सोशल मीडिया के इस दौर में न जाने कहां खोते चले जा रहे हैं संस्कार

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संतोष उत्सुक । Sep 18 2018 12:21PM

अब उस युवक ने माफी मांगते हुए, बड़े अदब से सुरेन्द्र के पांव छुए और आशीर्वाद लिया। सामने खड़े एक बुजुर्ग ने कहा आपने बहुत सही काम किया, इन बच्चों को सही दिशा दिखाने बताने वालों की बेहद ज़रूरत है।

अपने परिचित सुरेन्द्र के दफ्तर में किसी काम से जाना हुआ। हम दोनों बात कर रहे थे कि एक स्मार्ट युवक आया और चाचू नमस्ते कह कर मेज के इस तरफ से ही सुरेन्द्र के टखनों में हाथ लगाने की कोशिश करने लगा मगर उसकी उंगलियों के पोर सरेन्द्र के पेट को भी छू न सके। युवक ने अपनी व्यवहारिक समझ के अनसार अपने प्रिय चाचू के चरण स्पर्श कर दिए थे। हंसते हुए सरेन्द्र ने कहा बेटा चरण स्पर्श करना चाहते हो तो वाकई किया करो और वह कुर्सी से उठ, थोड़ा इधर खड़ा हो गया बोला लो अब करो। अब उस युवक ने माफी मांगते हुए, बड़े अदब से सुरेन्द्र के पांव छुए और आशीर्वाद लिया। सामने खड़े एक बुजुर्ग ने कहा आपने बहुत सही काम किया, इन बच्चों को सही दिशा दिखाने बताने वालों की बेहद ज़रूरत है।

सुरेन्द्र बोला आप सही कहते हो हम सब ने मिलकर आपसी व्यवहार मटियामेट कर डाला है। किसने किससे कब कहां किस के सामने कैसे पेश आना है कैसे बात करनी है कैसे व्यवहार करना है, अधिकांश को समझ नहीं। पांव छूकर आशीर्वाद लेना किसी ज़माने में कितनी महत्वपूर्ण व्यवहारिक क्रिया होती थी किसी को नहीं पता। बात सिर्फ पांव छूने की नहीं है। सड़क पर चलने, बस में चढ़ने उतरने, ड्राइव करने से लेकर टेलीफोन पर बतियाने, खाने पीने, नाचने गाने, हंसी मज़ाक, अभिवादन यहां तक कि लड़ाई झगड़े में भी व्यव्हार शामिल है। आपने सुना ही होगा कि लखनऊ के दो नवाबों की गाड़ी पहले आप पहले आप करते निकल गई थी और नवाबों की बहस से भी सलीक़ा कभी बाहर नहीं होता था। मगर आज स्वार्थ, भागदौड़ व विकास की मारकाट के कारण ही व्यवहार का मौसम गड़बड़ा गया है। हर तरफ रास्ते उबड़ खाबड़ हो गए हैं यहां वहां कांटे उग आए हैं।

गलती कहां हुई। बच्चे जब छोटी–छोटी उदण्डताएं करते हैं हम सभी मज़ा लेते हैं मगर यदि यही उदण्डताएं सही समय पर संपादित न की जाएं तो बच्चे का व्यवहार किस दिशा में कितना किस तरह फैलेगा बताने की जरूरत नहीं पर समझने की है। कभी अच्छे सांस्कृतिक बदलाव के प्रेरक माने जाने वाले नेता, कलाकार, अभिनेता व नेत्रियों ने पैसा कमाऊ सोच के बहाने समाज में नई शैली के सांस्कृतिक बदलावों के माध्यम से काफी व्यवहारिक प्रदूषण बढ़ाया है।

हंसी मज़ाक एक बेहद जरूरी हिस्सा है व्यवहार का, मगर हास्य चुटकियों के नाम पर कितने अर्थ लिए, क्या क्या सुनाया और बड़े आनन्द से सुना जा रहा है उसे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी देख भी रहे हैं। हास्य सीरियलस के विषयों व फिल्मिंग शैली ने कैसे, अपरिपक्व फूहड़ व उदण्ड व्यवहारिक बदलाव लाए हैं, हम सब समझते हैं मगर अन्जान हो चुप बैठे हैं। सीरियल, फिल्मों व अन्य कार्यक्रमों में पति-पत्नी या कहिए स्त्री पुरूष के संवेदनशील, एकांतमय, अप्रकट व्यवहारिक हिस्सों को एक खुली किताब बना दिया है। ऐसा माना जाता है कि दिमाग पर देखने का सबसे ज्यादा असर होता है सो हुआ भी है। बचपन की सौम्यता व सहजता को लील कर हमने बालपन को समय से पहले युवा कर दिया है। पति-पत्नी, बच्चों, बुजुर्गों के बीच का व्यवहारिक सामंजस्य तो काफी पहले खत्म कर दिया था अब एक छत के नीचे रहने वाले दो प्राणियों की आपसी कुंठित, संकुचित, व्यवसायिक सोच के कारण वे तीसरा प्राणी नहीं चाहते। युवतियां विवाह नहीं चाहतीं, पड़ोसी पड़ोसी के घर नहीं जाता, लोग विवाह समारोहों में मिलकर खुश हो लेते हैं। भगवान के साथ हमारा व्यवहार सौ प्रतिशत स्वार्थपूर्ण हो चला है। प्रवचकों का व्यवहार उनके अपने दुनियावी स्वार्थों के लिए है।

तकनीक की रसोई में उपलब्ध संसाधनों ने व्यवहार को संपादित करने में खूब खेल खेला है और अब यही सुविधा दुविधा बन चुकी है। इलोक्ट्रोनिक गैजेट्स के दीवानों की परेशानी बढ़ चली है और कितनों को उपचार की शरण में जाना पड़ा है। 

अभी भी देर नही हुई, संजीदा व ईमानदार प्रयास हों यानी दिल से कोशिश की जाए तो व्यवहार की पतझड़ को बहार में बदला जा सकता है। इसके लिए हमें दूसरों की तरफ न देखकर स्वयं से शुरूआत करनी होगी यानी संबंधो में व्यवहारिक रवानगी बनाए रखने के लिए यदि आप के पड़ोसी आप को चाय या खाने पर नहीं बुला पा रहे तो यह अच्छी शुरूआत आप किजीए न। यह ठीक वैसी ही बात हुई कि दान की शुरूआत अपने घर से होती है। इस व्यवहारिक प्रयास में हम बचपन को शुरुआत से शामिल कर सकते हैं उन्हें हम संयमित, संस्कारित, भावनापूर्ण, अनुशासित माहौल देंगे तो निस्संदेह वैसा ही व्यवहार उनके मानसिक आंगन में उगेगा। वर्तमान न सुधर सका कम से कम आने वाली नस्ल तो बेहतर व्यव्हार करेगी।

मेरे मित्र बता रहे थे, मैंने कल सुबह अपनी पत्नी को कहा ‘गुड मॉर्निंग’। वो बोली क्या, उन्होंने फिर कहा गुड मॉर्निंग जनाब। पत्नी का जवाब था, यार आपको व्हट्स एप पर भेज तो दिया है। मेरे दोस्त ने कहा, कई दिन से पर्सनली नहीं कहा। तब पत्नी ने कहा ‘ठीक है गुड मॉर्निंग’। अच्छी शुरूआत के लिए हर क्षण उत्तम है।

-संतोष उत्सुक

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