किसानों को मोदी सरकार के खिलाफ मोहरा बना कर आयोजित किया गया है भारत बंद

farmers protest
अजय कुमार । Dec 8 2020 12:14PM

कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में एपीएमसी अधिनियम को खत्म करने और कृषि उत्पादों को प्रतिबंधों से मुक्त करने की बात कही थी। ऐसा लगता है कांग्रेस की अवसरवादी राजनीति उसकी पहचान बन चुकी है।

मोदी विरोधियों ने एक बार फिर अपनी ओछी सियासत चमकाने के लिए 8 दिसंबर को ‘भारत बंद’ का एलान किया है, जो विपक्ष सीधे तौर पर मोदी और भाजपा का मुकाबला नहीं कर पा रहा है, वह ओछे हथकंडे अपना कर देश को नुकसान पहुँचाने में जुटा है। जबसे नरेंद्र मोदी ने देश की सत्ता संभाली है तबसे लेकर आज तक विपक्ष देश की जनता को भड़काने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा है। कभी वह कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने के लिए वहां के नागरिकों को भड़काता है तो कभी नागरिकता कानून की आड़ मुसलमानों को बरगलाता और दंगा कराता है। शाहीन बाग जैसी तमाम साजिशों को कौन भूल सकता है, जिसे लगातार मोदी विरोधी हवा देते रहे। मुसलमानों में व्याप्त तीन तलाक जैसी कुप्रथा के खिलाफ जब सुप्रीम कोर्ट के कहने पर मोदी सरकार कानून बनाती है तो वह इसे इस्लाम से जोड़ देता है। चीन-पाकिस्तान से विवाद के समय तमाम मोदी विरोधी नेता दुश्मन देशों की भाषा बोलने लगते हैं। इसी प्रकार अयोध्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उन्हें रास नहीं आता है। इसी तरह से दलितों पर अत्याचार की झूठी खबरें फैलाई जाती हैं। मुसलमानों को हिन्दुस्तान में रहने में डर लगता है के ‘जुमले’ उछाले जाते हैं और फिर इसी जुमले के सहारे कथित बुद्धिजीवी गैंग मोदी सरकार के खिलाफ अवार्ड वापसी मुहिम चलाता है। यह अवार्ड वापसी गैंग वही है जिसे कांग्रेस शासनकाल में उसकी कांग्रेस के प्रति वफादारी के चलते तमाम सरकारी अवार्डों से नवाजा गया था।

फ्रांस से मंगाए गए राफेल लड़ाकू विमान को लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और बाकी विपक्ष ने कैसा हो हल्ला मचाया था, यह कौन भूल सकता है। अब मोदी सरकार के खिलाफ किसानों को भड़काया जा रहा है, जो किसान कांग्रेस के 60 वर्ष के शासनकाल में तिल-तिल भूख और कर्ज से आत्महत्या करने को मजबूर थे, आज भले कांग्रेस एमएसपी को लेकर मोदी सरकार को घेर रही है, लेकिन इसी कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में एपीएमसी अधिनियम को खत्म करने और कृषि उत्पादों को प्रतिबंधों से मुक्त करने की बात कही थी। ऐसा लगता है कांग्रेस की अवसरवादी राजनीति उसकी पहचान बन चुकी है। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करना हो या एमएसपी को कानूनी रूप देना, कांग्रेस ने हमेशा किसानों के साथ छल किया। लेकिन सत्ता से बेदखल होते ही उसे स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट और एमएसपी की याद आने लगी है।

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किसान आंदोलन के बीच कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल भी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अब कांग्रेस उन्हीं की पीठ पर सवार होकर अपनी सियासी वैतरणी पार करने में लगी है। किसानों को मोदी सरकार के खिलाफ ‘मोहरा’ बना दिया गया है। कांग्रेस के साथ उसके वंशवादी संगठन और चुनावी मैदान में मोदी से मात खाए अन्य कई राजनैतिक दल भी किसानों के सहारे मोदी सरकार से दो-दो हाथ करने में लगे हैं। किसानों के हितों की बात करने वाली कांग्रेस जब खालिस्तान समर्थकों के साथ खड़ी नजर आए तो साजिश की गंभीरता को समझा जा सकता है, जो कृषि कानून संसद में पास हुआ हो, उसमें सुधार की बात छोड़ उस कानून को खत्म करने की बात कहना-सोचना अलोकतांत्रिक है। ऐसी किसी धमकी के आगे मोदी सरकार झुक जाएगी, ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि सरकार जानती है कि यह किसान आंदोलन नहीं, उनकी सरकार के खिलाफ सियासी साजिश है। भला कभी किसी आंदोलन में यह कहा गया है कि सरकार सिर्फ यस या नो में जवाब दे कि वह कानून वापस लेगी या नहीं। सरकार से इतर देश के तमाम दिग्गज बुद्धिजीवी भी मान रहे हैं कि मोदी सरकार का किसान कानून काफी बेहतर है। कृषि कानून के खिलाफ सबसे अधिक हंगामा पंजाब में सुनाई दे रहा है, जहां कांग्रेस की सरकार है। इसलिए भी इस किसान आंदोलन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है।

देश में पंजाब के अलावा हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुछ इलाका ही ऐसा है, जहां हाल ही में पास हुए कृषि विधेयकों का विरोध हो रहा है। किसानों के प्रदर्शन के नाम पर राजनीतिक दलों की सियासी तिकड़मबाजी भी हालिया दौर में खूब देखने को मिल रही है। राजनीतिक दल जानते हैं कि यदि वे किसान-किसान नहीं करेंगे तो उनकी राजनीति को धक्का पहुंचने की आशंका बलवती होती रहेगी। जबकि असलियत यह है कि इन आंदोलनों में किसान कम और किसान के नाम पर राजनीति करने वाले दलों के कार्यकर्ता अधिक सक्रिय रहे। इन सबके बीच भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के शोध में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। एसबीआई की शोध टीम द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन में पाया गया है कि किसानों का चल रहा आंदोलन एमएसपी के कारण नहीं, बल्कि राजनीतिक हित के लिए है।

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एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष के नेतृत्व में एक टीम द्वारा किए अध्ययन में यह भी पाया गया है कि हरियाणा के अलावा, कोई भी अन्य राज्य के किसान इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार मंडियों में अपनी फसल नहीं बेचते हैं। पंजाब के मामले में, जहां कृषि परिवारों की वार्षिक आय लगभग 2.8 लाख रुपये है, केवल 1 प्रतिशत किसान ई-एनएएम से जुड़े हैं। भारत में कृषि परिवारों की स्थिति के प्रमुख संकेतकों पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 70वें दौर के सर्वेक्षण के अनुसार, औसतन केवल 19 फीसदी परिवारों को एमएसपी के बारे में पता है। 15 फीसदी किसान खरीद एजेंसी के बारे में जानते हैं। केवल 7 प्रतिशत परिवार खरीद एजेंसी को फसल बेचते हैं और कुल फसलों का केवल 10 प्रतिशत एमएसपी पर बेचा जाता है। अध्ययन के अनुसार लगभग 93 फीसदी परिवार खुले बाजार में सामान बेचते हैं और उन्हें बाजार की खामियों का सामना करना पड़ता है।

बहरहाल, 08 दिसंबर के भारत बंद को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी सक्रिय हो गई है। योगी ने अपने पूरे प्रशासनिक अमले को किसानों को कृषि कानून की असलियत बताने के लिए लगा दिया है। इसके साथ-साथ किसान आंदोलन की आड़ में यदि किसी पार्टी का कोई कार्यकर्ता या अन्य कोई प्रदेश की शांति व्यवस्था भंग करने की कोशिश करेगा तो उससे भी निपटने के लिए उपाए किया जा रहे हैं। सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर नजर रखी जा रही है ताकि कहीं कोई सड़क जाम नहीं कर सके।

-अजय कुमार

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