जातिवाद की आग में झुलसते पंजाब को बचाने आगे आई SGPC

SGPC has come forward to save Punjab
राकेश सैन । Mar 14 2018 3:41PM

वैसे यह अपने आप में आश्चर्यजनक व दु:खद तथ्य है कि तत्कालीन समाज में जातिवाद सहित अनेक कुरीतियों के खिलाफ श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया में शंखनाद किया आज उन्हीं के द्वारा चलाए गए पंथ में इस कुरीति जातिवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं।

वैसे यह अपने आप में आश्चर्यजनक व दु:खद तथ्य है कि तत्कालीन समाज में जातिवाद सहित अनेक कुरीतियों के खिलाफ श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया में शंखनाद किया आज उन्हीं के द्वारा चलाए गए पंथ में इस कुरीति जातिवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। हालात यह है कि गुरुद्वारा साहिब की चारदिवारी में तो सभी एक दिखते हैं परंतु बाहर निकलते ही लोग जातियों व कई वर्गों में बंट जाते हैं। सुखद समाचार यह है कि सिखों की संसद के रूप में विख्यात शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने इस बुराई के खिलाफ अभियान चलाया है, जिसके हर गांव व नगर में एक ही गुरुद्वारा साहिब की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी ताकि जाति आधारित गुरुद्वारों के प्रचलन पर रोक लग सके। एसजीपीसी का यह अभियान जातिवाद की आग में झुलसते न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश के लिए सावन की पहली फुहार जैसी राहत देने वाला है।

एसजीपीसी के प्रधान जत्थेदार गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने छठी पातशाही गुरु हरगोबिंद साहिब और 10वीं पातशाही गुरु गोबिंद सिंह जी के चरणस्पर्श का गौरव प्राप्त ऐतिहासिक गांव चक्कर जिला लुधियाना से अभियान का शुभारंभ किया। मुहिम के तहत एक ही गांव में जात-पात के नाम पर बनाए गए अलग-अलग गुरुद्वारों को एक किया जाएगा। इस मुहिम के तहत लोगों को जागरूक किया जाएगा कि वे जातीय भेदभाव छोड़कर एक ही गुरुद्वारे की सेवा करें। इस अवसर पर गुरु साहिबान ने अमृत की दात बख्शते हुए सभी को एक ही खंडे बाटे का अमृत छका कर सिंह सजाया और जात-पात के भेदभाव को खत्म किया। इस मौके पर एक धार्मिक समारोह में गांव की पंचायत और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को विशेष तौर पर सम्मानित किया गया। जत्थेदार गुरबचन सिंह ने कहा कि सिख धर्म में जात-पात के लिए कोई स्थान नहीं है। गुरुओं के बताए रास्ते पर चलते हुए इसका पालन करना हर सिख का फर्ज है। एसजीपीसी सदस्य गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने सिंह साहिब और प्रधान लोंगोवाल ने इस मुहिम का स्वागत करते हुए कहा कि गांव चक्कर की आबादी 15 हजार के करीब है, लेकिन इस गांव में एक ही गुरुद्वारा साहिब है। इसकी सेवा संभाल सभी समुदाय के लोग मिलजुल कर करते हैं, जो अपने आप में एकता की उदाहरण है।

मध्यकाल में जब भारत जातिवाद सहित अनेक तरह की सामाजिक कुरीतियों से जूझ रहा था तो श्री गुरु नानक देव जी ने समाज का नेतृत्व किया और दुनिया को बताया कि मानस की जाति एक ही है। उन्होंने केवल वचनों से ही नहीं बल्कि कर्मों से भी समाज को एकजुट करने का प्रयास किया और लंगर-पंगत की ऐसी प्रथा चलाई जहां सभी वर्गों, धर्मों, संप्रदायों, जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिख पंथ के सिद्धांतों में जातिवाद के खिलाफ विशेष आग्रह रहा है और गुरु ग्रंथ साहिब में कदम-कदम पर मानव की एकता पर जोर दिया गया है। इसी मार्ग पर चलते हुए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की जिसमें जो पांच प्यारे सजाए गए वे उन जातियों व वर्गों से संबंधित थे जिन्हें आज भी अज्ञानतावश पिछड़ा कहा जाता है। इसी तरह गुरुओं ने पूरी मानवता को एकता के सूत्र में पिरोया परंतु यह दुर्भाग्य ही रहा कि एकता व बंधुत्व की यह बातें धीरे-धीरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब व गुरुद्वारों की पवित्र चारदिवारी में ही सिमट कर रहने लगीं। वास्तव में पंजाबी समाज जातिवाद के दकियानूसी बंधनों में फिर जकड़ा दिखाई देने लगा। वर्तमान में हालात यह हैं कि गांवों में लगभग हर जातियों के अपने-अपने गुरुद्वारे हैं। यहां पाठ 'मानस की जाति एक पहिचानबो' का होता है परंतु एक दूसरे के गुरुद्वारों में जाने से लोग गुरेज करते हैं।

जातिवाद से परेशान हो कर वंचित जातियों के लोगों ने सिख पंथ को स्वीकार किया। रविदासी समाज, वाल्मीकि समाज, दर्जी, नाई, धोबी आदि लगभग हर कथित पिछड़ी जातियां गुरु साहिबानों की शरण में गईं परंतु धीरे-धीरे यहां पर भी इनके साथ जातिगत भेदभाव की शिकायतें सुनने को मिलने लगीं। अभी संगरूर जिले में ही एक जाट समुदाय (कथित अगड़ी जाति) के गुरुद्वारा संचालकों ने गांव के दलित सिख परिवार को गुरु ग्रंथ साहिब देने से इंकार कर दिया। यह अकेली घटना नहीं बल्कि इस तरह की अनेकों घटनाएं घट चुकी हैं। चाहे समय-समय पर एसजीपीसी व अकाल तख्त साहिब के हस्तक्षेप से मामला सुलझाया जाता है और आरोपियों को मर्यादानुसार दंडित भी किया जाता है परंतु इस तरह की शिकायतें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। इन्हीं बातों से परेशान हो गांवों में गुरुओं व महापुरुषों के नाम के स्थान पर जातियों के आधार पर धर्मस्थल बनने लगे। धर्मस्थल के साथ-साथ यहां के श्मशानघाट भी जातियों के आधार पर बनने लगे। इससे समाज में जातिगत दीवारें फिर दिखने लगी हैं।

एसजीपीसी ने जो नया अभियान शुरु किया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि समरस व भेदभाव रहित समाज ही सिख पंथ का सिद्धांत रहा है। सिखों की लघु संसद होने का गौरव हासिल करने वाली एसजीपीसी का यह दायित्व भी बनता है कि वह न केवल सिख धर्म का प्रचार करे बल्कि पंथ की मर्यादा का विपरीत होने वाली हर कार्रवाई का विरोध भी करे तथा समाज के सामने हल प्रस्तुत करे। वैसे यह काम काफी समय पहले शुरू किया जाना चाहिए था परंतु चलो जब जागो तभी सवेरा। इसके लिए एसपीजीसी बधाई की पात्र है और समाज का भी दायित्व बनता है कि वह इस सद्प्रयास का हर तरह सहयोग करे।

-राकेश सैन

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