अखिलेश यादव का ‘एमवाई’ खेल खराब करेगा मायावती का ‘डीएम’

Akhilesh Yadav Mayawati
Prabhasakshi
संजय सक्सेना । Mar 14 2024 6:25PM

पश्चिमी यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पार्टी ने इसी रणनीति के तहत प्रत्याशियों की घोषणा करनी शुरू कर दी है। अब तक घोषित किए गए उसके सात प्रत्याशियों में से पांच मुस्लिम हैं। हैरानी की बात यह है कि बसपा अपने किसी भी मौजूदा सांसद को टिकट देने के मूड में नहीं दिख रही है।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव बहुजन समाज पार्टी और उसकी सुप्रीमों मायावती के खिलाफ लगातार ‘जहर’ उगल रहे थे, जिसे बहनजी चुपचाप इकठा करती जा रही थीं, शायद वह सही समय का इंतजार कर रही होंगी। आज भले ही बसपा का जनाधार काफी घट गया है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि बसपा समाप्त पार्टी बन गई है। मायावती की राजनैतिक सूझबूझ की आज भी कोई बराबरी नहीं है, जिन मायवती का पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से वर्षो तक 36 का आकड़ा रहा, कई बार मुलायम को मायावती ने सियासी मैदान पर धूल चटाई थी,उन मायावती को अखिलेश कभी हल्के में नहीं लेते यदि समाजवादी पार्टी का पुराना इतिहास वह पढ़ लेते। इंडी गठबंधन में बसपा को नहीं शामिल करने के लिये जमीन-आसमान एक किये हुए अखिलेश यादव को मायावती ने उन्हीं की पिच पर पटकनी देने का मन बना लिया है। यह पिच मुस्लिम वोट बैंक की है जिस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव को काफी नाज है,लेकिन बसपा ने लोकसभा चुनाव के लिये सात में से पांच सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर समाजवादी पार्टी के एमवाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी कर ली है। बता दें आज भले ही सपा-बसपा में भारी अदावत नजर आ रही हो लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव दोनों मिलकर लड़े थे। 2019 में संसद पहुंचने वाले उसके 10 सांसदों में तीन मुस्लिम थे। इस बार बसपा की रणनीति सपा-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान पहुंचाने के संकेत दे रही है। बसपा सुप्रीमों की एक चाल ने ‘सौ सुनार की, एक लुहार की’ वाली कहावत चरितार्थ कर दी है।

दरअसल, पश्चिमी यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पार्टी ने इसी रणनीति के तहत प्रत्याशियों की घोषणा करनी शुरू कर दी है। अब तक घोषित किए गए उसके सात प्रत्याशियों में से पांच मुस्लिम हैं। हैरानी की बात यह है कि बसपा अपने किसी भी मौजूदा सांसद को टिकट देने के मूड में नहीं दिख रही है। फिलहाल पार्टी के साथ अपनी आस्था जताने वाले बिजनौर से सांसद मलूक नागर की जगह विजेंद्र सिंह को प्रत्याशी घोषित किया गया है। उनका मुकाबला रालोद के चंदन चौहान से होगा। यानी यहां जाट और गुर्जर मैदान में हैं, कांग्रेस-सपा का प्रत्याशी घोषित होना बाकी है। उधर,कांग्रेस के खेमे में जा रहे अमरोहा के सांसद दानिश अली की जगह डॉ. मुजाहिद हुसैन को प्रत्याशी बनाया गया है। सहारनपुर के बसपा सांसद हाजी फजलुर्रहमान को कांग्रेस टिकट दे सकती है, लिहाजा बसपा ने माजिद अली को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। वहीं, पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर सीट पर दारा सिंह प्रजापति को बसपा ने प्रत्याशी घोषित किया है। इसी तरह मुरादाबाद में इरफान सैफी को, तो पीलीभीत में अनीस अहमद खां को प्रत्याशी घोषित किया गया है। कन्नौज सीट पर अकील अहमद पट्टा को प्रत्याशी बनाया गया है। इस सीट पर भाजपा के सुब्रत पाठक मैदान में हैं, जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के भी यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा है, जो उनके लिये खतरे की घंटी से कम नहीं है।

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इतना ही नहीं बसपा एनडीए में भी सेंधमारी कर रही है,जिससे लोकदल को बड़ा झटका लगा है। दरअसल रालोद के राष्ट्रीय महासचिव चौधरी विजेंद्र सिंह ने अचानक से पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले छोड़ कर सबको हैरान कर दिया है। इससे पहले वह लोकदल के प्रसार में जुटे हुए थे। उन्होंने लोकदल को छोड़कर बसपा को ज्वाइन कर लिया है। उन्होंने मंगलवार को बीएसपी में शामिल होने की घोषणा बिजनौर के कार्यकर्ता सम्मेलन में की। इस कार्यकर्ता सम्मलेन में बीएसपी के पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड प्रभारी शमशुद्दीन राइन ने चौधरी विजेंद्र सिंह के बीएसपी की सदस्यता लेने की घोषणा की। मायावती ने चौधरी विजेंद्र सिंह को बिजनौर लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा की है। उन्होंने आगे कहा कि बहन जी सबसे पहले बिजनौर सीट से जीत दर्ज करके संसद पहुंची थी। चौधरी विजेंद्र सिंह ने अपने अस्पतालों व शिक्षण संस्थानों के माध्यम से जनता की सेवा की है। जिसको देखते हुए बहन मायावती ने उन्हें बिजनौर लोकसभा प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया है। एक दो दिन में बीएसपी चौधरी विजेंद्र सिंह को बिजनौर सीट से लोकसभा सीट का टिकट देने की घोषणा कर सकती है। बिजनौर के जिलाध्यक्ष दलीप कुमार ने यह जानकारी दी थी कि एक दो दिन में पार्टी प्रमुख बहन मायावती उन्हें लोकसभा टिकट दे देंगी। वहीं चौधरी विजेंद्र सिंह ने कहा कि किसान, मजदूर, गरीब सभी पिछड़ी जातियों समेत शोषित और वंचितों को उनका हक दिलाने का कार्य करेंगे।

चौधरी के बसपा की सदस्यता ग्रहण करने से पहले यहां बीजेपी-आएलडी गठबंधन की जीत पक्की समझी जा रही थी। दोनों ने गठबंधन के तहत रालोद विधायक चंदन चौहान को बिजनौर सीट से प्रत्याशी घोषित किया गया था। चौधरी विजेंद्र सिंह की नजर भी जाट वोटों को साधने की थी, जो कि लोकदल को जीत दिलाने के मकसद से कार्य कर रहे थे। लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन के बाद इस सीट का समीकरण बदल जाने के कारण चौधरी विजेंद्र सिंह ने अपनी राह बदल ली और बीएसपी को ज्वाइन कर लिया। अब जब बीएसपी ने चौधरी विजेंद्र सिंह को बिजनौर सीट से प्रत्याशी बना दिया है तो वहां भाजपा-आरएलडी गठबंधन और बीएसपी के बीच चुनावी घमासान होने की संभावना है।

कुल मिलाकर मायावती के मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देने से बसपा को भले ही कोई फायदा न हो लेकिन इससे सपा को जरूर नुकसान हो सकता है। आजमगढ़ लोकसभा सीट के बीते उपचुनाव को देखें तो सपा के प्रत्याशी रहे धर्मेन्द्र यादव को केवल इसीलिए हार का सामना करना पड़ा था क्योंकि उनके सामने बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी गुड्डू जमाली को टिकट मिल गया था। इस उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी की जीत हुई थी।अब जरूर जमाली सपा में हैं और पार्टी ने उन्हें विधान परिषद सदस्य के लिये चुन लिया है। 

बता दें कई चुनावों में ये देखने को मिलता रहा है कि बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से सपा का एम-वाई फार्मूला कहीं हद तक असफल हो जाता है। बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी सपा की जीत के लिए एक बड़ा रोड़ा बन जाते है। मायावती अपनी रणनीति के अनुसार मुस्लिमों पर फोकस करती रही हैं. वो लगतार ये समझाने का प्रयास करती हैं, कि दलित और मुस्लिम एक साथ आजाएं तो बीजेपी को हराया जा सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा का सिर्फ एक ही प्रत्याशी जीता था। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बलिया जिले की रसड़ा सीट से उमाशंकर सिंह ने जीत हासिल की थी। अन्य सभी विधानसभा सीटों पर बसपा को हार का सामना करना पड़ा था। अब इस लोकसभा चुनाव में मुस्लिम चेहरों पर मायावती ने एक बार फिर दांव लगाया है। 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में ये देखना दिलचस्प होगा कि मायावती की रणनीति कितनी कामयाब होती है। ऐसा लगता है कि बसपा सुप्रीमों मायावती ने यह तय कर लिया है कि समाजवादी पार्टी के एमवाई(मुस्लिम-यादव) वोटबैंक को धाराशायी करने के लिये उन्हें डीएम (दलित-मुस्लिम) को मजबूत करना ही पड़ेगा। दलित तो बसपा के साथ हैं ही,मुसलमानों को लुभाने के लिये ही मायावती बड़े पैमाने पर मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने की रणनीति बना रही हैं।

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