मासूमों की मौत पर कब तक सोती रहेगी सरकारें

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चिकित्सकों के लिए कितना आसान रहा अपनी नाकामी छुपाने के लिए सारा दोष सरकार की व्यवस्थाओं के माथे मंड दिया। चिकित्सक पाक साफ, अस्पताल की व्यवस्था, एवं खराब उपकरण जिस से सरकार का वास्ता है जिम्मेदार।

मासूम बच्चे की मौत का इंतजार करती माँ के दिल पर क्या बीतेगी, वही जान सकती है जो भुगती है। कह दिया जाये की बच्चे की मौत कभी भी हो सकती है। माँ अपने लाल को तड़पते देखती रहती है और बच्चा सांसे छोड़ जाता है। चिकित्सक मरते मासूम को बचाने के प्रयास तक नहीं करता। नवजात शिशु को गर्मी चाहिए तो हीटर नहीं जब कि स्टाफ के लिए हीटर काम में आ रहा है। जीवनदायी आक्सीजन चाहिए तो सप्लाई लाइन खराब। वेंटिलेटर की जरूरत पड़े तो खराब। पर्याप्त बेड, कम्बल आदि जरूरी सामान का अभाव। अन्य आवश्यक इलाज के उपकरण भी असेवा योग्य। ऐसी अमानवीय एवं बदहाली के हालात सामने आए कोटा के जेके लोन महिला एवं शिशु चिकित्सालय के जब पिछले 35 दिनों में 107 शिशुओं ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया।

चिकित्सकों के लिए कितना आसान रहा अपनी नाकामी छुपाने के लिए सारा दोष सरकार की व्यवस्थाओं के माथे मंड दिया। चिकित्सक पाक साफ, अस्पताल की व्यवस्था, एवं खराब उपकरण जिस से सरकार का वास्ता है जिम्मेदार। ऐसा करते समय जरा भी शर्म नहीं आई कि वे भी तो वेतन सरकार से ही लेते हैं। वे भी सरकारी व्यवस्था का ही हिस्से हैं। उनकी लापरवाही से वे कैसे बच सकते हैं। डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया।

अक्सर देखने को मिलता है कि सीनियर डॉक्टर किसी न किसी प्रशानिक या अन्य कार्य से अपनी जिमेदारी रेजिडेंट्स डॉक्टर पर डाल देते हैं। ड्यूटी समय में नदारद रहने के आदि हो गए हैं। अस्पताल में उनका मन नहीं लगता केवल अपने घर के क्लीनिक की चिंता। अपना क्लिनिक धड़ल्ले से चलते हैं। घर पर दिखा कर भर्ती होने पर तो फिरभी इलाज मिल जाता है।

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चिकित्सालय में उपकरण खराब थे तो ठीक करने का दायित्व किसका था। अव्यवस्था को सुधारने की जिमेदारी किस की थी। क्यों समय रहते कदम नहीं उठाए गये। अस्पताल प्रभारी एवं एचओडी शिशु रोग में तालमेल का अभाव उसका क्या। फिर क्या ये सब मेडिकल कॉलेज प्राचार्य से छिपा था। व्यवस्थाओं को सुधारने में उपलब्ध छ करोड़ की धनराशि का उपयोग करने के लिए क्या बंदिश थी। समय रहते किसी जिमेदार ने कुछ नहीं किया और परिणाम उन माँ-बाप को भुगतना पड़ा जिनके लाल मौत के गाल में समा गए,जिसके सीधे तौर पर कर्ता -धर्ता जिम्मेदार हैं वे अपनी लापरवाही और जिमेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते।

मासूम बच्चों की मौतों पर राजस्थान हिल गया और इस भयावह घटना की गूंज दिल्ली तक पहूंची। जांच के लिए केंद्र एवं राज्य से टीमें आई। देर-सबेर राज्य के मंत्रीगण, उप मुख्यमंत्री एवं लोकसभा अध्यक्ष आये, जानकारी ली, व्यवस्थाएं देखी, सुधार के निर्देश दिये, पीड़ित परिवारों से भी मिले और ढांढस बंधाया। शुरू से ही फोन से सम्पर्क में रहे, जानकारी लेते रहे निर्देश देते रहे। प्रदर्शन भी किये गए। मासूमों की मौत पर राजनीति चली और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी चल रहा हैं। राज्य के मुख्यमंत्री भी चिंता में हैं। सभी राजनेताओं ने मासूमों की मौत पर गंभीर चिंता वयक्त की।

इन सब से मासूमों की मौत की भरपाई नहीं हो सकती। जिनके लाल चिकित्सकों की लापरवाही एवं बदहाल व्यवस्था से मौत के गाल में समा गये उनके परिवार को मुआवजे का एलान कर सरकार को उनके गम कम करने आगे आना चाहिए। क्यों नहीं सरकार इस घटना के मध्य नज़र एक बार पूरे प्रदेश के चिकित्सालयों की व्यवस्था की जांच कराने का निर्णय ले। जिस से किसी दूसरी जगह ऐसी धटना नहीं घटे। सरकार को कड़ा निर्णय लेते हुए जे के चिकित्सालय कोटा के लापरवाह एवं अकर्मण्य चिकित्सकों एवं स्टाफ को कोटा के बाहर का रास्ता दिखाए। अस्पताल की व्यवस्था में अति शीघ्र सर्वोच्च प्राथमिकता पर सुधार सुनिश्चित हो जिस से मासूमों की मौतों का सिलसिला थम सके।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

पत्रकार

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