महिला दिवस बीतते ही महिलाओं की स्थिति फिर पहले की तरह हो गयी

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महिला दिवस बीत जाने के बाद अब स्थिति पहले की तरह ही हो गयी है। आज फिर से महिलाओं को रेल, बस में वही पुरानी धक्का-मुक्की के बीच यात्रा करनी पड़ रही है। अखबारों, टेलीवीजन पर भी महिलाओं के स्थान पर पुरानी खबरें पूर्ववत् छपने लगीं।

हर वर्ष की तरह इस बार भी महिला दिवस गुजर गया। महिला दिवस के दिन देश भर में महिलाओं के नाम की धूम रही। हर जगह महिला उत्थान की बाते होती रही। सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर महिलाओं के लिये देश भर में हर जगह कार्यक्रमो का आयोजन किया गया। केन्द्र व राज्यों की सरकार ने समाचार पत्रों में महिलाओं से सम्बन्धित बड़े-बड़े विज्ञापन देकर बताया कि सरकारें महिलाओं के विकास के लिये कितनी प्रयत्नशील हैं। राष्ट्रपति भवन सहित देश के अनेकों स्थानों पर विशिष्ट कार्य करने वाली प्रतिभाशाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। दिन भर हर जगह महिलाओं के उत्थान की बातें, गोष्ठियां होती रहीं। महिला दिवस के दिन कई प्रदेशों की सरकारी बसों में महिलाओं को नि:शुल्क यात्रा करवाई गयी।

महिला दिवस बीत जाने के बाद अब स्थिति पहले की तरह ही हो गयी है। आज फिर से महिलाओं को रेल, बस में वही पुरानी धक्का-मुक्की के बीच यात्रा करनी पड़ रही है। अखबारों, टेलीवीजन पर भी महिलाओं के स्थान पर पुरानी खबरें पूर्ववत् छपने लगीं। कल तक बढ़चढ़ कर महिला अधिकार की बातें करने वाले लोग देश के अन्य मुद्दों में व्यस्त हो गये। मात्र एक दिन में ही महिला हित की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों का उनके प्रति नजरिया बदल गया है। भारत में नारी को देवी के रूप में देखा गया है। उसके उपरान्त भी आज 21वीं सदी में हमारे समाज में महिलाओं से भेदभाव का सिलसिला पूर्ववत् जारी है। सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को उनकी संख्या के अनुपात में नौकरियां नहीं दी जाती हैं।

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हमारे देश में ऐसा क्यों होता है कि हम एक दिन बड़ी-बड़ी बातें करके महिलाओं के साथ छलावा करते हैं। क्या ऐसा नही हो सकता कि महिला दिवस के दिन की जाने वाली बाते हम हर दिन करें। महिलाओं के प्रति हमारा रवैया हमेशा सकारात्मक बना रहे। हर दिन हम महिलाओं के विकास के प्रति प्रयत्नशील रहें। हम हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने में निरन्तर सहयोग करें ताकि साल में सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि साल का हर दिन महिलाओं को समर्पित हो।

हमारे देश में आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। देश के विकास में महिलाओं की भी उतनी ही भागीदारी है जितनी पुरूषों की है। केन्द्र सरकार में छह महिला मंत्री हैं जो देश के विदेश, रक्षा सहित अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों को पूरी कुशलता के साथ संचालित कर रही हैं। देश की लोकसभा के संचालन की जिम्मेवारी भी महिला के पास हैं। देश की बेटियां सेना में लड़ाकू जहाज उड़ाने लगी हैं। सेना के तीनों अंगों सहित पुलिस व विभिन्न सुरक्षा बलों में महिलायें पूरी हिम्मत के साथ अपने दायित्व का निर्वहन कर रही हैं।

जब तक देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलेंगे तब तक देश में महिला शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो पायेगा। हमारे देश में महिलाओं को जब भी अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिलता है तब वह पुरूषों से कहीं कम नहीं रहती हैं। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम में महिलाओं का पुरूषों के बराबर ही योगदान है। पिछले कामनवेल्थ, एशियाड सहित अन्य अन्तरराष्ट्रीय खेलों में हमारे देश की महिला खिलाड़ियों ने पुरूष खिलाड़ियों के बराबर पदक जीत कर अपनी खेल क्षमता का परिचय दिया था। देश में महिलायें रेल, बस, ट्रक, टैक्सी, हवाई जहाज चलाते देखी जा सकती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो महिलाओं का कार्य उल्लेखनीय है। इतना कुछ होने के बाद भी महिलाओं को अभी भी अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। महिलाओं के हित की बातें तो सभी खूब करते हैं मगर उनको अधिकार देने की बात आते ही सभी पीछे खिसकने लगते हैं।

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संसद व विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने का बिल वर्षों से लम्बित पड़ा है। कोई भी राजनीतिक दल नहीं चाहता कि महिलाओं को संसद व विधानसभाओं में आरक्षण मिले। दस वर्षों के यूपीए नीत कांग्रेस सरकार व पांच वर्ष में एनडीए नीत भाजपा सरकार ने महिला आरक्षण बिल को पास करवा कर लागू करवाने का कोई प्रयास नहीं किया। इससे पता चलता है कि महिलाओं को लेकर राजनीतिक दल कितने गम्भीर हैं। सभी दलों के नेताओं को इस बात का डर सताता है कि यदि महिलाओं को संसद में आरक्षण मिल गया तो उनका क्या होगा। इसी डर के कारण किसी भी दल के नेता महिला आरक्षण बिल को पास करवाने में रूची नहीं दिखाते हैं।

मुस्लिम महिलाओं को लेकर लाया गया तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पास होने के बाद राज्य सभा में लटक गया। इसी कारण सरकार को इस बिल को लेकर बार-बार अध्यादेश लाना पड़ता है। कुछ प्रदेशों की सरकार ने पंचायत राज व स्थानीय निकाय संस्थाओं के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्यों के निर्वाचन में महिलाओं को आरक्षण दिया है। जब सरकार इनमें महिलाओं को आरक्षण दे सकती है तो फिर संसद व विधानसभा में क्यों नहीं देना चाहती है। संसद व राज्यों की विधानसभाओं में आज महिला सदस्यों की संख्या बहुत कम देखने को मिल रही है। यदि संसद व राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण दिया जाये तो उनकी संख्या बढ़ेगी। संख्या बढ़ने से नि:संदेह ही महिलायें अपने अधिकारों की बात मुखरता से कर पायेंगी।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक पैरामिलिट्री फोर्स के वार्षिक समारोह में इस बात को स्वीकार करते हुये अश्वासन भी दिया था कि देश के आन्तरिक सुरक्षा बलों में महिलाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी की जायेगी। निजी क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की संख्या भी कोई उत्साहजनक नहीं है। निजी क्षेत्रों के संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को पुरूषों की तुलना में कमतर आंका जाता है। आज यदि कोई महिला हवाई जहाज, रेल बस, कार चलाती है तो वह समाचारपत्रों में सुर्खियां बन जाती है। इसका कारण एक ही है कि इन क्षेत्रो में काम करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है।

देश की अधिकांश महिलाओं को आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस कब आता है व इसका मतलब क्या होता है। हमारे देश की अधिकतर महिलायें तो अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती हैं कि उन्हें दुनियादारी से मतलब ही नहीं होता है। कहने को तो इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जाति, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह दिन बड़ी-बड़ी बातें करने तक ही सिमट कर रह जाता है। अब हमें महिलाओं के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। महिलाओं को सिर्फ घर का काम करने से आगे लाकर उन्हें परिवार के हर निर्णय, सलाह, मशविरा में शामिल कर परिवार के प्रेरक की भूमिका देनी होगी।

हमारे देश में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार हैं। वे देश की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा विकास में भी आधी भागीदार हैं। इस बात को कतई नहीं नकारा जा सकता की आज के आधुनिक युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी हैं। महिलाओं के बिना दिनचर्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान जीवन जीने का हक है।

महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो खूब बना दिये हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार की घटनाओं में अभी तक कोई कमी नहीं आई है। भारत में 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार, हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। देश को आजाद हुये कई वर्ष बीत जाने के उपरान्त भी महिलायें अभी तक स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही हैं। महिलायें आज भी अपनी मान मर्यादा की रक्षा को लेकर संघर्षरत नजर आती हैं।

जब तक देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलेंगे तब तक देश में महिला शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो पायेगा। हमारे देश में महिलाओं को जब भी अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिलता है तब वह पुरूषों से कहीं कम नहीं रहती हैं। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इन परम्पराओं को बदलने का बीड़ा स्वयं महिलाओं को ही उठाना होगा। जब तक महिलायें स्वयं अपने सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करतीं तब तक समाज में उनका स्थान गौण ही रहेगा।

-रमेश सर्राफ धमोरा

(स्वतंत्र पत्रकार)

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