जासूसी गुब्बारा या मौसम अनुसंधान पोत को मार गिराए जाने के मायने

US China
Prabhasakshi
कमलेश पांडे । Feb 6 2023 5:52PM

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के संज्ञान में आई तो उन्होंने जमीन पर किसी को नुकसान पहुंचाए बिना इसे मार गिराने का आदेश दिया। जिसके बाद गत 4 फरवरी को इसे मार गिराया गया। बताया जाता है कि इसमें कनाडा की सरकार ने भी उसे पूरा सहयोग किया।

दुनियावी देशों की निगरानी क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए चीन ने जो 'जासूसी गुब्बारा' उड़ाया था, अमेरिकी आसमान में उसका प्रवेश होने के बाद अमेरिकी वायुसेना ने उसे अपनी मिसाइल से मार गिराया। वहीं, चीन ने असैन्य मानव रहित यान पर अमेरिका द्वारा हमला करने का कड़ा विरोध जताते हुए इस कथित जासूसी गुब्बारे को अपना मानव रहित मौसम अनुसंधान पोत बताया और अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी दी।

इस घटनाक्रम का संदेश स्पष्ट है। एक ओर जहां अमेरिका ने अपने वायुक्षेत्र का स्पष्ट उल्लंघन समझकर जासूसी गुब्बारे के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके दुनिया के सामने अपनी सम्प्रभुता की रक्षा को लेकर एक नजीर पेश की है, तो वहीं दूसरी ओर चीन को यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उसकी तकनीक दुनिया की अव्वल तकनीक है, जिससे किसी का भी बच निकलना सम्भव नहीं है।

देखा जाए तो इससे वैश्विक पटल पर चीन के नापाक इरादों की कलई एक बार फिर खुल गई, जिससे भारत को भी सबक लेने और अतिशय सावधानी बरतने की जरूरत है। वास्तव में, चीन के मौसम अनुसंधान पोत को जासूसी गुब्बारा समझकर अमेरिका द्वारा मार गिराये जाने के कुछ खास रणनीतिक मायने हैं, जिन्हें समय रहते ही समझ जाने में सभी देशों की भलाई है। 

सबसे पहले हम बात करते हैं इस पूरे घटनाक्रम की, फिर इसके मायने की, ताकि इसे समझकर तदनुरूप एहतियाती रणनीति तैयार की जा सके। बता दें कि 28 जनवरी 2023 को अलास्का, 30 जनवरी को कनाडा और 31 जनवरी को अमेरिका के हवाई क्षेत्र मोंटाना में चीन का एक विशाल जासूसी गुब्बारा देखे जाने से हड़कम्प मच गया था, क्योंकि इसका आकार तीन बसों के बराबर था। 

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अमूमन ये गुब्बारा 5 दिनों तक अमेरिका के हवाई क्षेत्र में मौजूद रहा, जिस पर बरीकीपूर्वक नजर रखी गई। इसी बीच अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन द्वारा अपनी संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित करने को तत्काल कदम उठाए गए, जबकि अमेरिकी रक्षा एजेंसियां इस जासूसी गुब्बारे की पड़ताल करके इसे निपटाने में जुट गईं।

खबर है कि जब यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के संज्ञान में आई तो उन्होंने जमीन पर किसी को नुकसान पहुंचाए बिना इसे मार गिराने का आदेश दिया। जिसके बाद गत 4 फरवरी को इसे मार गिराया गया। बताया जाता है कि इसमें कनाडा की सरकार ने भी उसे पूरा सहयोग किया। 

ततपश्चात अमेरिकी वायुसेना ने दक्षिण कैरोलाइना में अमेरिकी तट से लगभग 9.65 किलोमीटर दूर अटलांटिक महासागर के ऊपर जासूसी गुब्बारे को मार गिराया, जिसका मलबा दक्षिण कैरोलाइना में मिरटल बीच के पास गिरा और 11 किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया। 

वहीं, अब इस मलबे को समेटने का प्रयास अमेरिकी सेना कर रही है, ताकि गुब्बारे द्वारा एकत्रित की गई संवेदनशील सूचनाएं हासिल की जा सकें और चीन के लिए इसका खुफिया महत्व खत्म हो जाये। उधर, विशेषज्ञों की मानें तो चीन ने यह जासूसी गुब्बारा अमेरिका की निगरानी क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए उठाया था, ताकि वह इस बात से भलीभांति अवगत हो सके कि अमेरिकी निगरानी प्रणाली कितने समय में विदेशी उपकरणों का पता लगाने में सक्षम हैं। 

हालांकि, चीन इससे इनकार कर चुका है। प्रतिरक्षात्मक तौर पर उसका कहना है कि अमेरिका द्वारा असैन्य मानवरहित यान के ऊपर बल प्रयोग पर जोर देना वास्तव में एक अनावश्यक प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है, जिसकी प्रतिक्रिया में वह आगे कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखता है। वह प्रासंगिक कम्पनी के वैध अधिकारों और हितों को दृढ़तापूर्वक बनाये रखेगा, क्योंकि अमेरिका द्वारा मार गिराया गया गुब्बारा एक मौसम अनुसंधान पोत था, जो तेज हवाओं के कारण अमेरिकी नभ क्षेत्र में प्रवेश कर गया था। स्वाभाविक है कि चीन भी अगला कोई कदम अवश्य उठाएगा।

मेरे विचार से भारत को इस घटनाक्रम से सबक लेना चाहिए और चीन के मुकाबले अपने शोध-अनुसंधान को उच्चस्तरीय बनाने के लिए इसे प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। क्योंकि चीन अमेरिका से ज्यादा भारतीय महत्वाकांक्षाओं के लिए बाधक और खतरा दोनों साबित हो सकता है, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। 

संभव है कि जल और थल पर इस तरह की जासूसी करते रहने का आदी हो चुका चीन, भारतीय नभ (आकाश) क्षेत्र में भी इस तरह की जासूसी किया हो, जिसे हमारे टोही तंत्र पकड़ने में नाकामयाब रहे हों! इसलिए अमेरिकी तकनीक को हासिल करने का प्रयास करते हुए भारत को अब आगे से अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है।

गौरतलब है कि विश्व का सुपर पावर समझे जाने वाले अमेरिका की जगह लेना चीन की दशकों पुरानी हसरत है, जिसके खातिर वह असीम सैन्य क्षमता व आर्थिक शक्ति हासिल करने को लालायित रहता है। इसी कड़ी में वह तरह तरह के अनुप्रयोग करते रहता है। यह भी उसकी एक कड़ी हो सकती है।

स्मरण रहे कि पहले रूस भी यही सोच रखता था, लेकिन 1990 के दशक में उसके यह अरमान टूट गए। इसलिए अब वह चीन को आगे करके अमेरिका को बर्बाद करने की कूटनीति पर अमल कर रहा है। वहीं अमेरिका भारत को आगे करके चीन को प्रत्यक्ष और रूस को अप्रत्यक्ष हानि पहुंचाने की सोच रखता है।

हालांकि, भारतीय कूटनीति की परिपक्वता अक्सर अमेरिकी सोच पर भारी पड़ जाती हैं। ऐसा इसलिए कि भारत रूस का मित्र है और चीन को अपना दुश्मन नम्बर 1 समझता है, लेकिन रूस और अमेरिका दोनों को साधकर बेलगाम चीन को नाथने की मंशा रखता है, जिसमें वह अबतक सफल प्रतीत होता आया है।

सच कहा जाए तो वैश्विक पटल पर पहले अमेरिका और रूस के बीच और अब अमेरिका और चीन के बीच जो तनातनी चल रही है, उससे शेष दुनिया के सभी देशों, आर्थिक और सैन्य गुटों के आर्थिक और सामरिक हित निकट भविष्य में प्रभावित होने के आसार बढ़ चुके हैं। इससे कोई गुटनिरपेक्ष देश भी अछूता नहीं बचने वाला है।  

इसलिए सभी देशों को तकनीकी दक्षता हासिल करते हुए अपनी आर्थिक और सैन्य रणनीति को आधुनिक बनाने की पहल करनी चाहिए, ताकि मौका पड़ने पर वे एक दूसरे के काम आ सकें, या फिर मनोनुकूल गुट में शामिल हो जाना चाहिए, ताकि उनकी सम्प्रभुता पर पहले ईराक और अब यूक्रेन जैसी आंच कभी न आए। 

वहीं, सीरिया, अफगानिस्तान और ताइवान आदि के घटनाक्रमों से भी सभी कमजोर देशों को सबक लेनी चाहिए, यदि उनका कोई पड़ोसी उनसे सबल और क्रूर दोनों हो तो...!

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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