहाई देकर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश देने के खिलाफ है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला होने के बावजूद भाजपा ने परवाह नहीं की।

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के कई फायरब्रांड नेताओं ने उल्टे सुप्रीम कोर्ट को ही नसीहत दे डाली कि परंपराओं से जुड़े मामलों में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करे। भाजपा एक तरफ तीन तलाक को खत्म करके मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण की पैरोकार बन गई, वहीं दूसरी तरफ टिकट नहीं देकर उनकी राजनीति में भागीदारी के रास्ते बंद कर दिए। राजनीति में भागीदारी बगैर देश में महिलाओं का सशक्तिकरण किसी भी सूरत में संभव नहीं है। भाजपा की मौजूदा राजनीति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा शायद ही किसी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार बनाए। पार्टी को अब अल्पसंख्यकों के मुखौटे बनाए नेताओं की जरूरत भी नहीं रह गई है। मुख्तार अब्बास नकवी जैसे नेता अपवाद के तौर पर हो सकते हैं। करोड़ों अल्पसंख्यकों को सत्ता से दूर रखने की भाजपा की योजना आसानी से कारगर नहीं होगी। भाजपा इसका राजनीतिक रूप से फायदा भले ही उठा ले। भाजपा के इस कदम से देश में साम्प्रदायवाद और अलगवाद तेज ही होगा। अल्पसंख्यकों से दोयम दर्जे का राजनीतिक व्यवहार निश्चित तौर पर देश की एकता−अखडण्ता और तरक्की को प्रभावित करे बिना नहीं रहेगा।

-योगेन्द्र योगी

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