यूपी निकाय चुनाव में सपा से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर बसपा ने चल दिया है बड़ा दाँव
बसपा ने ऐसा दांव चला है जिसने बीजेपी और खास तौर पर सपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। समाजवादी पार्टी यादव-मुस्लिमों के मजबूत वोट बैंक के सहारे चुनाव लड़ती और जीतती है, लेकिन बीएसपी इसमें से मुस्लिम वोटों पर अक्सर डोरे डालने में कामयाब हो जाती है।
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के पहले चरण के लिए चुनावी बिसात बिछ गई है। साल के भीतर होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व निकाय चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रदर्शन काफी कुछ सियासी संकेत देगा। यह सही है कि नगर निगम चुनाव और लोकसभा चुनाव की परिस्थितियां और मुद्दे बिल्कुल अलग-अलग होते हैं, लेकिन जो दल इन चुनावों में बढ़त बनाने में सफल रहेगा वह सियासी ‘माइंड गेम’ के सहारे वोटरों पर काफी हद तक मनोवैज्ञानिक दबाव डालने में सफल रहेगा। वैसे तो कई निकाय चुनावों में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही मुख्य मुकाबला देखने को मिलता था, लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतार कर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की जबर्दस्त तैयारी की है, जबकि एक समय वह भी था जब बसपा निकाय चुनाव अपने सिम्बल तक पर नहीं लड़ती थी, परंतु इस बार उसने निकाय चुनाव में दबदबा बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
बसपा ने ऐसा दांव चला है जिसने बीजेपी और खास तौर पर सपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। समाजवादी पार्टी यादव-मुस्लिमों के मजबूत वोट बैंक के सहारे चुनाव लड़ती और जीतती है, लेकिन बीएसपी इसमें से मुस्लिम वोटों पर अक्सर डोरे डालने में कामयाब हो जाती है। यही काम बसपा इस बार भी जोरशोर से करने जा रही है। प्रथम चरण के चुनाव जो 04 मई को होने हैं, उसमें बसपा 60 प्रतिशत मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाकर सपा की राह में कांटे खड़े कर सकती है। हालांकि बसपाई इससे इंकार करते हैं। कहते हैं, कि मुस्लिमों ने सपा के साथ रह कर देख लिया है। कुछ हासिल नहीं हुआ, इसलिए वह बसपा की तरफ आ गया है। हाल ही में सम्पन्न लोकसभा के उप-चुनाव में यह बात साबित भी हो चुकी थी। आजमगढ़ में बसपा ने अच्छे खासे मुस्लिम वोट पाए थे, भले ही बसपा जीत नहीं पाई थी, लेकिन सपा को भी हार का सामना करना पड़ा था। जानकार भी कह रहे हैं कि बसपा का समीकरण ही सबसे हिट है। नगर निकाय चुनाव में बसपा ने पहले चरण में महापौर पद के लिए 60 प्रतिशत टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं। नामांकन पत्र भरने का 17 अप्रैल को अंतिम दिन था। इस दिन बड़ी संख्या में पर्चे भरे गए। 10 नगर निगमों में महापौर पद के लिए आखिरी दिन 93 उम्मीदवारों ने पर्चे दाखिल किए, जबकि पार्षद पद पर 4,092 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र भरे। इसके बाद यह साफ हो गया कि बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी मंशा स्पष्ट जता दी है कि वह मुस्लिम- दलित समीकरण पर मजबूती से काम करेंगी। पार्टी को उम्मीद है कि यदि दलित और मुस्लिम वोटर साथ आ गए तो कई सीटों पर बसपा की नैया पार लग सकती है। तमाम सीटों पर मंथन के बाद बसपा ने पहले चरण के नामांकन पत्र भरने के अंतिम दिन महापौर पद के प्रत्याशियों की सूची जारी की।
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जानकारी के मुताबिक, सूची भले ही 17 अप्रैल को जारी की गई हो, पर इनमें से कुछ उम्मीदवारों ने पहले ही सिंबल लेकर नामांकन पत्र भर दिए थे। पहले चरण में दस सीटों पर महापौर पद के लिए चुनाव होगा। बसपा ने दस में से छह मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारकर अपना गणित साफ कर दिया है। इन छह सीटों पर तो पूरा फोकस दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर ही रहने वाला है। बसपा थिंक टैंक की मंशा है कि मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर उसका और सपा का मुकाबला कड़ा हो जाए। पिछले चुनाव की बात करें तो उक्त दस नगर निगमों में महापौर पद के लिए हुए चुनाव में बसपा मात्र तीन स्थानों पर ही मुख्य मुकाबले में दिखी थी। केवल आगरा, झांसी और सहारनपुर में बसपा उम्मीदवार पिछले साल दूसरे स्थान पर रहे थे। सात मुकाबलों में बसपा उम्मीदवार सीधी टक्कर में ही नहीं थे। खास तौर पर जिन छह निगमों में इस बार बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं उनमें से चार में पिछली बार बसपा उम्मीदवार टॉप तीन में भी जगह नहीं बना सके थे। फिरोजाबाद, प्रयागराज, मुरादाबाद व वाराणसी में बसपा तीसरे स्थान तक भी ठहर नहीं सकी थी। बसपा के दस निगमों के उम्मीदवारों में आगरा से लता, मथुरा से राजा मोहतासिम अहमद, फिरोजाबाद से रुखसाना बेगम, झांसी से भगवान दास फुले, सहारनपुर से खादिजा मसूद, लखनऊ से शाहीन बानो, वाराणसी से सुभाष चंद्र माझी, प्रयागराज से सईद अहमद, मुरादाबाद से मोहम्मद यामीन और गोरखपुर से नवल किशोर नाथानी शामिल हैं।
उधर, बीजेपी इस बार भी मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने के लिए आगे नहीं आई। उसके द्वारा जारी लिस्ट में गोरखपुर से डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव, प्रयागराज से उमेश चंद्र तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से अशोक तिवारी को मेयर पद का उम्मीदवार बनाया गया है। फिरोजाबाद से पार्टी ने कामिनी राठौर, आगरा से हेमलता दिवाकर, लखनऊ से सुषमा खरकवाल को उम्मीदवार बनाया गया है। सहारनपुर से डॉ. अजय कुमार को, मथुरा-वृन्दावन से विनोद अग्रवाल को, झांसी से चतुर्भज आर्य को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी ने कई मौजूदा मेयरों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया है और जातीय समीकरण का भी ख्याल रखा है। पार्टी ने दस में से 6 कैंडिडेट सवर्ण समुदाय से उतारे हैं तो दलित और ओबीसी को सिर्फ उनके लिए आरक्षित सीटों से उतारा है। पार्टी ने अपने कोर वोट बैंक और शहर के सियासी समीकरण को देखते हुए सवर्ण समुदाय पर ही सबसे बड़ा भरोसा जताया है। बीजेपी ने अपने ज्यादातर मौजूदा मेयरों को टिकट नहीं दिए हैं और उनकी जगह पर नए चेहरों को उतारा है और संगठन से जुड़े पुराने व वफादार नेताओं को तवज्जो दी है। ऐसे में देखना है कि अब बीजेपी क्या अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा पाएगी?
इससे पहले समाजवादी पार्टी ने लखनऊ सहित आठ जिलों के लिए मेयर पद के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी थी। सपा ने लखनऊ से वंदना मिश्रा को मेयर प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह गोरखपुर से काजल निषाद, प्रयागराज से अजय श्रीवास्तव, झांसी से रघुवीर चौधरी, मेरठ से सीमा प्रधान, शाहजहांपुर से अर्चना वर्मा, फिरोजाबाद से मशहूर फातिमा और अयोध्या सीट से आशीष पांडेय को मेयर उम्मीदवार बनाया है।
-अजय कुमार
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