साक्षात्कारः वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एपी सिंह ने श्रद्धा मर्डर मामले की कमजोरियों को उजागर किया

 Lawyer AP Singh
ANI

निर्भया कांड के आरोपियों का केस लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एपी सिंह श्रद्धा हत्याकांड को ब्लाइंड मानते हैं। हालांकि वैसा प्रतीत भी होता है। क्योंकि श्रद्धा मर्डर केस जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, पुलिस के सामने नई-नई चुनौतियां भी खड़ी होने लगी हैं।

निर्भया कांड के आरोपियों का केस लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एपी सिंह श्रद्धा हत्याकांड को ब्लाइंड मानते हैं। हालांकि वैसा प्रतीत भी होता है। क्योंकि श्रद्धा मर्डर केस जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, पुलिस के सामने नई-नई चुनौतियां भी खड़ी होने लगी हैं। आरोपी अब उनकी रिमांड में नहीं है, न्यायिक हिरासत में है। आफताब अमीन पूनावाला अब जांच में सहयोग भी नहीं कर रहा, पूर्व में दिए अपने बयानों से भी पटलने लगा है। पॉलीग्राफ के बाद नार्को टेस्ट हुआ है। पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने वकील एपी सिंह से बातचीत में जाना कि क्या ये केस भी मिस्ट्री बनेगा? हमने जाना कि क्यों इस केस को ब्लाइंड मानकर चल रहे हैं?

प्रश्नः आपको क्यों लगता है श्रद्धा मर्डर केस दिल्ली पुलिस के हाथ से निकल चुका है?

उत्तर- मैंने ये नहीं कहा कि दिल्ली पुलिस केस को उसके अंजाम तक नहीं ले जा पाएगी। लेकिन वहां तक पहुंचने में बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी। केस एकदम ब्लाइंड है सच्चाई का अता-पता नहीं है। मीडिया में जो लिखा जा रहा है, दिखाया जा रहा है, केस की सच्चाई उससे कहीं अलहदा है। सच्चाई सिर्फ दो लोग ही जानते हैं, एक आरोपी आफताब, दूसरी श्रद्धा जो अब है नहीं। छह माह पुराने इस केस के सबूतों का नामो निशान मिट चुके हैं। पुलिस को किसी भी सूरत में सारे के सारे सबूत जिंदा करने ही होंगे, जमीन से खोदो, चाहे आसमान से लेकर आओ, तभी केस का कुछ बन पाएगा?

  

प्रश्नः पर केस की वास्तविकता तो सब कुछ उजागर कर रही है?

उत्तर- देखिए हिंदुस्तान का अदालती सिस्टम भावनाओं से संचालित नहीं होता, उसे ठोस आधार और सबूत चाहिए होते हैं। आपको पता है ये केस क्यों उछला, सिर्फ मीडिया के चलते। श्रद्धा केस मीडिया के कारण ही जिंदा है इसलिए जमकर ट्रोल हो रहा है। मीडिया दिखाना और लिखना बंद कर दे तो लोग अगले ही दिन भूल जाएंगे कि कौन आफताब और कौन श्रद्धा। कैमरों के हटने के बाद ही जांच-पड़ताल भी कछुए की भांति चलने लगेगी। इसी का इंतजार पुलिस कर भी रही है।

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प्रश्नः आप इसे ब्लाइंड केस क्यों समझते हैं?

उत्तर- ब्लाइंड नहीं तो और क्या है? सबूतों के नाम पर पुलिस के पास कुछ भी तो नहीं है। आफताब का इकबालिया बयान, जो कभी भी पलट सकता है। अब उसे उसका वकील मिल गया है, वो उसे उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाएगा, जैसा कहा जाएगा, वैसा वो बोलेगा। केस छह माह पुराना है, ऐविडेंस के नाम पर आरोपी ने कुछ भी नहीं छोड़ा। मात्र बयानों के आधार पर केस नहीं सुलझ सकता। कोर्ट में हम रोजाना देखते हैं कि आरोपी पुलिस को जो बयान देते हैं वो कोर्ट में आकर मुकर जाते हैं। तब वो सीधे पुलिस पर टॉचर्र करने का भी आरोप लगा देते हैं।

प्रश्नः नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट इस केस को कितना मदद देंगे?

उत्तर- कोर्ट मान्यता नहीं देती इन दोनों जांचों को। हां, पुलिस को थोड़ी सहूलियतें जरूर हो जाती हैं। पर, ये केस को न्याय फिर भी नहीं दिला सकते। पुलिस को केस की तह तक जाना होगा। फॉरेंसिक, फिंगर प्रिंट, बॉडी के मिले पार्ट्स का श्रद्धा के पिता या माता के डीएनए से मैचिंग होने पर ही कुछ संभावनाएं जग पायेंगी। ऐसा होना भी मुश्किल-सा दिखता है।

प्रश्नः आफताब ने पहले दिन ही मर्डर की बात स्वीकारी थी, उसका क्या?

उत्तर- आपके सामने बोला था क्या? लोकल एसडीएम के सामने स्वीकारा था क्या अपना गुनाह, शायद नहीं? ये सब बनावटी बातें हैं। मुझे याद है ये मीडिया ने ही बताया था शुरुआत में। पुलिस की बनाई थ्योरी पर अदालत कोई निर्णय नहीं देती। कोर्ट ने पुलिस को आफताब की दो दफे रिमांड दी, तब भी कुछ नहीं निकलवा पाई। अब न्यायिक हिरासत में है, वकील मिल गया, जहां वो खुद को सुरक्षित मानने लगा है।

प्रश्नः आफताब ने अपनी जान को खतरा भी बताया है?

उत्तर- बिल्कुल बताएगा? कई बातें उनके हक में जाती दिखती हैं। कोर्ट के बाहर लोग उस पर तलवार से हमला करेंगे, तो वो बोलेगा ही। देखिए, इस तरह की हरकतें उसके पक्ष में ही जाएंगी। इसके बाद कोर्ट उसकी सुरक्षा और मजबूत कर देगा। जेल में भी अलग बैरक में रहेगा। पुलिस भी पूछताछ के लिए आसानी से कोर्ट से इजाजत नहीं ले पाएगी। तब कोर्ट कहेगा, तुम्हारे पास आरोपी सुरक्षित नहीं है, जान का खतरा है।

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प्रश्नः अगर आपको आफताब का केस मिलता तो लड़ते क्या?

उत्तर- मुझे केस लड़ने में क्या दिक्कत थी? वकालत का पेशा है हमारा। प्रत्येक केस को मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। निर्भया के आरोपियों का भी केस लड़ा था। तब आपने देखा होगा, कितना विरोध हुआ था मेरा। देशद्रोही ना जाने क्या-क्या बोला गया मुझे। पर मैं ज्यादा परवाह नहीं करता। क्योंकि मैं अदालत और कानून का सम्मान करता हूं, दोनों के दायरे में रह कर अपने पेशे में मस्त रहता हूं।

प्रश्नः बचने के रास्ते हैं आफताब के पास?

उत्तर- बच भी सकता है। फांसी तो शायद ही हो? मैंने पहले भी कहा है कि केस पूरी तरह से ब्लाइंड है। मिस्ट्री में तब्दील होकर सरकारी फाइलों में सिमट सकता है। फिल्म निर्माताओं के लिए फिल्म बनाने का जरिया बन जाएगा ये केस और कुछ नहीं।

-बातचीत में जैसा, वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एपी सिंह ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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