टीकाकरण अभियान में अवरोध से बढ़ता संक्रामक बीमारियों का खतरा

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दरअसल टीकाकरण अभियान प्रभावित होने के लिए किसी को दोष भी नहीं दिया जा सकता। कोरोना 2019 के हालात ही ऐसे थे कि उस समय केवल और केवल कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने और लोगों की जान बचाना एकमात्र प्राथमिकता रह गई थी।

लैसेंट ग्लोबल हेल्थ में हालिया प्रकाशित रिपोर्ट इस मायने में चिंतनीय और महत्वपूर्ण हो जाती है कि विश्वव्यापी टीकाकरण अभियान में अवरोध का असर सामने आने लगा है। दुनिया के देशों के सामने खसरा, हेजा, हेपेटाइटिस सहित 14 से अधिक बीमारियों के फैलने का संकट उभरने लगा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देषों में हेजे के कारण मौत का आंकड़ा लगभग दो गुणा हो गया है। तपेदिक नए वेरियंट में आने लगी है जिसमें लगातार खांसी नहीं होने के कारण तपेदिक का पता लगने तक काफी देरी होने लगी है। दरअसल कोरोना ने अपने साइड इफेक्ट इस हद तक छोड़ गया है कि उसका असर हमें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से आने वाले कई सालों तक देखने का मिलेगा। कोरोना के कारण दुनिया के देशों में टीकाकरण अभियान पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। 2019 के अंतिम त्रैमास से 2020 तक कोरोना त्रासदी और उसके बाद कोरोना के नित नए वेरियंट के कारण स्वास्थ्य को लेकर चल रहे विभिन्न अभियानों पर सीधा सीधा असर पड़ा है। मजे की बात यह है कि उसका असर अब दिखाई देने लगा है। इंपिरियल कॉलेज लंदन के शोधार्थियों ने भारत सहित 112 देशों में किए गए अध्ययन में यह पाया है कि टीकाकरण में कोरोना काल में टीकाकरण अभियान प्रभावित होने के कारण 2030 तक दुनिया के देशों में खसरा सहित 14 बीमारियों के फैलने के कारण अतिरिक्त मौत होगी। एक अनुमान के कारण अकेले खसरे के कारण ही 40 हजार से अधिक जान जाने का अनुमान है। हैजे के कारण होने वाली मौतों के आंकड़ें सामने आये हैं। करीब करीब दो गुणी गति से हैजे के मामलें सामने आने लगे हैं। 2023 में सात लाख के करीब मामलें सामने आये हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसीलिए चिंता जताई है।

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दरअसल टीकाकरण अभियान प्रभावित होने के लिए किसी को दोष भी नहीं दिया जा सकता। कोरोना 2019 के हालात ही ऐसे थे कि उस समय केवल और केवल कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने और लोगों की जान बचाना एकमात्र प्राथमिकता रह गई थी। हालात भयावह थे तो न भूतो न भविष्यति के हालात थे। सब कुछ ठहर जाने और दुनिया के किसी भी कोनों में नजर ड़ालों चारों और मौत का तांडव ही दिखाई देता था। सारी दुनिया का ध्यान इस त्रासदी से एक एक जान बचाना बड़ी प्राथमिकता थी। इस दौरान टीकाकरण अभियान तो जोर शोर से चला पर वह अन्य बीमारियों के स्थान पर कोरोना से बचाव के वैक्सीनेशन और उसके पहली और दूसरी डोज पर ही केन्द्रीत रहा। दुनिया के देशों तक कोरोना वैक्सीन पहुंचाना पहली प्राथमिकता रही। कोरोना वैक्सीनेशन के लिए भारत ने सारी दुनिया का नेतृत्व किया। परिणाम सामने हैं। आज कोरोना का आतंक लगभग समाप्त हुआ है। पर करोना के साइड इफेक्ट आज भी सामने हैं। हांलाकि कोरोना में मौत को नजदीक से देखने और कोरोना के कारण लाचारगी के बावजूद दुनिया के देशों में जो समझ आनी चाहिए थी वह कोसों दूर है। रुस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास युद्ध, चीन की दादागिरी सहित दुनिया के देशों में संघर्ष, आतंकवादी घटनाएं बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है। हांलाकि यहां विचार करना विषयांतर होगा।

दरअसल कोरोना काल ही ऐसा था कि उस समय वर्षों से चले आ रहे अभियान लगभग ठहर ही गए थे। बल्कि यों कहा जाए कि उस समय सारी दुनिया का ध्यान सबसे हटकर कोरोना त्रासदी से बचाव की और ही रह गया था। कोरोना प्रोटोकाल और कोरोना वायरस के संक्रमण के तरीके ने ही हिला कर रख दिया था। मास्क, सेनेटाइजर, सोशियल डिस्टेंस उस समय का धर्म था तो अस्पताल तो दूर की बात घर से निकलते भी भय लगता था। ऐसे में टीकाकरण अभियान बाधित होना ही था। इसके साथ ही कोरोना वैक्सीन की और सबका ध्यान होने से अन्य वैक्सीन के उत्पादन और उपलब्धता प्रभावित होना स्वभाविक था। पर अब जो अध्ययन सामने आया है और जो देखने को मिल रहा है वह चिंतनीय है। खसरा, हैजा, तपेदिक, हैपेटाइटिस बी सहित 14 प्रकार के टीके जो समय पर लगाये जाने आवश्यक होते हैं वह प्रभावित हुए हैं। खसरा और फ्लू के नित नए वैरियंट सामने आ रहे हैं। स्वाइन फ्लू, पैरट फीवर, रुबेला, न्यूमोनिया और ना जाने क्या क्या जानलेवा बीमारियां असर दिखाने लगी है। हैजे के दो साल में ही बढ़ते मामलों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी चिंता जता चुका है। केवल हैजे के ही 2022 की तुलना में 2023 में करीब 48 प्रतिशत अधिक मामलें सामने आना अत्यधिक चिंता का कारण हैं। लोगों के इम्यूनेशन पॉवर में कमी आना बेहद चिंतनीय है। मौसम के जरा से बदलाव के साथ ही डॉक्टरों के यहां कतार लग जाना और नित नए वैरियंट में बीमारियां होना अपने आप में गंभीर हो जाता है। 

चिकित्सा विज्ञान में शोध व अध्ययन कर रहे शोधार्थियों के लिए हालात चिंतनीय होते जा रहे हैं। उलटा होने यह लगा है कि जो बीमारियां लगभग समाप्ती की और थी उनके नए वैरियंट भी दिखाई देने लगे हैं। तपेदिक इसका जीता जागता उदाहरण है। अब हालात सामने हैं। कोरोना के कारण जो हालात बने उसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता है। अब हो हालात और चुनौती सामने हैं उसी को देखते हुए आमजन के स्वास्थ्य की रणनीति तैयार करनी होगी। कोरोना के कारण प्रभावित वैक्सीनेशन से निपटने की योजना बनानी होगी। ऐसे समन्वित प्रयास करने होंगे ताकि टीकाकरण नहीं होने के कारण जो हालात बन रहे हैं उसका कोई सार्थक समाधान खोजा जा सके। यह किसी एक देश या एक कौम की चिंता नहीं है अपितु दुनिया के 112 देशों के अध्ययन का परिणाम हैं। हालात मुंह बाएं सामने हैं। जो होना था वह तो हो गया पर अब इसका संभावित उपाय खोजने के लिए वैज्ञानिकों को जुट जाना होगा। वैज्ञानिकों की मेहनत का ही परिणाम है कि 1937 से 2021 तक टीकाकरण अभियान का ही परिणाम रहा कि इन जानलेवा बीमारियों पर काफी हद तक अंकुश पाया जा सका। पर अब टीकारण अभियान में आये व्यवधान के कारण हालात में थोड़ा बदलाव आया है जिसे ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ना होगा। चुनौतियां दो तरह की सामने है। एक और इन बीमारियों के फैलाव या यों कहें कि संक्रमण को रोकना है तो दूसरी और इनसे प्रभावितों के सही ईलाज की चुनौती सामने है। दुनिया के देशों को इसके लिए जुट जाना होगा तो विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी गंभीर चिंतन मनन के साथ ही कारगर रणनीति तैयार करनी होगी। 

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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