क्या ज़बान संभाल कर बोलने का नियम सिर्फ जनता के लिए है? क्या पवन खेड़ा प्रकरण से सबक लेंगे नेता?

राजनीति में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जो आरोप लगा रहे हैं उसका कोई आधार हो। निराधार आरोप लगाने से अनावश्यक विवाद खड़े होते हैं और फिर जब कानून का डंडा चलता है तो गलतबयानी या झूठे आरोप लगाने के लिए नेताओं को माफी मांगनी पड़ती है। विपक्षी नेता मुद्दों के आधार पर वर्तमान केंद्र सरकार को नहीं घेर पा रहे हैं तो झूठे आरोप लगाकर या अमर्यादित बयान देकर सनसनी फैलाते हैं और सुर्खियों में रहना चाहते हैं।
जरा, कुछ उदाहरणों के जरिये आपको अपनी बात समझाते हैं। राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदा मामले में प्रधानमंत्री पर झूठे आरोप लगाये, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो राहुल गांधी ने सिर्फ खेद जताकर बच निकलने की कोशिश की लेकिन सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने के लिए बिना शर्त माफी मांगी। देखा जाये तो कांग्रेस में सिर्फ राहुल गांधी ही माफीवीर नेता नहीं हैं बल्कि अब ऐसे नेताओं की संख्या पार्टी में बढ़ती जा रही है। हम आपको यह भी याद दिला दें कि कांग्रेस सरकार के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्री रहते हुए मनीष तिवारी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर झूठे आरोप लगाने के चलते मुंबई की कोर्ट में माफी मांग चुके हैं। अब कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री के स्वर्गीय पिता के लिए जो अपमानजनक शब्द प्रयोग किये उसके चलते उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गयी, मामला गिरफ्तारी और कोर्ट तक पहुँचा तो वह भी बिना शर्त माफी के लिए तैयार हो गये।
सिर्फ कांग्रेस में ही माफीवीर नेता हों ऐसा नहीं है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी कई नेताओं पर आरोप लगा कर बिना शर्त माफी मांग चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल स्वर्गीय अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और भाजपा के नेता रहे अवतार सिंह भड़ाना पर आरोप लगा कर बिना शर्त माफी मांग चुके हैं। अरुण जेटली से तो आम आदमी पार्टी के कई अन्य नेताओं ने भी झूठे आरोपों के लिए माफी मांगी थी।
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देखा जाये तो नेताओं का अपने बयान से पलटना या यह कहना कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन नेताओं को समझना चाहिए कि ऐसी स्थिति क्यों आती है कि उन्हें अपने बयान पर खेद जताना पड़े या अदालत में मानहानि के मुकदमे के डर से बिना शर्त माफी मांगनी पड़े? इस सबसे राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खुद गंवा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन पर कोई असर नहीं होता क्योंकि उनके इर्दगिर्द मौजूद लोग उन्हें यह अहसास कराते हैं कि आप टीवी पर चमक रहे हैं, अखबार में छप रहे हैं, सोशल मीडिया पर छाये हैं और जनता आपके पक्ष में दिख रही है।
बहरहाल, पवन खेड़ा भले अपनी पार्टी का पक्ष प्रखरता के साथ रखते हों लेकिन उन्हें दूसरे दलों पर हमलावर होते हुए अपने पर काबू भी रखना चाहिए। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हाल ही में उनकी ओर से कही गयी कई बातों पर विवाद हुआ। एक केंद्रीय मंत्री के परिजन से कथित रूप से जुड़े मुद्दे को उन्होंने जिस तरह पेश किया था उसके खिलाफ उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया गया था और माफी की मांग की गयी थी। यह प्रकरण अन्य नेताओं के लिए बड़ा सबक है क्योंकि कानून का पालन करना और ज़बान संभाल के बोलने का नियम सिर्फ जनता के लिए ही नहीं बल्कि नेताओं के लिए भी होता है।
-नीरज कुमार दुबे
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