साक्षात्कारः सुनील शास्त्री ने कहा- शास्त्रीजी की मृत्यु की अनसुलझी कहानी से पर्दा हटाया जाये

sunil shastri

''भारत का प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल में भी किसान बना रहा। बाबूजी का पालन पोषण विशुद्ध हिन्दू संस्कारों में हुआ लेकिन मन उनका ऐसा खुला आकाश था जहां सभी धर्मों की अच्छी बातों का प्रकाश हमेशा उजाला किए रहता था।''

मौत की एक ऐसी कहानी जो कहीं कागजी दस्तावेजों में गुम है। गुम हुई है या सच्चाई पर पर्दा डाला गया, किसी को कुछ पता नहीं? पर उस मिस्ट्री सच्चाई को ना सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का परिवार जानना चाहता है बल्कि देश के एक-एक व्यक्ति को वर्षों से बेसब्री से इंतजार है। जब दो अक्टूबर को शास्त्री जी का जन्मदिन मनाया जाता है, तब उनका परिवार स्तब्ध हो जाता है, पुरानी यादों में खो जाता है। सरकारें आती हैं और चली जाती हैं। पर, किसी ने भी शास्त्री की मौत की असल वजहें को सुलझाने का प्रयास नहीं किया। लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री से उन्हीं उलझे सवालों को डॉ. रमेश ठाकुर ने एक बार फिर कुरेदा। पेश हैं इस साक्षात्कार के प्रमुख अंश-

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प्रश्न- वही पुराना और रटा सवाल, क्या आपको थोड़ी बहुत उम्मीद है कि आपके पिताजी की मौत की अनसुलझी कहानी कभी सुलझेगी?

उत्तर- उम्मीदें अब धुंधली पड़ती जा रही हैं? पूर्व के सभी प्रधानमंत्रियों से गुहार लगाई, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कई मर्तबा खत लिखा। पर, जवाब किसी ने नहीं दिया। बाबूजी की मौत की कहानी से पर्दा हटाने की मांग हम ही नहीं करते, पूरा देश करता है। हर कोई ताशकंद की उस रात की घटना को जानना चाहता है जब उनकी मौत हुई थी। मैं वर्षों से कहता आया हूं कि सच्चाई कुछ ऐसी है जिसे उजागर करने से तबाही आ सकती है। उनकी मौत की सच्चाई को लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे, पूरी दुनिया जानती है कि उनकी मौत सामान्य नहीं थी?

  

प्रश्न- लाल बहादुर शास्त्री का उपनाम बाबूजी कैसे पड़ा?

उत्तर- शास्त्री जी निष्काम कर्मयोगी थे, कर्म का ढोल पीटने की बजाय उस पर अमल उन्हें अच्छा लगता था, यही खूबियां उन्हें दूसरों से अलग रखती थीं। एक जमाना था जब लोग अपने पिताजी को बाबूजी कहकर ही पुकारा करते थे, हमारा भरापूरा साझा परिवार इलाहाबाद में रहता था, घर के सभी सदस्य शास्त्रीजी को बाबूजी कहते थे। ये संबोधन धीरे-धीरे घर के नौकर-चाकर और अन्य कर्मचारियों तक की जुबान पर चढ़ गया और इस प्रकार अति निकट संपर्कियों में वे बाबूजी ही पुकारे जाने लगे।

  

प्रश्न- आपको नौकर से माफी मांगने को कहा था, क्या था पूरा मामला?

उत्तर- सुबह मुझे स्कूल जाना था, जूतों पर पालिश नहीं थी, तभी मैंने नौकर को डांट दिया। लेकिन मुझे पता नहीं था कि बाबूजी पास के ही कमरे में थे। शाम को खाना खाते वक्त बाबूजी ने मेरी ओर देखा और मुझे इशारा करके बड़े भैया अनिल को हटाकर मुझे बिठा लिया। खाना खाते-खाते बाबूजी ने धीरे से मेरे कान में कहा कि ‘आज आपने सुबह जो किया वह ठीक नहीं था।’ मैं थोड़ा अचंभे में पड़ गया लेकिन फिर समझ में आया कि बाबूजी मेरे नौकर को फटकारने के बारे में कह रहे थे...। फिर उन्होंने कहा, ‘बेटा प्रत्येक इंसान का यह फर्ज है कि वह हरेक इंसान, चाहे वह छोटा हो, या बड़ा, उसकी इज्जत करे और मैं तुमसे चाहूंगा कि नौकर को बुलाकर उससे माफी मांगो और आगे से अपना काम स्वयं करना। अगले दिन मैंने नौकर से माफी मांगी। 

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प्रश्न- गांधीजी और शास्त्री जी का जन्म एक ही दिन यानी 2 अक्टूबर को होता है? क्या आपको लगता है कि शास्त्री जी के योगदान को कुछ कमतर आंका जाता है?

उत्तर- ऐसा मुझे नहीं लगता, बाबूजी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी हुआ करते थे। उनका समूचा जीवनकाल गलत परंपराओं के विरुद्ध संघर्ष को समर्पित था। उनके आदर्शों को पूरा देश धरोहर मानता है। गांधीजी और शास्त्री जी के जीवन में कुछ समानताएं हो सकती हैं, पर दोनों की सोच एक जैसी थी। बाबूजी ने अपने लिए कभी कुछ नहीं किया। उनके न रहने के बाद उनके खाते में मात्र दो-ढाई रुपए थे। उनका जीवन देश को समर्पित था। हम भी उन्हीं के बताए रास्तों पर चलने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न- बताया जाता है कि शास्त्री जी ने अपनी शादी में कुछ अजीब शर्तें रखी थी, क्या थी वह शर्तें?

उत्तर- सिर्फ एक शर्त रखी थी और वह शर्त थी दहेज न लेने की। उनका विवाह जिस दौर में हुआ था, तब दहेज प्रथा का चलन जोरों पर था। उन्होंने उस प्रथा का तब घोर विरोध किया था। अपने विवाह के पहले जो शर्त उन्होंने रखी थी, वह उनके आदर्श का ज्वलंत प्रतीक थी। बाबूजी ने कहा था ‘मैं शादी केवल इसी शर्त पर करूंगा कि उपहार में मुझे केवल एक चरखा दिया जाए। हमारी माताजी दहेज में केवल एक चरखा लेकर घर आईं। दरअसल, वे बहुत आदर्शवादी इंसान थे, ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते थे जिससे लोगों को भला हो सके। दिखावा उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। आदर्श को कर्म में परिणत करने को ही वह कर्मयोग समझते थे।

  

प्रश्न- उनके शुरुआती जीवन के संबंध में कुछ बताएं?

उनका शुरुआती जीवन बेहद कठिन मुश्किलों और अभावों के बीच गुजरा। होश संभालते ही उन्होंने अपने आप को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया। उनके जीवन का हर सूरज राष्ट्र के लिए उगता था। हमारे परिवार की कितनी ही घटनाएं ऐसी हैं, जिन्हें हम व्यापक इतिहास धारा से अलग नहीं कर पाते। इतिहास की अंधेरी राहों में यह तथ्य रोशनी की उजली लकीर जैसा हमेशा से रहेगा कि भारत का प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल में भी किसान बना रहा। बाबूजी का पालन पोषण विशुद्ध हिन्दू संस्कारों में हुआ लेकिन मन उनका ऐसा खुला आकाश था जहां सभी धर्मों की अच्छी बातों का प्रकाश हमेशा उजाला किए रहता था।

बातचीत में जैसा शास्त्रीजी के पुत्र सुनील शास्त्री ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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