स्वीडन यात्रा के दौरान नॉर्डिक देशों को लुभाने में कामयाब रहे मोदी

Modi's successful Sweden visit
कमलेश पांडे । Apr 18 2018 1:21PM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच दिवसीय स्वीडन-ब्रिटेन-जर्मनी यात्रा वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति सम्बन्ध और सामरिक रणनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए पीएम मोदी विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों व उनके विशिष्ट लोगों से अलग-अलग मिले और विचार विमर्श किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच दिवसीय स्वीडन-ब्रिटेन-जर्मनी यात्रा वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति सम्बन्ध और सामरिक रणनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए पीएम मोदी विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों व उनके विशिष्ट लोगों से अलग-अलग मिले और विचार विमर्श किया। उन्होंने उन देशों के शीर्ष कारोबारी नेताओं के साथ नीतिगत बातचीत की और व्यापार एवं निवेश, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा व स्मार्ट सिटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का निश्चय किया। दरअसल, पीएम मोदी की यह विदेश यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब सीरिया के मुद्दे पर अमेरिका और रूस दोनों खेमों के बीच तनाव व्याप्त है और उन्हें भारत से सकारात्मक सहयोग की उम्मीद है। जबकि भारत फिलिस्तीन की तरह सीरिया मसले पर भी अपेक्षित सावधानी बरत रहा है।

पीएम मोदी की स्वीडन यात्रा ऐतिहासिक है, क्योंकि विगत 30 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री वहां पहुंचा था। मोदी की भी यह पहली स्वीडन यात्रा थी। यही वजह है कि गत सोमवार की देर रात मोदी जब स्टॉकहोम के अरलांडा हवाई अड्डे पर उतरे तो प्रोटोकॉल तोड़कर वहां पहुंचे स्वीडिश प्रधानमंत्री स्टेफान लोफवेन ने उनका गर्मजोशी पूर्वक भव्य स्वागत किया। फिर मोदी स्टॉकहोम में भारतीय समुदाय के लोगों से मिले और आपसी विचार विमर्श किया। पीएम मोदी ने स्वीडन में आयोजित भारत-नॉर्डिक समिट में भाग लिया और वहां मौजूद डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन के प्रधानमंत्रियों से मिले। उन्होंने विभिन्न नेताओं के साथ स्मार्ट सिटीज, नवीकरणीय ऊर्जा, व्यापार, विकास, वैश्विक सुरक्षा, निवेश और जलवायु परिवर्तन पर गहन विचार विमर्श किया। इस दौरान मोदी ने नॉर्डिक देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की विशेष पहल की, क्योंकि इन देशों से उन्हें कुछ महत्वपूर्ण परिणाम मिलने की उम्मीद है। 

दरअसल, यह पहली संयुक्त बैठक ऐसे महत्वपूर्ण समय में हुई है जब यूरोपीय संघ उस तरीके को खोज रहा है जिससे कि उसे स्टील और एल्युमिनियम पर अमेरिकी टैरिफ से हमेशा के लिए छूट मिल जाए। क्योंकि नॉर्डिक देशों की सरकारों के प्रमुख, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से बेचैन हैं, ने शिखर सम्मेलन के दौरान मुक्त व्यापार के लाभों पर बल दिया। हालांकि मुक्त व्यापार को लेकर मोदी सरकार भी राष्ट्रहित में विरोधाभासी संदेश दे रही है, क्योंकि जनवरी में ही वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में मोदी ने घोषणा की थी कि भारत व्यापार के लिए खुला है, लेकिन इसके एक महीने बाद ही उन्होंने आयात शुल्क को तीन दशक में सबसे ऊंचे स्तर तक ले जाकर अपनी ही घोषणा से यू-टर्न ले लिया। जबकि सिर्फ निर्यात पर जोर देने वाले नॉर्डिक देशों ने विश्व की उन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से सावधानी बरती है जिन्होंने संरक्षणवाद का रवैया अपना लिया है। इसलिए मोदी ने भी राष्ट्रहित में नॉर्डिक देशों के साथ समझौतावादी रुख दिखाया है।

वास्तव में, नॉर्डिक देशों के लिए यूरोपीय संघ के साथ समझौते करने की बजाय भारत को अहमियत देना फायदेमंद लग रहा है, इसलिये भारत-नॉर्डिक समिट नॉर्डिक देशों के लिए भारत के साथ व्यापार करने का बहुत बड़ा अवसर है। वैसे तो नॉर्डिक देशों की आबादी करीब 2 करोड़ 70 लाख है, जिसकी अर्थव्यस्था कनाडा से भी छोटी है। फिर भी यूरोपीय संघ के साथ इनका मुक्त व्यापार का समझौता सालों से चला आ रहा है, जबकि इसके नतीजे बेहद कम मिले हैं। इसके अलावा, नॉर्डिक सरकारों को यह भी विश्वास है कि आने वाले वर्षों में चीन की तुलना में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए भारत की 23 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रति उनका झुकाव जगजाहिर है। शायद यह दूसरा मौका है जब पांच नॉर्डिक देशों ने किसी एक देश (भारत) के साथ समिट किया। इससे पहले उनकी पहली बैठक तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ हुई थी। उधर, भारत के लिए यह पहला मौका है जब पुरुलिया हथियार कांड के बाद डेनमार्क के साथ समिट हुई, क्योंकि इस कांड के बाद दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। 

द्विपक्षीय वार्ता के बाद पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा था कि मेक इन इंडिया मिशन में स्वीडन शुरू से ही हमारा मजबूत भागीदार रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 2016 में मुंबई में मेक इन इंडिया कार्यक्रम में भी प्रधानमंत्री लवैन स्वयं एक बड़े व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ शामिल हुए थे। यही नहीं, भारत से बाहर मेक इन इंडिया का सबसे प्रमुख कार्यक्रम भी पिछले वर्ष अक्टूबर में स्वीडन में ही आयोजित किया गया था। इसलिए आपसी बातचीत में भी यही प्रमुख विषय रहा। उन्होंने कहा कि भारत में विकास से बन रहे अवसरों में स्वीडन किस प्रकार विन-विन साझेदारी कर सकता है, यह उसे तय करना है। इसके इर्द-गिर्द ही दोनों देशों ने एक नवोन्मेष साझेदारी और संयुक्त कार्य योजना पर सहमति जताई है।

इसके अलावा, दोनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को भी बढ़ाने का निर्णय लिया है, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में स्वीडन लंबे अरसे से भारत का साझेदार है। भविष्य में भी परस्पर सहयोग से रक्षा उत्पादन में कई नए अवसर पैदा होने वाले हैं। दोनों देशों ने सुरक्षा सहयोग, विशेषकर सायबर सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने का निर्णय लिया है और इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि उनके द्विपक्षीय संबंधों का महत्त्व क्षेत्रीय और वैश्विक पटल पर भी हो, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्वीडन और भारत एक-दूसरे के क़रीबी सहयोगी हैं जो आगे भी जारी रहेगा। यूरोप और एशिया में हो रहे विकास के बारे में दोनों देशों ने विस्तार से विचारों का आदान प्रदान किया।

सच कहा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से नॉर्डिक देशों की प्रशंसा की, उससे साफ है कि इन देशों के साथ अब भारत की कारोबारी, कूटनीतिक और सामरिक नजदीकियां और बढ़ेंगी। क्योंकि ये देश भी अपने व्यावसायिक हित के लिए अमेरिका के विकल्प के रूप में भारत की ओर देख रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, पर्यावरण हल, बंदरगाह आधुनिकीकरण, कोल्ड चेन, कौशल विकास और नवोन्मेष में नॉर्डिक देशों की ताकत का लोहा पूरा विश्व मान चुका है जिससे मोदी भी इन देशों पर फिदा हैं।

बहरहाल, भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका के मद्देनजर स्वीडन और ब्रिटेन जैसे देश चाहते हैं कि बदलती दुनियादारी के बीच भारत भी अपनी प्रभावी रणनीतिक भूमिका निभाए, क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से भारत की रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है। लेकिन भारतीय नेतृत्व बिना किसी दबाव के अपनी विदेश नीति तय कर रहा है। यही वजह है कि मोदी सरकार पारस्परिक हितों को प्रभावित किए बिना दुनिया में टकराव टालने में अहम भूमिका अदा कर सकती है। हालांकि भारत एनएसजी का दावेदार है, जहां अमेरिका और उसके मित्र देश भारतीय हितों की पैरवी कर रहे हैं, इसीलिए वे भारत की ओर से परिपक्व भूमिका निभाने की उम्मीद भी कर रहे हैं। लेकिन चाहे फिलिस्तीन हो या सीरिया, भारत अपनी विदेश नीति को किसी भी वैश्विक दबाव से उन्मुक्त रख रहा है, जो एक हद तक सही भी है।

-कमलेश पांडे

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