अमरनाथ भक्तों की भीड़ की गर्मी से तेजी से पिघलता जा रहा है हिमलिंग

बीस दिनों के भीतर ही अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग पिघल कर आधा रह गया है। ऐसा उन दो लाख भक्तों की सांसों की गर्मी के कारण हुआ है जो इस दौरान कष्ट सहते हुए गुफा तक पहुंचे हैं।
बीस दिनों के भीतर ही अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग पिघल कर आधा रह गया है। ऐसा उन दो लाख भक्तों की सांसों की गर्मी के कारण हुआ है जो इस दौरान कष्ट सहते हुए गुफा तक पहुंचे हैं। इतना जरूर था कि पिछले कई सालों से भक्तों के सांसों की गर्मी से तेजी से पिघलता अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग विवाद का मुद्दा बनता जा रहा है। हर बार अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया होती है पर कश्मीर के पर्यावरणविद् इसे मानने को तैयार नहीं हैं जिनका कहना था कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने की अनुमति देने से लगातार ऐसा होता रहा है।
अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों का दिल फिर से दगा दे रहा है। नतीजतन यात्रा में शामिल होने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य प्रमाणपत्र शक के घेरे में हैं। यह स्वास्थ्य प्रमाणपत्र कहते हैं कि मरने वाले यात्रा में शामिल होने के लिए फिट थे तो फिर 20 दिनों में 20 लोगों की हार्ट फेल होने से मौत कैसे हो गई। अब तक इस साल इस यात्रा के 20 दिनों के दौरान 27 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 20 का हार्ट फेल हुआ था औन अन्य हादसों में मरे थे।
जिस तेजी से हर बार की यात्रा में हिमलिंग पिघलता रहा है फिर वह कुछ दिनों के बाद बमुश्किल से ही दिख पाता है। गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने से हिमलिंग को नुकसान पहुंचता रहा है क्योंकि लाखों भक्तों की गर्म सांसों को हिमलिंग सहन नहीं कर पाता है। इतना जरूर था कि हर बार श्राइन बोर्ड के अधिकारी अप्रत्यक्ष तौर पर भक्तों की सांसों की थ्यूरी को मानते हैं पर प्रत्यक्ष तौर पर वे इसे कुदरती प्रक्रिया करार देते थे।
श्राइन बोर्ड के अधिकारी कहते थे कि ग्लोबल वार्मिंग भी इसे प्रभावित करती रही है। वे इससे इंकार करते थे कि गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालु पहुंचते रहे हैं। वर्ष 1996 के अमरनाथ हादसे के बाद नीतिन सेन गुप्ता कमेटी की सिफारिश थी कि 75 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल न होने दिया जाए। पर ऐसा कभी नहीं हो पाया। वर्ष 2013 में तो मात्र दो ही दिनों में 75 हजार ने हिमलिंग के दर्शन कर रिकॉर्ड बनाया था। तो वर्ष 2014 में 29 दिनों में साढ़े तीन लाख श्रद्धालु गुफा में पहुंचे थे।
इस पर पर्यावरणविद् हमेशा खफा रहे हैं। वे कहते थे कि यात्रियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि न सिर्फ हिमलिंग को पिघलाने में अहम भूमिका निभाती रही है, यात्रा मार्ग के पहाड़ों के पर्यावरण को भी जबरदस्त क्षति पहुंचाती रही है। इन पर्यावरणविदों का कश्मीर के अलगाववादी भी समर्थन कर रहे हैं। सैयद अली शाह गिलानी गुट ने तो यात्रा को 15 दिनों तक सीमित करने और यात्रियों की संख्या कम करवाने को मुद्दा बनाया हुआ है।
श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने को राजी नहीं दिखता है। पर वह हिमलिंग के संरक्षण की योजनाओं पर अमल करने का इच्छुक जरूर दिखता रहा है। श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने की बजाय यात्रा को सारा साल चलाने के पक्ष में भी समर्थन जुटाने में जुटा हुआ है, जो माहौल को और बिगाड़ रहा है इसके प्रति कोई दो राय नहीं है।
यात्रा शुरू होने के बाद भक्तों के अलावा गुफा के आस-पास बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद रहते हैं। भारी भीड़ की वजह से अमरनाथ गुफा के आसपास का तापमान और बहुत बढ़ जाता है, हालांकि श्राइन बोर्ड का दावा था कि पिछले दो तीन साल में उन्होंने कुछ ऐसे उपाय किए हैं, जिससे गुफा तापमान ना बढ़े।
पिछली बार तो जब बाबा बर्फानी ने पहली बार दर्शन दिए थे तब शिवलिंग का आकार 20 फीट का था। और धीरे-धीरे वह अब कुछ ही दिनों के बाद 2-4 फुट का रह गया था। हालांकि यह पहला मौका नहीं था कि जब बाबा बर्फानी अपने भक्तों से रूठते जा रहे थे बल्कि इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका था।
60 दिन तक चलने वाली इस यात्रा का समापन 26 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन हो जाएगा। इस यात्रा के बीसवें दिन यानी 16 जुलाई को एक दिन में 10,007 तीर्थयात्रियों ने पवित्र गुफा में पूजा-अर्चना की। गत 28 जून को इस यात्रा के शुभारंभ से लेकर अब तक दो लाख यात्री अमरनाथ गुफा में बनने वाले हिमलिंग के दर्शन कर चुके हैं।
पिछले 20 दिनों की अमरनाथ यात्रा के दौरान कुल 27 लोगों की मौत हुई है और 20 की मौत दिल द्वारा दगा दिए जाने के कारण हुई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन सभी ने अमरनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए स्वास्थ्य प्रमाणपत्र पेश किए थे जिनमें उन्हें अमरनाथ यात्रा के लिए फिट बताया गया था। ऐसे में एक अधिकारी का सवाल था कि ‘सच में वे फिट थे।’
इन मौतों को रोकने की खातिर श्राइन बोर्ड ने 75 साल से अधिक आयु वालों की यात्रा पर भी प्रतिबंध लगाया है। खाने पीने के सामान में फास्ट फूड और देसी घी भी प्रतिबंधित है। जहां तक कि स्वास्थ्य प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जा चुका है और इन सबके बावजूद होने वाली मौतें यह जरूर दर्शाती थीं कि सबकी आंखों में धूल झोंकने वाले अभी भी यात्रा में शामिल हो रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मरने वालों में कम उम्र के लोग भी शामिल थे जो चौंकाने वाला तथ्य है।
अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड द्वारा बार-बार यह प्रचारित किया जाता रहा है कि अमरनाथ यात्रा में वे ही लोग शामिल हों जो शारीरिक तौर पर स्वस्थ हों लेकिन बावजूद इसे मोक्ष प्राप्ति की यात्रा के रूप में प्रचारित करने का परिणाम यह है कि कई बुजुर्ग अपनी उम्र को छुपा कर भी इसमें शामिल हो रहे हैं और सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि ‘नकली’ स्वास्थ्य प्रमाण पत्रों के सहारे उनके द्वारा मोक्ष की तलाश की जा रही है।
-सुरेश डुग्गर
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