जम्मू-कश्मीर में फिर से सिर उठा रहे आतंकियों को केंद्र ने दिया कानूनी संदेश
जिस तरह से जम्मू-कश्मीर की धरती सैनिकों और आम आदमी के खून से लाल की जा रही है, उसके परिप्रेक्ष्य में देशद्रोही ताकतों की शिनाख्त और सख्त सजा दोनों की दरकार है। उम्मीद है कि उपराज्यपाल की बढ़ी शक्तियों से आतंकियों के नापाक मंसूबों को चकनाचूर किया जा सकेगा।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में आतंकी जिस तरह से पुनः सिर उठाते दिखाई पड़े, उसके मुताल्लिक केंद्र सरकार ने बिल्कुल सटीक उपाय किये और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली जैसी शक्तियों से जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को भी लैस कर दिया। इससे साफ है कि जम्मू-कश्मीर में फिर से सिर उठा रहे आतंकियों को केंद्र सरकार ने सख्त कानूनी संदेश दिया है कि चाहे जितना उधम मचा लो, पर कानून के शिकंजे से बच नहीं पाओगे।केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चुनाव बाद भी तुम्हारे पॉलिटिकल बॉस किसी काम नहीं आएंगे! लिहाजा, इसके सियासी और प्रशासनिक दोनों मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ राजनीतिक दलों को तो मानो मिर्ची लग चुकी है।
ऐसे में यह समझ में नहीं आता कि जब इसी साल सितंबर के अंत तक वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो फिर आतंकी वारदातें एकाएक बढ़ क्यों गईं? घाटी तो छोड़िए जम्मू में आतंकियों को स्थानीय समर्थन कैसे संभव हो गया, जैसा कि पुलिस खुलासा कर चुकी है? ऐसा प्रतीत होता है कि आतंकी वारदातों के पीछे कहीं न कहीं किसी सफेदपोश नेता और उनके शातिर कार्यकर्ताओं की प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका होगी ही! बस, इस नजरिए से पुलिस जांच तेज करने की जरूरत है। जैसे अभी स्लीपर सेल वाले पकड़े जा रहे हैं, उसी तरह से ये सफेदपोश भी नहीं बचेंगे।
इसे भी पढ़ें: आतंकी हमलों का नया गढ़ बनता जा रहा है जम्मू! एक महीने में हुईं 7 घटनाएं, जानें कब-कब हुए बड़े हमले
कहना न होगा कि जिस तरह से जम्मू-कश्मीर की धरती सैनिकों और आम आदमी के खून से लाल की जा रही है, उसके परिप्रेक्ष्य में देशद्रोही ताकतों की शिनाख्त और सख्त सजा दोनों की दरकार है। उम्मीद है कि उपराज्यपाल की बढ़ी शक्तियों से आतंकियों के नापाक मंसूबों को चकनाचूर किया जा सकेगा।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) जैसी शक्तियां बढ़ाने वाली धाराएं जोड़ी हैं, जिसके बाद तबादले-पोस्टिंग में अब जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) की मंजूरी जरूरी हो चुकी है। इस केंद्र शासित प्रदेश में पुलिस व भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) एवं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की तैनाती व तबादले एलजी की मंजूरी के बिना नहीं हो सकेंगे। क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 12 जुलाई 2024 शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 55 के तहत संशोधित नियमों की अधिसूचना जारी की, जिसमें एलजी को और अधिक शक्तियां प्रदान की गई हैं।
वहीं, उपराज्यपाल भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो से जुड़े मामलों के अलावा महाधिवक्ता और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्ति पर भी फैसले कर सकेंगे। इस बारे में गृह मंत्रालय ने कहा कि पुनर्गठन अधिनियम में इन प्रावधानों का जिक्र पहले से ही है। फिलवक्त रोजमर्रा के कामकाज में और स्पष्टता के लिए नियमों में कुछ बदलाव किए गए हैं। पुनर्गठन अधिनियम में कोई संशोधन नहीं किया गया है।
केंद्र के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि राज्य में सरकार किसी की बने, अहम फैसले लेने की शक्तियां एलजी के पास ही रहेंगी। हालांकि, केंद्र के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर में भी दिल्ली जैसे हालात पैदा हो सकते हैं, जहां सरकार और एलजी के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है। बहरहाल राज्य में वरिष्ठ भाजपा नेता मनोज सिन्हा एलजी हैं। इसलिए उनसे टकराव की नौबत कम ही आएगी।
उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (2019) संसद में पारित किया गया था। इसमें जम्मू और कश्मीर को दो भागों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। पहला जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख। इस अधिनियम ने अनुच्छेद 370 को भी निरस्त कर दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था। जम्मू-कश्मीर जून 2018 से केंद्र सरकार के अधीन है। 28 अगस्त 2019 को गृह मंत्रालय ने प्रशासन के नियमों को नोटिफाई किया था, जिसमें उपराज्यपाल और मंत्री परिषद के कामकाज की स्पष्ट व्याख्या की हुई है।
वहीं, अब संशोधित नियमों में अहम बिंदु जोड़े गए, जिसके मुताबिक, पहला, पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से जुड़े किसी भी प्रस्ताव को तबतक मंजूर या नामंजूर नहीं किया जा सकता, जबतक मुख्य सचिव के जरिए उसे राज्यपाल के सामने नहीं रखा जाए। अभी इनसे जुड़े मामलों में वित्त विभाग की सहमति लेना जरूरी है।
दूसरा, किसी प्रकरण में केस चलाने की मंजूरी देने या न देने और अपील दायर करने के सम्बन्ध में कोई भी प्रस्ताव विधि विभाग मुख्य सचिव के जरिए उपराज्यपाल के सामने रखना जरूरी होगा। दूसरे शब्दों में, अभियोजन मंजूरी प्रदान करने या अपील दायर करने के लिए भी एलजी की मंजूरी लेनी होगी।
तीसरा, विधि, न्याय और संसदीय कार्य विभाग महाधिवक्ता और अन्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के जरिए उपराज्यपाल की मंजूरी के लिए पेश करेगा।
चतुर्थ, कारागार, अभियोजन निदेशालय और फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला से सम्बंधित मामले मुख्य सचिव के माध्यम से गृह विभाग के प्रशासनिक सचिव की ओर से एलजी के समक्ष पेश किए जाएंगे।
पंचम, प्रशासनिक सचिवों की तैनाती, तबादले तथा अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों से सम्बंधित मामलों में प्रस्ताव मुख्य सचिव के माध्यम से सामान्य प्रशासन विभाग के प्रशासनिक सचिव की ओर से एलजी के पास भेजे जाएंगे।
बता दें कि दिल्ली के केंद्र शासित राज्य होने के नाते वहां एलजी को ही सरकार माना जाता है। क्योंकि दिल्ली में कोई भी अधिसूचना बगैर एलजी की मंजूरी के जारी नहीं हो सकती। दिल्ली में केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद उपराज्यपाल के पास सर्विसेज विभाग, जमीन और सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी है। दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर, पोस्टिंग की जिम्मेदारी एलजी के पास है। सरकार अधिकारी को हटाना या लगाना चाहती है तो उसे उपराज्यपाल से मंजूरी लेनी होगी। इसी तरह सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी सीधे एलजी की होती है। पुलिस सीधे उपराज्यपाल को रिपोर्ट करती है।
बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इस अधिसूचना को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। अधिसूचना के बाद अब राज्य में नई सरकार के गठन के बाद भी एलजी की भूमिका ताकतवर बनी रहेगी। हालांकि, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बना देना चाहिए। उधर, कांग्रेस ने भी कहा कि सभी राजनीतिक दलों में इस बात को लेकर आम सहमति रही है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।
वहीं, नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला की बात में दम है कि अब तो हर चीज के लिए एलजी से भीख मांगनी पड़ेगी। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक है। इसलिए पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता इन चुनावों के लिए एक शर्त है। जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टाम्प, मुख्यमंत्री से बेहतर के हकदार हैं, जिन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी एलजी से भीख मांगनी पड़ेगी। इसलिए नए परिवर्तन से हम असहमत हैं।
वहीं, पीडीपी की चिंता स्वाभाविक है कि यह आदेश जम्मू-कश्मीर में अगली निर्वाचित सरकार की शक्तियों को कम करने का प्रयास है। उधर, अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने ठीक ही कहा है कि इस नए फैसले का उद्देश्य राज्य को खोखला बनाना है, जिसमें निर्वाचित सरकार के लिए कोई शक्ति नहीं बचेगी। सवाल है कि जब नेता लोग आतंकियों से सहानुभूति रखेंगे, पाकिस्तान के तलवे सहलाने वाली बातें बोलेंगे, तो फिर केंद्र उनकी नकेल कसने के यत्न करेगा ही। सच कहूं तो जम्मू-कश्मीर के जो वर्तमान हालात हैं, उसके मद्देनजर केंद्र के नए फैसले से असहमत होने का कोई कारण भी नहीं है। इसलिए शांति चाहते हो तो सुधर जाओ, अन्यथा केंद्र के इशारे पर कुचले जाओगे, सर्प फन मानिंद!
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
अन्य न्यूज़