प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रयासरत है बिहार सरकार

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देश के विभिन्न राज्यों में सरकारें प्राथमिक शिक्षा में कई स्तरों पर गुणवत्ता के मसले को लेकर न केवल चिंतित हैं, बल्कि प्रयास कर रही हैं। मुख्यतौर पर बच्चों में भाषायी कौशलों मसलन सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना आदि को लेकर दिक्कतें आती हैं।

देश के विभिन्न राज्यों में सरकारें प्राथमिक शिक्षा में कई स्तरों पर गुणवत्ता के मसले को लेकर न केवल चिंतित हैं, बल्कि प्रयास कर रही हैं। मुख्यतौर पर बच्चों में भाषायी कौशलों मसलन सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना आदि को लेकर दिक्कतें आती हैं। इन कौशलों में भी पढ़ना और लिखना ऐसे कौशल हैं जिनमें बच्चे न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों में भी पिछड़ रहे हैं। इसका प्रमाण समय समय पर असर और सरकारी दस्तावेज भी देते रहे हैं। हालिया एनसीईआरटी की ओर किए गए अध्ययन में पाया गया कि बच्चों में पढ़ने−लिखने और गणित की दक्षता में खासा परेशानी आती है। यह स्थिति आज से नहीं बल्कि पिछले एक दशक में ज़्यादा संज्ञान में आयी है। विभिन्न रिपोर्ट इस मसले पर अपनी चिंता प्रकट कर चुकी हैं। बिहार सरकार इन्हें गंभीरता से लेते हुए राज्य में प्राथमिक स्कूलों में गणित और भाषायी दक्षता खासकर पढ़ने और लिखने को कक्षा तीसरी और पांचवीं में सुधारने के लिए प्रयास कर रही है। 

बिहार में प्राथमिक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है। हालांकि न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों में भी प्राथमिक स्तर पर बुनियादी कौशलों में बच्चे तय स्तर से नीचे पाए गए हैं। इन्हें कैसे दुरुस्त किया जाए इसके लिए बिहार सरकार ने एक योजना का ऐलान किया है। इस योजना के तहत तमाम प्राथमिक स्कूलों में कक्षा तीसरी और पांचवीं के बच्चों में गणित के सामान्य सवालों को हल करने के कौशल पर काम किया जाएगा। साथ ही भाषायी कौशल विकास को लेकर समय समय पर सवाल उठते रहे हैं। इन्हें संज्ञान में लेते हुए बिहार सरकार ने घोषणा की है कि प्राथमिक स्कूलों में इन्हीं कक्षाओं के बच्चों में पढ़ने और लिखने के कौशल विकास पर भी सघन कोशिश की जाएगी।

बच्चों में भाषायी कौशल और गणित के सामान्य सवालों को हल करने के कौशल प्रदान करने का प्रयास तो ठीक है किन्तु यह एक अन्य चिंता भी जगाती है कि क्या हमारे शिक्षक और अन्य संसाधन इस योजना को पूरा करने में सक्षम और समर्थ हैं? क्या हमारे पास इस योजना को सफल बनाने के लिए पूरी कार्य योजना और रणनीति तैयार है आदि। क्योंकि इससे पूर्व भी देश भर में इन बुनियादी कौशलों के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरूआत की गई। इसका परिणाम अभी तक पर्याप्त नहीं माना जा सकता। इससे पूर्व देश भर में ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, सर्व शिक्षा अभियान आदि की भी शुरूआत की गई। इन तमाम अभियानों में जो कमी देखी गई वह इनके कार्यान्वयन स्तर पर थी। ये योजनाएं अपने उद्देश्यों, लक्ष्यों में तो स्पष्ट थीं ही किन्तु इन्हें सही तरीके से रणनीति बनाकर एक्जीक्यूट नहीं किया गया। अब तक का सबसे बड़ा शैक्षिक संघर्ष शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को बनने में तकरीबन सौ साल का वक़्त लगा। इसे 2010 में अप्रैल देश भर में लागू किया गया। लेकिन इसमें भी खामियां देखीं और निकाली गईं। क्या इस आरटीई में कोई कमी थी या फिर इसे जिस शिद्दत से स्वीकारा जाना चाहिए था या फिर एक्जीक्यूट करने में हमसे कोई चूक रह गई इसे भी समझना होगा। इस संदर्भ में हमें बिहार के इस प्रयास को देखने और समझने की आवश्यकता है।

स्कूली स्तर पर जो लोग जुड़े हुए हैं। बल्कि कहना चाहिए जो परिवर्तन की मुख्य कड़ियां हैं जिन्हें हम शिक्षक व प्रधानाचार्य आदि के नाम से जानते हैं? क्या यह कड़ी मजबूत है इसे पूरे करने में? क्या उन्हें इस अभियान की बारीकियों और चुनौतियों से रूबरू कराया गया है? क्या उन्हें इसके लिए कोई विशेष प्रशिक्षण दिया गया है कि कैसे इसे कक्षायी स्तर पर उतारा जाना है। क्योंकि बिना प्रशिक्षित शिक्षकों के यह पढ़ने और गणित की बुनियादी दक्षता को हासिल करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। जैसा कि सरकारी और गैर सरकारी रिपोर्ट बताती हैं कि न केवल बिहार में बल्कि देश भर के विभिन्न राज्यों में हमारी प्राथमिक स्कूली शिक्षा शिक्षकों की कमी से जूझ रही है। बिहार उनमें से एक है। इस राज्य में भी लाख से ज्यादा प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं। बिना शिक्षकों के क्या यह अभियान सफल हो पाएगा? 2009 के पूर्व बिहार में भी प्रशिक्षित, अर्ध प्रशिक्षित शिक्षकों, शिक्षा मित्रों आदि के सहारे प्राथमिक शिक्षा को आगे बढ़ाया जा रहा था। लेकिन 2010 के बाद वर्तमान सरकार ने तब पटना के गांधी मैदान में हज़ारों की संख्या में बीए, एमए पास प्रतिभागियों को स्कूलों में ज्वाइन कराया था। और क्योंकि आरटीई एक्ट 2009 की मुख्य स्थापना है कि गैर प्रशिक्षित शिक्षकों को सरकार तीन वर्ष में सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करेगी।

हमें प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी और रिक्त पदों को भरने की ओर भी योजनाबद्ध तरीके से कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता है। क्योंकि इसके बगैर यह योजना भी अन्य योजनाओं के तर्ज़ पर विफल हो सकती हैं। पढ़ना−लिखना और गणित की बुनियादी कौशल विकास को न केवल सहस्राब्दी विकास लक्ष्य में शामिल किया है बल्कि सतत् विकास लक्ष्य 2030 के लिए भी प्रमुख माना गया है। यदि बिहार सरकार इस लक्ष्य को हासिल कर पाती है तो यह राज्य अन्य प्रदेश सरकार के लिए भी मिसाल कायम करेगा। इसे सफल बनाने के लिए सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकार की जिम्मेदारी मान कर नागर समाज खामोश नहीं बैठ सकता। बल्कि नागर समाज को सरकार के इस अभियान में आगे आना होगा। प्रथम संस्था बिहार के इस अभियान में नालंदा में कुछ समूहों का निर्माण कर चुकी है। जिनके साथ पढ़ने−लिखने और गणित की बुनियादी दक्षता विकास में सहयोग कर रही है।

-कौशलेंद्र प्रपन्न

(भाषा एवं शिक्षा पैडागोजी विशेषज्ञ)

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