''बुके नहीं बुक'' देने का मोदी का सुझाव देश में पुस्तक क्रांति ला सकता है

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ललित गर्ग । Jul 2 2019 12:56PM

स्वामी विवेकानंद की धारा से पुनर्जागरण का दौर शुरू हुआ था जिससे आजादी मिली थी और अब मोदी के नेतृत्व में पुनर्जागरण का नया दौर शुरू हुआ है जो देश को एक नये सांचे में गढ़ने वाला साबित होगा, इससे नया भारत निर्मित होगा एवं पढ़ने की कम होती रूचि पर विराम लगेगा।

रेडियो पर अपने मन की बात के जरिये प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने पूरे देश को एकसूत्र में बांध दिया है। रविवार को अपने इसी कार्यक्रम में हिन्दी के अमर कथाकार मुंशी प्रेमचन्द का उल्लेख करते हुए उन्होंने लोगों से अपने दैनिक जीवन में किताबें पढ़ने की आदत डालने का आह्वान किया। साथ ही उपहार में ‘बुके नहीं बुक’ यानी किताब देने की बात कही। वैसे तो उनके 'मन की बात' का हर प्रसारण जनजीवन को नयी प्रेरणा देने, उन्हें झकझोरने एवं सार्थक दिशाओं की ओर अग्रसर करने की मुहिम होता है। देश में स्वामी विवेकानंद की धारा से पुनर्जागरण का एक दौर शुरू हुआ था जिससे हमें आजादी मिली थी और अब मोदी के नेतृत्व में पुनर्जागरण का एक नया दौर शुरू हुआ है जो देश को एक नये सांचे में गढ़ने वाला साबित होगा, इससे नया भारत निर्मित होगा एवं पढ़ने की कम होती रूचि पर विराम लगेगा। पुस्तक एवं पुस्तकालय क्रांति के नये दौर का सूत्रपात होगा।

  

मोदी ने इस कार्यक्रम में प्रेमचन्द की तीन मशहूर कहानियों- ईदगाह, नशा और पूस की रात का जिक्र किया और उन कहानियों में व्यक्त संवेदना की भी चर्चा की। निश्चित ही इससे देश में संवेदनहीनता एवं संवादहीनता की खाई को भरा जा सकेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन में भी मन की बात से होने वाले आह्वान से सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। नशा हो या पर्यावरण, योग हो या खानपान की शुद्धि, जल संरक्षण हो या भ्रष्टाचार, शिक्षा हो या स्वास्थ्य, परिवार हो या समाज, कुरीतियां हो या अति आधुनिकता इनसे जुड़े मुद्दों पर वे इस तरह से बात रखते हैं जिस तरह से एक मनोवैज्ञानिक भी नहीं रख सकता। मन की बात की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसने हमारी राष्ट्रीय-भावना, सांस्कृतिक चेतना एवं नैतिकता को जगाने का काम किया है। भारतवासियों के अंदर स्वाभिमान को भरकर उनकी पीठ को सीधा करने का काम किया है। मन की बात करते हुए मोदी केवल शासक ही नहीं होते, बल्कि एक भाई, मित्र, पिता और अभिभावक, मनोवैज्ञानिक, समाजसुधारक, राष्ट्र-निर्माता आदि हर तरह की भूमिका में नजर आते हैं।

मोदी मौलिकता, निर्णायकता एवं साहसिकता के जीवंत प्रतीक हैं। संसार उसी को प्रणाम करता है जो भीड़ में से अपना सिर ऊंचा उठाने की हिम्मत करता है, जो अपने अस्तित्व का भान कराता है। मौलिकता की आज जितनी कीमत है, उतनी ही सदैव रही है। जिस व्यक्ति के पास अपना कोई मौलिक विचार है तो संसार उसके लिए रास्ता छोड़ कर एक तरफ हट जाता है और उसे आगे बढ़ने देता है। मौलिक विचारक तथा काम के नये तरीके खोज निकालने वाला व्यक्ति ही समाज, राष्ट्र एवं सम्पूर्ण मानवता की सबसे बड़ी रचनात्मक शक्ति होता है। अन्यथा ऐसे लोगों से दुनिया भरी पड़ी है जो पीछे-पीछे चलना चाहते हैं और चाहते हैं कि सोचने का काम कोई और ही करे।

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नये युग के निर्माण और जन चेतना के उद्बोधन में वैचारिक क्रांति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैचारिक क्रांति का सशक्त आधार साहित्य है। एक व्यस्ततम राष्ट्रनायक की जुबान से पुस्तक की उपयोगिता का बखान निश्चित ही देश को एक नई दिशा देगा। इस तरह का आह्वान वही व्यक्ति कर सकता है या परम सत्य को वही अभिव्यक्ति दे सकता है जिसने मन से विचार नहीं किया, मन से सोचा नहीं अपितु साक्षात् किया है, देखा है, अनुभव किया है। इस दृष्टि से ‘मन की बात’ का यह प्रसारण शाश्वत से साक्षात् और सामयिक सत्य को देखने, अनुभव करने का एक विनम्र प्रयास है। आत्म-प्रेरित राष्ट्रीय मूल्यों की प्रतिष्ठा का संयुक्त अभियान है। मोदी की अगुआई में भारतीयता की पुनर्प्रतिष्ठा स्थापित होनी शुरू हुई है। मोदी की बात लीक से हटकर होती है और इसलिए लोगों पर उसका गहरा प्रभाव भी देखा जा रहा है। भारत के मन को पकड़ने का पहली बार आजादी के बाद किसी राष्ट्रनायक ने प्रयास किया है तो वह मोदी ही हैं।

मोदी ने न केवल प्रेमचंद को जीवंत कर दिया है, बल्कि जन-जन को उनकी कहानियां पढ़ने को प्रेरित कर दिया है। क्योंकि ये केवल कहानियां नहीं हैं, एक जीवंत समाज का आइना है। प्रेमचंद ने अपनी इन कहानियों में समाज का जो यथार्थ चित्रण किया है, पढ़ते समय उसकी छवि आपके मन में बनने लगती है। उनकी लिखी एक-एक बात जीवंत हो उठती है। सहज, सरल भाषा में मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने वाली उनकी कहानियां मोदी के मन को भी छू गईं। उनकी कहानियों में समूचे भारत का मनोभाव समाहित है। ऐसे सत्साहित्य से ही आदर्श समाज की संरचना हो सकती है। तभी तो ऐसे साहित्य की उपयोगिता को उजागर करते हुए लोकमान्य गंगाधर तिलक ने कहा था कि यदि कोई मुझे सम्राट बनने के लिये कहे और साथ ही यह शर्त रखे कि तुम पुस्तकें नहीं पढ़ सकोगे तो मैं राज्य को तिलांजलि दे दूंगा और गरीब रहकर ही साहित्य पढूंगा।’ यह पुस्तकीय सत्य नहीं, अनुभूति का सत्य है। अतः साहित्य के महत्व को वही आंक सकता है, जो उसका पारायण करता है। नये-नये प्रयोग करने वाले मोदीजी अगर देश के राजनेताओं में इस तरह के संस्कार एवं रूचि जगा सकें तो राजनीति से नवीन संभावनाओं के द्वार उद्घाटित हो सकते हैं। निर्माण का हर क्षण इतिहास बन सकता है।

किताबें पढ़ने का कोई एक लाभ नहीं होता। किताबें मानसिक रूप से मजबूत बनाती हैं तथा सोचने समझने के दायरे को बढ़ाती हैं। किताबें नई दुनिया के द्वार खोलती हैं, दुनिया का अच्छा और बुरा चेहरा बताती हैं, अच्छे बुरे की तमीज पैदा करती हैं, हर इंसान के अंदर सवाल पैदा करती हैं और उसे मानवता एवं मानव-मूल्यों की ओर ले जाती हैं। मनुष्य के अंदर मानवीय मूल्यों के भंडार में वृद्धि करने में किताबों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये किताबें ही हैं जो बताती हैं कि विरोध करना क्यूँ जरूरी है। ये ही व्यवस्था विरोधी भी बनाती हैं तो समाज निर्माण की प्रेरणा देती है। समाज में कितनी ही बुराइयां व्याप्त हैं उनसे लड़ने और उनको खत्म करने का काम किताबें ही करवाती हैं। शायद ये किताबें ही हैं जिन्हें पढ़कर मोदी आज दुनिया की एक महाशक्ति बन गये हैं। वे स्वयं तो महाशक्ति बने ही हैं, अपने देश के हर नागरिक को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, इसीलिये उन्होंने देश भर में एक पुस्तक-पठन तथा पुस्तकालय आंदोलन का आह्वान किया है, जिससे न सिर्फ लोग साक्षर होंगे, बल्कि सामाजिक व आर्थिक बदलाव भी आएगा।

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नरेन्द्र मोदी प्रयोगधर्मा एवं सृजनकर्मा राजनायक हैं, तभी उन्होंने राष्ट्र, समाज एवं मनुष्य को प्रभावित करने वाले साहित्य के पठन-पाठन की संस्कृति को जीवंत करने की प्रेरणा दी है। क्योंकि सत्साहित्य में तोप, टैंक और एटम से भी कई गुणा अधिक ताकत होती है। अणुअस्त्र की शक्ति का उपयोग ध्वंसात्मक ही होता है, पर सत्साहित्य मानव-मूल्यों में आस्था पैदा करके स्वस्थ समाज की संरचना करती है। इसी से सकारात्मक परिवर्तन होता है जो सत्ता एवं कानून से होने वाले परिवर्तन से अधिक स्थायी होता है। यही कारण है कि मोदीजी भारत को बदलने में सत्साहित्य की निर्णायक भूमिका को स्वीकारते हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने तभी तो कहा था कि साहित्य वह जादू की छड़ी है, जो पशुओं में, ईंट-पत्थरों में और पेड़-पौधों में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।’ इसलिये साहित्य ही वह मजबूत माध्यम है जो हमारी राष्ट्रीय चेतना को जीवंतता प्रदान कर एवं भारतीय संस्कृति की सुरक्षा करके उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रांत कर सकता है। सत्साहित ही भारतीय संस्कृति के गौरव को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है, इसी से जीवन सरस एवं रम्य हो सकता है। निश्चित ही नरेन्द्र मोदी की पुस्तक-प्रेरणा भारतीय जन-चेतना को झंकृत कर उन्हें नये भारत के निर्माण की दिशा में प्रेरित कर रही है। तय है कि इससे जीवन-निर्माण के नये दौर की उजली दिशाएं प्रस्फुटित होंगी।

-ललित गर्ग

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