भारत चुपचाप कर रहा बड़ी तैयारी, मोदी की जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान यात्रा विरोधियों पर पड़ रही भारी

देखा जाये तो पश्चिम एशिया इस समय उबाल पर है। गाज़ा संकट, ईरान-सऊदी समीकरणों में उतार-चढ़ाव, अमेरिका की प्राथमिकताओं में बदलाव और सऊदी अरब-पाकिस्तान और अमेरिका के नए रक्षा समीकरण का उभरना भारी उथलपुथल की तरह है।
युद्ध के धुएँ और वैश्विक अनिश्चितताओं के इस दौर में भारत की विदेश नीति अगर किसी एक शब्द में परिभाषित होती है, तो वह है रणनीतिक स्पष्टता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की यात्रा इसी स्पष्टता का ठोस प्रदर्शन है। यह यात्रा बदलती वैश्विक ध्रुवीयता में भारत के हितों को सुरक्षित करने की एक सधी हुई चाल है। यह एक ऐसा रणनीतिक कदम है जो आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा, खाद्य, समुद्री और भू-राजनीतिक सुरक्षा की रीढ़ बनेगा।
देखा जाये तो पश्चिम एशिया इस समय उबाल पर है। गाज़ा संकट, ईरान-सऊदी समीकरणों में उतार-चढ़ाव, अमेरिका की प्राथमिकताओं में बदलाव और सऊदी अरब-पाकिस्तान और अमेरिका के नए रक्षा समीकरण का उभरना भारी उथलपुथल की तरह है। ऐसे में भारत का जॉर्डन और ओमान की ओर बढ़ना बताता है कि नई दिल्ली अब प्रतिक्रियावादी नहीं, बल्कि एजेंडा-सेटर है। मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी एक धुरी पर निर्भर नहीं रहेगा, वह अपने विकल्प खुद गढ़ेगा।
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मोदी के तीन देशों के दौरे में जॉर्डन पहला पड़ाव था और यह चयन ही बहुत कुछ कह देता है। हम आपको बता दें कि पश्चिम एशिया में जॉर्डन एक संतुलनकारी शक्ति है। वह कट्टरपंथ के विरुद्ध ढाल और संवाद का सेतु है। भारत के लिए जॉर्डन केवल कूटनीतिक मित्र नहीं, बल्कि खाद्य सुरक्षा का रणनीतिक स्तंभ भी है। फॉस्फेट और पोटाश जैसे उर्वरकों के बिना भारत की कृषि का आगे बढ़ना मुश्किल है। जॉर्डन इंडिया फर्टिलाइज़र कंपनी (JIFCO) जैसे उपक्रम इस बात का प्रमाण हैं कि मोदी सरकार संसाधन सुरक्षा को भाषण नहीं, संस्थागत रणनीति मानती है। दोनों देशों के बीच $2.75 अरब का द्विपक्षीय व्यापार और 2030 तक $5 अरब का लक्ष्य दिखाता है कि यह साझेदारी अब प्रतीकात्मक नहीं रही। मोदी की जॉर्डन यात्रा के दौरान हुए करार और आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को वहां की सरकार का मिला जोरदार समर्थन तथा क्राउन प्रिंस का खुद मोदी को अपनी कार में लेकर जाना दर्शाता है कि मोदी की यात्रा कितनी सफल रही।
वहीं मोदी की इथियोपिया यात्रा को देखें तो यह रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत निर्णायक है। अफ्रीकी संघ का मुख्यालय, ब्रिक्स का सदस्य और ग्लोबल साउथ की धड़कन, इथियोपिया में 2011 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है। देखा जाये तो यह देरी नहीं, बल्कि सही समय पर किया गया दांव है। दोनों देशों के बीच $550 मिलियन का व्यापार, भारतीय फार्मा की मजबूत मौजूदगी और क्षमता निर्माण में भारत की भूमिका दिखाती है कि नई दिल्ली अफ्रीका को बड़ा साझेदार मानती है। यह चीन के ऋण-जाल मॉडल के ठीक उलट सम्मान, प्रशिक्षण और साझा विकास का रास्ता है।
साथ ही मोदी की ओमान यात्रा भारत की समुद्री रणनीति का निर्णायक स्तंभ है। दुक़्म (Duqm) बंदरगाह में भारत की बढ़ती मौजूदगी, होरमुज़ जलडमरूमध्य से बाहर एक वैकल्पिक लॉजिस्टिक हब, यह सब भारत की इंडो-लिटरल स्ट्रैटेजी का हिस्सा है। भारत-ओमान CEPA का प्रस्तावित हस्ताक्षर इस यात्रा का सबसे ठोस आर्थिक परिणाम होगा। देखा जाये तो 95% टैरिफ लाइनों पर शुल्क-मुक्त पहुँच और 98% तक भारतीय वस्तुओं को राहत, एक रणनीतिक व्यापार की तरह है। ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, उर्वरक, तकनीक और खाद्य सुरक्षा, हर मोर्चे पर भारत अपनी शर्तों पर आगे बढ़ रहा है। दोनों देशों के बीच $10.61 अरब का व्यापार जल्द ही $20 अरब की ओर बढ़े, यह केवल आंकड़ा नहीं, भरोसे की मुद्रा है।
हम आपको यह भी बता दें कि इस पूरी यात्रा की बेहद शक्तिशाली धुरी हैं भारतीय प्रवासी। ओमान में 6.75 लाख से अधिक भारतीय, जॉर्डन में परिधान उद्योग की रीढ़ बने 17 हजार श्रमिक और इथियोपिया में शिक्षा जगत को दिशा देने वाले भारतीय प्रोफेसर, ये लोग भारत की “सॉफ्ट पावर” नहीं, बल्कि लिविंग स्ट्रैटेजिक एसेट्स हैं। मोदी सरकार ने पहली बार प्रवासियों को भावनात्मक प्रतीक से निकालकर नीति के केंद्र में रखा है, चाहे वह बिज़नेस कार्ड वीज़ा हो या श्रम सुरक्षा के समझौते।
बहरहाल, आलोचक कह सकते हैं कि यह यात्रा चुनौतियों से मुक्त नहीं है क्योंकि पश्चिम एशिया की अस्थिरता, अफ्रीका में प्रतिस्पर्धा और वैश्विक आर्थिक सुस्ती बनी हुई है। लेकिन यहीं मोदी सरकार की विदेश नीति अलग दिखती है। यह जोखिम से भागती नहीं, उसे मैनेज करती है। मोदी सरकार जानती है कि बहुध्रुवीय विश्व में निष्क्रियता सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए निष्कर्ष स्पष्ट है। मोदी की यह यात्रा भारत के आत्मविश्वास का बयान है कि भारत अब केवल संतुलन साधने वाला देश नहीं, बल्कि अपने हितों के लिए गठबंधन गढ़ने वाला राष्ट्र है। मोदी की यह पश्चिम एशिया-अफ्रीका कूटनीति लेन-देन से आगे जाकर रणनीतिक हेजिंग की परिपक्व मिसाल है। आने वाले वर्षों में जब ऊर्जा, खाद्य और समुद्री मार्गों पर संघर्ष तेज होगा, तब यह यात्रा एक दूरदर्शी कदम के रूप में याद की जाएगी, जिसने भारत को न केवल सुरक्षित किया, बल्कि निर्णायक भी बनाया।
-नीरज कुमार दुबे
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