मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे पर अब 6 क्यों हैं ?

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1939 में कांग्रेस अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि स्वतंत्र देश के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और अंततः 1940 में ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को मान लिया कि भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाया जाए।

भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था और उसी दिन उसे स्वीकृत कर लिया गया था। विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान ‘भारतीय संविधान’ वैसे तो 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था लेकिन इसे 26 नवम्बर 1949 को ही स्वीकृत कर लिया गया था। 29 अगस्त 1947 को संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना की गई थी, जिसके अध्यक्ष थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक भी कहा जाता है। उनके अथक प्रयासों के कारण ही भारत का संविधान ऐसे रूप में सामने आया, जिसे न केवल भारत में सबने सराहा बल्कि विश्व में कई अन्य देशों ने भी इसे अपनाया। चार साल पहले सन् 2015 में डॉ. अम्बेडकर के 125वें जयंती वर्ष में पहली बार देश में 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया था और इस साल हम 70वां संविधान दिवस मना रहे हैं। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।

भारतीय संविधान से जुड़े रोचक तथ्यों पर नजर डालें तो सर्वप्रथम सन् 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मांग की थी कि अंग्रेजों के अधीनस्थ भारतवर्ष का संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा ही बनाया जाना चाहिए लेकिन तिलक के सहयोगियों द्वारा भारत के लिए स्वराज्य विधेयक के प्रारूप को, जिसमें पहली बार भारत के लिए स्वतंत्र संविधान सभा के गठन की मांग की गई थी, ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था। 1922 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मांग की कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे। 1924 में पं. मोतीलाल नेहरू ने संविधान सभा के गठन की फिर मांग की लेकिन अंग्रेजों द्वारा उनकी मांग को भी ठुकरा दिया गया। तब से संविधान सभा के गठन की मांग लगातार उठती रही लेकिन अंग्रेजों द्वारा इसे हर बार ठुकराया जाता रहा। 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि स्वतंत्र देश के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा ही एकमात्र उपाय है और अंततः 1940 में ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को मान लिया कि भारत का संविधान भारत के लोगों द्वारा ही बनाया जाए।

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1942 में क्रिप्स कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि भारत में निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जो भारत का संविधान तैयार करेगी। पहली बार संविधान सभा सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर 1946 को समवेत हुई किन्तु लेकिन अलग पाकिस्तान बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा उस बैठक का बहिष्कार किया गया। उसके दो ही दिन बाद संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया और वे संविधान बनाने का कार्य पूरा होने तक इस पद पर आसीन रहे। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ और संविधान सभा द्वारा उसके 14 दिन बाद 29 अगस्त संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष सर्वसम्मति से डॉ. अम्बेडकर को बनाया गया। संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा और संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिनों तक चलीं। संविधान के निर्माण कार्य पर कुल 63 लाख 96 हजार 729 रुपये का खर्च आया और इसके निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई।

मूल संविधान में कुल सात मौलिक अधिकार थे किन्तु 44वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर संविधान के अनुच्छेद 300 (ए) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया, जिसके बाद भारतीय नागरिकों को छह मूल अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28), संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) तथा संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 के अंतर्गत मूल अधिकारों का वर्णन है और संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि इनमें संशोधन भी हो सकता है तथा राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।

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भारत के संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु संविधान में पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की गई है, जिससे भारतीय संविधान का सार, उसकी अपेक्षाएं, उसका उद्देश्य, उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना के अनुसार, ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’

संविधान की यह प्रस्तावना पूरे संविधान के मुख्य उद्देश्य को प्रदर्शित करती है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय प्रस्तावना के उद्देश्य के विपरीत पाए जाने पर संविधान में किसी भी संशोधन को निरस्त कर सकता है, इसलिए संविधान की प्रस्तावना पूरे संविधान का प्रमुख आधार है।

-योगेश कुमार गोयल

(लेखक योगेश कुमार गोयल वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा तीन दशकों से पत्रकारिता में नियमित सक्रिय हैं)

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