कांग्रेस ने जहां क्षेत्रीय दलों के आगे घुटने टेके वहां साफ हो गयी

congress surrenders before regional parties
विजय कुमार । May 19 2018 1:53PM

कर्नाटक में कांग्रेस की इच्छा है कि उन्हें भले ही सत्ता न मिले, पर भा.ज.पा. वालों को बिल्कुल न मिले। इसलिए उन्होंने नंबर तीन वाले को कंधे पर बैठाने का निर्णय लिया। यद्यपि कांग्रेस ने जहां भी क्षेत्रीय दलों के आगे घुटने टेके, वहां वे साफ हो गये।

कई साल पहले एक किताब लिखने के लिए मैं एक आश्रम में लगभग 15 दिन एकांत में रहा। उस आश्रम में तथा उसके आसपास कई संस्कृत विद्यालय थे। शाम को मैं घूमने जाता था, तो वहां के छात्र खेलते मिलते थे। कुछ दिन में मेरी उनसे दोस्ती हो गयी। एक दिन एक छात्र ने बड़ा रोचक छंद सुनाया, ‘‘भगवान करे जजमान मरे, दस-बीस रुपैया हाथ लगे।’’ यानि जजमान मरे तो मरे; पर अपना लाभ होना चाहिए। 

आज ये प्रसंग इसलिए याद आया कि कर्नाटक में बात इससे भी काफी आगे निकल गयी है। वहां पिछले दिनों हुए चुनाव में भा.ज.पा. को सबसे अधिक 104 सीटें मिलीं। नंबर दो पर 78 सीट लेकर कांग्रेस और तीन पर 38 सीटों के साथ कुमारस्वामी रहे। भा.ज.पा. और उसके नेता येदियुरप्पा जहां किसी भी कीमत पर सरकार बनाने पर तुले थे, तो कांग्रेस वाले उनकी राह रोकने को तत्पर। राहुल बाबा पूरी जिम्मेदारी गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को देकर आराम करने चले गये। अब अच्छा हो या बुरा, उनके लिए वहां बचा ही क्या था ?

लेकिन इन नेताओं ने बिना सोचे समझे नंबर तीन की पार्टी के नेता कुमारस्वामी को बिना शर्त समर्थन दे दिया। चूंकि उनका उद्देश्य खुद सरकार बनाने से भी अधिक भा.ज.पा. को सरकार नहीं बनाने देना था। लेकिन दिल्ली में बैठे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के दिल के तार कर्नाटक के राज्यपाल से सीधे मिलते हैं। इसलिए राज्यपाल महोदय ने येदियुरप्पा को शपथ दिला दी। अब कांग्रेसी छाती पीटते हुए उस संविधान की दुहाई दे रहे हैं, जिसे उन्होंने सैंकड़ों बार धज्जी-धज्जी किया है। अंतर इतना ही है कि तब उनका हाथ ऊपर था और आज वह हाथ कमल की टोकरी के नीचे दबा हुआ है। 

कांग्रेस की इस हरकत को देखकर एक किस्सा याद आता है। एक सेठ अपने पड़ोसी से बहुत जलता था। वह चाहता था कि किसी भी तरह पड़ोसी का नुकसान हो। एक दिन एक तांत्रिक उसके घर आया। सेठ ने उसकी खूब सेवा की। जाते समय उसने सेठ को एक मंत्र लिया। उसके जप से सेठ मनचाही चीज पा सकता था; पर उसके साथ ये शर्त जुड़ी थी कि जो लाभ सेठ को होगा, उससे दोगुना उसके पड़ोसी को भी होगा।

सेठ ने उसे स्वीकार कर लिया और तांत्रिक के जाते ही मंत्र बोलकर दो किलो सोना मांगा। तुरंत ही उसकी झोली में सोना आ गिरा; पर शाम को पता लगा कि पड़ोसी के घर में चार किलो सोना आ गया है। सेठ ने सिर पीट लिया; पर अब कुछ नहीं हो सकता था।

अगले कुछ दिन में सेठ ने गाय, बैल, खेत और बहुत कुछ मांगा; पर हर चीज दोगुनी मात्रा में पड़ोसी को भी मिल गयी। सेठ ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसने अपने घर के आगे एक गहरा गड्ढा खुदवाने की इच्छा व्यक्त की। तुरंत ही उसके घर के आगे एक और पड़ोसी के घर के आगे दो गड्ढे खुद गये। अब सेठ ने अपनी एक आंख फूटने की मांग की। यह पूरा होते ही सेठ की एक, और पड़ोसी की दोनों आंखें फूट गयीं। अगले दिन नेत्रहीन पड़ोसी उस गड्ढे में गिर कर अपने हाथ-पैर तुड़ा बैठा, तब जाकर सेठ को चैन मिला। 

यही हाल कर्नाटक में कांग्रेस का है। उनकी इच्छा है कि उन्हें भले ही सत्ता न मिले, पर भा.ज.पा. वालों को बिल्कुल न मिले। इसलिए उन्होंने नंबर तीन वाले को कंधे पर बैठाने का निर्णय लिया। यद्यपि कांग्रेस ने जहां भी क्षेत्रीय दलों के आगे घुटने टेके, वहां वे साफ हो गये। उ.प्र., बिहार, बंगाल आदि इसके उदाहरण हैं; पर बात वही है कि पड़ोसी की दोनों आंख फूटनी चाहिए। 

हमारे शर्मा जी यों तो पक्के कांग्रेसी हैं; पर ये तमाशा देखकर वे बहुत दुखी हैं। उनका कहना है कि राहुल बाबा की ऊपरी मंजिल खाली है। उनके बस की पार्टी चलाना है नहीं, और उनके रहते कांग्रेस में कोई दूसरा अध्यक्ष बन नहीं सकता। इसलिए अब वे चाहते हैं कि एक बार कांग्रेस का ब्लैक बोर्ड पूरी तरह साफ ही हो जाए। जैसे खर-पतवार जलकर खाद बन जाती है और अगली फसल अच्छी होती है। ऐसे ही कांग्रेस का एक बार समाप्त होना बहुत जरूरी है। यानि बात वही है कि ‘‘भगवान करे जजमान मरे, दस-बीस रुपैया हाथ लगे।’’

रुपया किसी के हाथ लगेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने; पर इससे देश का भला जरूर होगा।    

-विजय कुमार

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