माल्या को राज्यसभा पहुँचाने में कांग्रेस, भाजपा ने की मदद, अब पल्ला झाड़ रहे हैं

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अब दोनों दल एक−दूसरे पर माल्या को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं। माल्या को राज्यसभा का सदस्य बनाने में भी दोनों ही दल समान भागीदार रहे हैं। दोनों दलों के नेताओं ने माल्या को जिता कर राज्यसभा का सदस्य बनवाया।

कारोबारी भ्रष्टाचार के मामले में देश के लगभग सभी राजनीतिक दलों की हालत हमाम में नंगे होने जैसी है। कांग्रेस हो या भाजपा, सभी दल उद्योगपतियों को कानून के इतर छूट देने के मामले में बराबर हैं। कारोबारी विजय माल्या के मामले में तो सारे रिकार्ड ही ध्वस्त हो गए। सत्ता में रहते हुए दोनों ही दलों ने माल्या की मिजाजपुर्सी में कसर नहीं छोड़ी। उसे सिर−आंखों पर बिठाया। अब माल्या को लेकर नए−नए खुलासे होने पर दोनों ही दल देश के लोगों की आंखों में धूल झौंकने की कोशिश में लगे हुए हैं। 

माल्या के घोटाले करने और विदेश भागने के लिए एक−दूसरे को दोषी ठहराने में जुटे हुए हैं। नेताओं की तासीर बन चुकी है कि मिलीभगत से पहले तो बड़े आर्थिक अपराधियों की मेहमान नवाजी करो, जब घोटाले का कोई रहस्य खुल जाए तो इसके लिए विपक्षी को दोषी करार दो। माल्या के मामले में भी ठीक यही हो रहा है। कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए पुराने लोन की वसूली के बजाए नए लोन दिलाने में पैरवी की। वहीं केंद्र की भाजपा सरकार ने यह जानते हुए भी कि माल्या बड़ा डिफॉल्टर है, उसके विदेश भागने की तरफ से मुंह फेरे रही। केंद्र सरकार ने माल्या के भागने के मामले में सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय के एक भी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। 

दूसरे शब्दों में कहें तो इन एजेंसियों ने ही उसे भागने का पूरा मौका दिया। इसका खुलासा इसी बात से होता है कि पहले माल्या के खिलाफ सभी एयरपोर्टस पर निषेध करने का एलर्ट जारी किया गया फिर इसे वापस ले लिया गया। यह किसके कहने से और क्यों किया गया, इसका जवाब देने से केंद्र सरकार कतरा रही है। अपने दामन पर लगे दागों को देखने के बजाए भाजपा अब कांग्रेस का दामन दिखा रही है, जोकि पहले से ही पूरा काला पड़ चुका है। चुनाव नजदीक आते देख कर दोनों ही दल पूरी ताकत से एक−दूसरे के खिलाफ मुद्दे तलाशते हुए आरोप−प्रत्यारोपों में मशगूल हैं। दोनों ही दल एक−दूसरे को भ्रष्टाचार का आईना दिखा कर अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने में जुटे हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में घेराबंदी करके कांग्रेस को सत्ता से बाहर धकेल चुकी भाजपा अभी भी कांग्रेस के कार्यकाल को ही दोषी ठहरा रही है। 

वित्त मंत्री से मुलाकात के नए खुलासे के बाद माल्या के फरार होने में सहयोग करने के मामले में केंद्र सरकार पूरी तरह बचाव की मुद्रा में आ गई है। आश्चर्य तो यह है कि दस हजार करोड़ लेकर भागे माल्या के मामले में केंद्र सरकार कांग्रेस को दोषी ठहरा रही है पर सच्चाई सामने लाने के लिए एक बार भी किसी निष्पक्ष तीसरे पक्ष से जांच कराने की जेहमत नहीं उठाई। खुद को दूध की धुली साबित करने में पूरी ताकत लगा रही केंद्र सरकार यदि माल्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराती तो सबकी कलई खुल जाती। 

इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि माल्या को बैंकों का माल हड़पने और विदेश भागने में दोनों ही दलों का हाथ रहा है। माल्या ने बैंकों को ठगने की शुरुआत कांग्रेस के शासन में की और भागने तक आखिरी अंजाम इसे केंद्र की भाजपा सरकार के दौरान दिया। यदि जांच होती है तो दोनों ही दल माल्या की मदद के लिए बराबर के दोषी ठहराए जा सकते हैं। ऐसी जांच से बचने के लिए खासतौर पर केंद्र सरकार कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए अपनी जिम्मेदारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ पारदर्शिता की नीति से पल्ला झाड़ने में लगी हुई है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के इतिहास में कोई भी नया अध्याय जुड़ने पर आश्चर्य नहीं है। क्योंकि लंबे अर्से तक सत्ता में रही कांग्रेस भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई। कोलगेट से लेकर राष्ट्रमंडल घोटालों तक कांग्रेस बशर्मी धारण किए रही। असल सवाल तो केंद्र की भाजपा सरकार से है। जिसने न खाएंगे और न ही खाने देंगे की नीति अपना कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। इसके बावजूद विजय माल्या और हीरा कारोबारी नीरव मोदी आम लोगों की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ डकार कर आसानी से रफूचक्कर हो गए। अब केंद्र सरकार ईमानदारी और निष्पक्षता से जांच के नाम पर लीपापोती करने में जुटी हुई है। 

ताजा मामला माल्या के वित्तमंत्री अरूण जेटली से संसद के गलियारे में वार्तालाप करने का है। कांग्रेस ने इस मामले में केंद्र सरकार को घेरने में जुटी हुई है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्रीय वित्त मंत्री जेटली ने माल्या को जानबूझ कर देश छोड़ कर भाग जाने का मौका दिया। कांग्रेस वित्त मंत्री से इस्तीफा मांग रही है। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस यह बताने को तैयार नहीं है कि आखिर उनके कार्यकाल में माल्या को रोकने के क्या प्रयास किए गए। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस ने माल्या के गैरवाजिब ऋण स्वीकृत कराने की पैरवी की। पुराने लोन नहीं चुकाने के बाद फिर से नए लोन देने के लिए पत्र लिखे। भाजपा इससे दो कदम आगे निकल गई और माल्या को भागने के मामले में जानबूझ कर आंखें मूंदे बैठी रही। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने सलाह दी कि सुप्रीम कोर्ट से माल्या का पासपोर्ट रूकवाने की कवायद कराई जाए। इस सलाह को एसबीआई ने दरकिनार कर दिया और माल्या को भागने का मौका मिल गया। 

अब दोनों दल एक−दूसरे पर माल्या को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं। माल्या को राज्यसभा का सदस्य बनाने में भी दोनों ही दल समान भागीदार रहे हैं। दोनों दलों के नेताओं ने माल्या को जिता कर राज्यसभा का सदस्य बनवाया। इस मामले में दोनों ही दलों की बोलती बंद है कि आखिर किस कारण माल्या के पक्ष में वोट डाले गए। यह भी जाहिर है कि माल्या अपने कारोबारी मसले हल करने के लिए देश-विदेश में शाही पार्टियां करने में माहिर था। खुलासा तो इस बात का भी होना चाहिए कि माल्या की ऐसी पार्टियों का लुत्फ किस दल के कौन-से नेताओं ने उठाया। इसके एवज में माल्या ने क्या पाया, यह अब जगजाहिर है। ऐसे मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मौन हैं। कांग्रेस अपने किए की सजा भुगत रही है। मतदाताओं ने पिछले चुनावों में उसके कारमानों को सही मानते हुए, इसकी सजा भी दे दी। अब बारी भाजपा की है। भ्रष्टाचार विरोधी छवि को लेकर मतदाताओं के सवालों के कटघरे खड़ी भाजपा लंबे समय तक आरोपों से बच नहीं पाएगी। मतदाता कांग्रेस को सबक सिखा सकते हैं तो भाजपा भी उनके लिए कोई पवित्र गाय नहीं है।

-योगेन्द्र योगी

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