चुनाव करीब आते ही मेनका और वरूण गांधी के सुर भाजपा के प्रति बदलने क्यों लगे हैं?
मेनका गांधी और वरूण गांधी को भारतीय जनता पार्टी में उनकी काबलियत को देखते हुए इंट्री या तवज्जो नहीं दी गई थी, बल्कि बीजेपी में इनको आगे बढ़ाने की वजह इन दोनों नेताओं का गांधी परिवार से जुड़ा होना था।
भारतीय जनता पार्टी में इस समय गांधी परिवार के दो सदस्यों मेनका गांधी और वरूण गांधी की काफी चर्चा हो रही है। दोनों लम्बे समय से बीजेपी में हैं और जनता की कसौटी पर खरा उतरते हुए चुनाव भी जीतते रहे हैं। मेनका गांधी सुलतानपुर से तो वरूण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं। यह लोग यूपी से तब से सांसद चुने जाते रहे हैं, जब बीजेपी की स्थिति यहां (यूपी में) ज्यादा अच्छी नहीं हुआ करती थी। मोदी का तो केन्द्र की राजनीति में उदय तक नहीं हुआ था। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि मेनका-वरूण गांधी द्वारा अन्य लोकसभा उम्मीदवारों की तरह चुनाव जीतने के लिए मोदी के नाम का कोई खास सहारा लिया जाता है। दोनों की अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में अच्छी पकड़ है, लेकिन जब इन नेताओं की बीजेपी के प्रति वफादारी की बात होती है तो यह इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। इसकी कोई बहुत बड़ी वजह नहीं है, लेकिन जो वजह है उसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता है। इस बात का अहसास मेनका और वरूण गांधी को भी है। दरअसल, मेनका और वरूण गांधी को भारतीय जनता पार्टी में उनकी काबलियत को देखते हुए इंट्री या तवज्जो नहीं दी गई थी, बल्कि बीजेपी में इनको आगे बढ़ाने की वजह इन दोनों नेताओं का गांधी परिवार से जुड़ा होना था।
यह जगजाहिर था कि मेनका गांधी और सोनिया गांधी में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था। बीजेपी को उम्मीद थी कि मेनका और वरूण गांधी को आगे करके वह देश की सियासत में दूसरे ‘गांधी परिवार’ (सोनिया और राहुल गांधी) की जड़ें कमजोर कर सकेंगे, जिनके सहारे कांग्रेस न केवल ‘इतराया’ करती है बल्कि गांधी परिवार के सहारे कांग्रेस चुनावी वैतरणी भी पार करने में सफल होती रहती है। कुल मिलाकर बीजेपी ने गांधी बनाम गांधी का खाका खींच रखा था, जिसे वह (बीजेपी) मेनका-वरूण गांधी के सहारे सियासी धरातल पर उतारना चाहती थी, लेकिन मेनका और खासकर वरूण गांधी थे कि चुनाव तो बीजेपी के सिम्बल से लगातार जीतते जा रहे हैं, लेकिन सोनिया-राहुल और प्रियंका के खिलाफ मौके-बेमौके कभी भी मुंह नहीं खोलते हैं। सोनिया-राहुल तो दूर यह लोग कांग्रेस के खिलाफ भी चुप्पी साधे रहते हैं।
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बात यहीं तक सीमित नहीं है, बीजेपी के रणनीतिकारों को इस बात का भी गुस्सा है कि वरूण गांधी कांग्रेस और सोनिया-राहुल-प्रियंका वाड्रा के साथ अपने राजनैतिक रिश्ते सुधारने में भी लगे रहते हैं। उधर, बीजेपी के लीडर कहते हैं कि हमें इस बात से कोई शिकायत नहीं है कि पारिवारिक तौर पर पूरा गांधी परिवार एकजुट रहे, लेकिन जब बात सियासत की आती है तो बीजेपी में रहते हुए मेनका-वरूण गांधी परिवार के नाम पर बीजेपी से सियासी बैर नहीं कर सकते हैं। यदि वह बीजेपी में हैं तो उनको बीजेपी की विचारधारा के अनुसार चलना भी होगा और इसे आगे भी ले जाना होगा, इसके लिए यदि कांग्रेस के गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा खोलने की जरूरत पड़े तो मेनका-वरूण विचारधारा से ऊपर पारिवारिक रिश्ते को महत्व देते हुए चुप नहीं रह सकते हैं। बस यही एक वजह है जिस पर मेनका और वरूण गांधी खरे नहीं उतर रहे हैं, जिसके चलते यहां तक कहा जाने लगा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी द्वारा मेनका और विशेषकर वरूण गांधी की उम्मीदवारी के लिए गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए दोनों का या फिर कम से कम वरूण गांधी का तो टिकट काटा ही जा सकता है। मेनका गांधी को भी सुलतानपुर संसदीय सीट की जगह किसी अन्य चुनौती पूर्ण सीट पर उतारा जा सकता है। क्योंकि सुलतानपुर में मेनका गांधी के कामकाज से वहां जनता खुश नजर नहीं आ रही है। पार्टी के भीतर भी मेनका गांधी के कामकाज के तरीके का काफी विरोध हो रहा है।
बहरहाल, मेनका और वरूण गांधी को भी इस बात का अहसास हो गया है कि आलाकमान उनके कामकाज और तौर-तरीके से खुश नहीं है। कहा जा रहा है आलाकमान की नाराजगी से बचने के लिए ही पीलीभीत के सांसद वरूण गांधी ने कांग्रेस सांसद और अपने चचेरे भाई राहुल गांधी के विदेश में भारत की छवि खराब करने वाले बयान की निंदा की थी। इतना ही नहीं अक्सर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बयानबाजी को लेकर सुर्खियों में रहने वाले वरूण गांधी के कई मोर्चो पर सुर कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं। अब उन्होंने बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी और ट्वीट करना बंद कर दिया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सुल्तानपुर से सांसद मां मेनका गांधी के बीजेपी को लेकर दिए गए बयान के बाद पीलीभीत लोकसभा सीट को लेकर चल रही अटकलें साफ हो गई हैं, जिसकी बानगी वरूण गांधी के पीलीभीत के कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर पर भी दिखने लगी है, जिनमें अब फिर से बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिखने लगे हैं।
दूसरी तरफ वरूण गांधी अपने पीलीभीत दौरे के दौरान जनसंवाद कार्यक्रमों में भी सफाई देते घूम रहे हैं। पीलीभीत के भाजपा नेतृत्व की मानें तो 40 सालों से पीलीभीत में राजनीति करने वाले गांधी परिवार से मेनका और वरूण गांधी इसे अपनी परिवार की कर्मभूमि मानते हैं। वहीं मेनका गांधी ने भी पिछले दिनों कहा था कि वो हमेशा बीजेपी में ही रहेंगी। वरूण गांधी ने कहा कि मेरी रगों में पीलीभीत दौड़ता है जब तक मेरी माँ और मैं हूं आपकी आवाज उठाने के लिए हूं। उन्होंने कहा कि मैंने अपना नंबर इसीलिए दिया है कि आपको बाकी नेताओ से मांगना पड़ेगा, लेकिन आप मुझसे हक से मांगें। वहीं, एक तरफ जहां पिछले कई दिनों से वरूण गांधी के बीजेपी के प्रति सुर बदले हैं तो वहीं दूसरी तरफ काफी समय से उनका कोई ट्वीट भी नहीं आया है। इससे साफ है कि वरूण और बीजेपी के बीच की फांस खत्म हो गई है। ऐसे में 2024 के लिए रास्ता साफ होता नजर आ रहा है।
-अजय कुमार
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