पानी की कमी दूर करने के लिए राष्ट्रव्यापी ''जल संचय'' अभियान चलाना होगा

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देश में लोगों को पानी का मूल्य नहीं पता है, वे समझते हैं जैसे पानी आसानी से उपलब्ध है। इस हेतु सरकार को 24 घंटे 7 दिन की पानी की आपूर्ति के बजाय समय पर, रिसाव-प्रूफ़ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।

भारत के नियंत्रक और लेखा महानिरीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी योजनाएँ प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बालटी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पायी हैं। आज़ादी के 70 वर्षों के पश्चात, आज भी देश के 75 प्रतिशत घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। 

साथ ही, हाल ही में “वाटर एड” नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत वर्ष में ही है, जो वर्ष भर के किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नज़र आती है। इस समय भारत, इतिहास में, पानी की कमी के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है।

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आइए निम्न लिखित कुछ अन्य आँकड़ों पर भी ज़रा एक नज़र डालें, जो देश में जल की कमी के बारे में कैसी भयावह स्थिति दर्शाते हैं -

(1) पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएँ, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।

(2) पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियाँ सूख गई हैं।

(3) देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।

(4) एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा।

(5) नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने के कगार पर है। चेन्नई में तो हालात इसी वर्ष बद से बदतर हो चुके हैं, जैसा कि आप समाचार पत्रों एवं टीवी कार्यक्रमों में देख ही रहे होंगे।

(6) आज देश के कुल 91 जलाशयों में से 62 जलाशयों में 80 प्रतिशत अथवा इससे कम पानी बचा है। किसी भी जलाशय में यदि लम्बी अवधि औसत के 90 प्रतिशत से कम पानी रह जाता है तो इस जलाशय को पानी की कमी वाले जलाशय में शामिल कर लिया जाता है, एवं यहाँ से पानी की निकासी कम कर दी जाती है। 

देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है एवं बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है, बाक़ी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है कि आज देश के कई भागों में हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक ज़मीन खोदने के बाद भी ज़मीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है। देखिए, इसी कारण से भारत के भूजल स्तर में तेज़ी से कमी आ रही है।  

हाल ही में, माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में अपने दूसरे कार्यकाल में अस्तित्व में आई केंद्र सरकार ने, भारतवर्ष में पानी की कमी की उपरोक्त वर्णित भयावह स्थिति को देखते हुए तथा इस स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है एवं इसके लिए एक नए “जल शक्ति मंत्रालय” का गठन किया है। साथ ही, माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने 30 जून 2019 को मन की बात कार्यक्रम में देश के नाम अपने संदेश में जल शक्ति अभियान कार्यक्रम के शुरुआत किए जाने की घोषणा भी की थी, जिसके अनुसार भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कर दी गई है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जाएगा।

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जल शक्ति अभियान की शुरुआत दो चरणों में की गई है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जाएगा। पहले चरण में, जो 1 जुलाई 2019 से 15 सितम्बर 2019 तक रहेगा, बरसात के पानी का संग्रहण करने हेतु प्रयास किए जाएँगे। इस हेतु देश के उन 256 जिलों पर फ़ोकस रहेगा, जहाँ स्थिति अत्यंत गंभीर एवं भयावह है। जल शक्ति अभियान को सफलता पूर्वक चलाने की पूरी ज़िम्मेदारी इस नए मंत्रालय की होगी। अतः जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल शक्ति अभियान को, विशेष रूप से उक्त 256 जिलों में, सफल बनाने के उद्देश्य से इन जिलों को 256 अधिकारियों को आवंटित किया जा रहा है, जो इन जिलों का दौरा करेंगे एवं स्थानीय स्तर पर आवश्यकता अनुरूप कई कार्यक्रमों को लागू कर इन जिलों के भूजल स्तर में वृधि करने हेतु प्रयास करेंगे। पानी के संचय हेतु विभिन्न संरचनाएँ यथा तालाब, चेकडेम, रोबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, पेरकोलेशन टैंक ज़मीन के ऊपर या नीचे बड़ी मात्रा में बनाए जा सकते हैं। 

देश में प्रति वर्ष पानी के कुल उपयोग का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि की सिंचाई के लिए ख़र्च होता है, 9 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में ख़र्च होता है तथा शेष 2 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा ख़र्च किया जाता है। देश में हर घर में ख़र्च होने वाले पानी का 75 प्रतिशत हिस्सा बाथरूम में ख़र्च होता है। 

देश के ग्रामीण इलाक़ों में पानी के संचय की आज आवश्यकता अधिक है। क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों में हमारी माताएँ एवं बहनें तो कई इलाक़ों में 2-3 किलोमीटर पैदल चल कर केवल एक घड़ा भर पानी लाती देखी जाती हैं। अतः खेत में उपयोग होने हेतु पानी का संचय खेत में ही किया जाना चाहिए एवं गाँव में उपयोग होने हेतु पानी का संचय गाँव में ही किया जाना चाहिए।

केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा तो पानी की कमी से जूझने हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, इस कार्य हेतु जन भागीदारी की आज अधिक आवश्यकता है। चेन्नई में तो एक सज्जन व्यक्ति श्री सोलर सुरेश ने कमाल ही कर दिखाया है। सबसे पहले उसने बारिश के पानी के संग्रहण हेतु एक संयंत्र अपने घर में लगाया, इससे पूरे वर्ष भर उसके घर में पानी उपलब्ध होने लगा। फिर उसने अपने घर की छत पर सोलर प्लांट की स्थापना की, इससे उसे अपने घर की ज़रूरत के लिए पूरी बिजली मिलने लगी। फिर अपने ही घर में एक देसी बायो गैस प्लांट लगाया, इससे उसकी गैस संबंधी आवश्यकता की पूर्ति होने लगी। इस बायो गैस प्लांट से उसको ओरगेनिक खाद मिलने लगा, इसके उपयोग हेतु उसने अपने घर की छत पर कई सब्ज़ियों एवं फलों के पौधे लगा दिए, इससे उसके घर की आवश्यकता की पूर्ति हेतु फल एवं सब्ज़ियाँ मिलने लगी। यह किसी गाँव में नहीं ब्लिक चेन्नई महानगर में श्री सोलर सुरेश नामक व्यक्ति ने कर दिखाया है। “जहाँ चाह वहाँ राह” उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया गया है।

देश में लोगों को पानी का मूल्य नहीं पता है, वे समझते हैं जैसे पानी आसानी से उपलब्ध है। इस हेतु सरकार को 24 घंटे 7 दिन की पानी की आपूर्ति के बजाय समय पर, रिसाव-प्रूफ़ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए। विभिन्न स्तरों पर पाइप लाइन में रिसाव से बहुत सारे पानी का अपव्यय हो जाता है। साथ ही, सरकार को किसानों के लिए घरेलू स्तर या ड्रिप/स्प्रिंक्लर जैसे कुशल पानी के उपयोग वाले उत्पादों और सेंसर-टैप एक्सेसरीज़, आटोमेटिक मोटर कंट्रोलर आदि उत्पादों पर सब्सिडी देकर किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना, सबसे महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि यह 85 प्रतिशत भूजल का उपयोग करता है। स्प्रिंक्लर तकनीक को प्रभावी ढंग से लागू करके प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है। साथ ही, ऐसी फ़सलों जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ने एवं अंगूर की खेती, आदि फ़सलों को पानी की कमी वाले इलाक़ों में धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। अथवा, इस प्रकार की फ़सलों को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहाँ हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है। उदाहरण के तौर पर गन्ने की फ़सल को महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश से बिहार की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगानी होगी ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके।   

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम घर में कई छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत करें। जैसे, टॉयलैट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें, दांतों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने की बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें। एक अनुमान के अनुसार, इन सभी छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर पानी की काफ़ी बचत प्रति दिन प्रति व्यक्ति की जा सकती है।  

अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता पर प्राथमिक ध्यान दिया जाये। अतः प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।

  

सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न उपायों के अतिरिक्त सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना होगा तथा जल संग्रहण एवं जल प्रबंधन हेतु समाज में लोगों को जागरूक करना होगा। शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में इस सम्बंध में अलख जगाना होगा। तभी हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी आवश्यकता पूर्ति हेतु जल छोड़कर जा पाएँगे अन्यथा तो हमारे स्वयं के जीवन में ही जल की उपलब्धता शून्य की स्थिति पर पहुँच जाने वाली है।

-प्रह्लाद सबनानी

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