39 भारतीयों का मारा जाना दुखद और जो संसद में हुआ वह भी दुखद

The killing of 39 Indians is sad and which happened in Parliament is also tragic
राकेश सैन । Mar 21 2018 1:16PM

वैसे तो राष्ट्रव्यापी शोक का यही कारण पर्याप्त है परंतु देश ने उस समय राजनेताओं की अंर्तात्मा को भी मरते देखा जो संसद में श्रद्धांजलि देते समय भी शोरगुल करते रहे।

पूरा देश शोकाकुल है, दुनिया में इस्लाम का परचम फहराने निकले आईएसआईएस के आतंकियों के हाथों मारे गए 39 निर्दोष भारतीयों की मौत की अधिकारिक पुष्टि हो गयी है। वैसे तो राष्ट्रव्यापी शोक का यही कारण पर्याप्त है परंतु देश ने उस समय राजनेताओं की अंर्तात्मा को भी मरते देखा जो संसद में श्रद्धांजलि देते समय भी शोरगुल करते रहे। बताते हुए भी दिल की नाजुक रगें टूट सी रही हैं कि आज जहां देश कफन गिन रहा है और वहीं देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी वोटों का हिसाब लगाती दिख रही है। राष्ट्रीय विपत्ति में देश एकजुट दिखाई नहीं दे रहा। चिता की लकड़ियों से बनी सीढ़ी के सहारे कुर्सी तक पहुंचने का खेल आज शोक की पीड़ा को बढ़ा रहा है।

राज्यसभा में देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को बताया कि इराक में तीन साल पहले अगवा किए गए सभी 39 भारतीय मारे जा चुके हैं और उनके शव मिल गए हैं। यह पता नहीं चल पाया गया है कि ये लोग कब मारे गए। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार तथा बंगाल के रहने वाले इन भारतीयों के शव इराक में मोसुल शहर के उत्तर पश्चिम में स्थित बदूश गांव से मिले हैं। एक सामूहिक कब्र से खोद कर निकाले गए इन शवों की डीएनए जांच की गई जिसके बाद इनकी पहचान हो सकी। सुषमा ने बताया, ''मैंने पिछली बार इन भारतीयों के बारे में सदन में चर्चा होने पर कहा था कि जब तक ठोस सबूत नहीं मिलेगा, मैं किसी को भी मृत घोषित नहीं करूंगी। आज मैं उसी प्रतिबद्धता को पूरी कर रही हूं।'' करीब तीन साल पहले 40 भारतीय कामगारों के एक समूह को मोसुल में आतंकी संगठन आईएस ने बंधक बना लिया था। बंधक बनाए गए लोगों में कुछ बांग्लादेशी भी थे। भारतीयों में से हरजीत मसीह नामक एक व्यक्ति अपने आप को अली बता कर किसी तरह बच कर निकला था। उसने दावा किया था कि उसने अन्य भारतीयों को आईएसआईएस के लड़ाकों के हाथों मरते देखा है लेकिन सरकार ने विरोधाभासी बयान होने के कारण उसका यह दावा खारिज कर दिया था।

इन भारतीयों को तब अपहृत किया गया था जब मोसुल पर आईएस ने कब्जा किया था। इनको पहले मोसुल में एक कपड़ा फैक्ट्री में रखा गया। हरजीत के भागने के बाद इनको बदूश गांव में बंधक रखा गया। विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह को उसी कपड़ा फैक्ट्री से पता चला जहां पहले भारतीयों को रखा गया था। बदूश में कुछ स्थानीय लोगों ने एक सामूहिक कब्र के बारे में बताया। ''डीप पेनिट्रेशन रडार'' की मदद से पता लगाया गया कि कब्र में शव हैं। इराकी अधिकारियों की मदद से शवों को खोद कर निकाला गया। जो सबूत मिले, उनमें लंबे बाल, कड़ा, पहचान पत्र और वह जूते शामिल हैं जो इराक में नहीं बने थे। सुषमा ने राज्यसभा में इन भारतीयों को लेकर अपनी बात रखी, लेकिन लोकसभा में कांग्रेस के हंगामे के कारण वह इस मुद्दे पर बात नहीं कह सकीं। श्रीमती स्वराज के शब्दों में कांग्रेस ने ओछी राजनीति की सारी हदें पार कर दीं। पिछले कुछ दिनों से हो रहे हंगामे को मंगलवार को भी जारी रखा गया और कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में जमकर हंगामा किया। केवल इतना ही नहीं राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति मंगलवार को सदन के सदस्यों के आचरण से बेहद नाराज हो गए। उन्होंने हंगामा करने वाले सदस्य को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे ऐसा ही करते रहेंगे तो वह खुद ही सदन से चले जाएंगे।

कांग्रेस कह रही है कि विदेश मंत्री ने इस मुद्दे पर देशवासियों को गुमराह किया और आखिरी समय तक परिवार वालों को इनके जिंदा होने का दिलासा दिया जाता रहा है। कांग्रेस पार्टी के वर्तमान व्यवहार को देख कर लगता है कि उन्होंने तथ्यों पर ध्यान देना छोड़ दिया है या झूठ बोलने की नया संकल्प लिया है। जून 2014 में जब से यह घटना हुई है उसके बाद विदेश मंत्री यही कहती रही हैं कि बिना साक्ष्य के वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकतीं और आखिर तक इन्हें बचाने का प्रयास किया जाएगा। भारतीय नियमों के अनुसार भी किसी लापता व्यक्ति की सात साल तक प्रतीक्षा की जाती है और बाद में उन्हें लाश न मिलने तक मृत मान लिया जाता है। लेकिन सुषमा स्वराज ने लीक से हटते हुए पहली बार यह कहा कि साक्ष्य मिलने तक उन्हें जीवित माना जाएगा। इसके बाद भी विदेश मंत्रालय चुप नहीं बैठा, वीके सिंह कई बार इनकी तलाश में इराक गए और वहां निजी तौर पर प्रयास कर मृतकों की पहचान करवाने में सहायता की। अनुमान लगाएं कि अगर केंद्र सरकार बिना साक्ष्य किसी को मृत घोषित कर देती और बाद में वह देश के सामने उपस्थित हो जाता तो इससे ज्यादा गैर-जिम्मेदाराना बात और क्या होती?

वैसे तो कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष संसद को काफी समय से अनावश्यक रूप से बंधक बनाए हुए है परंतु मंगलवार को कांग्रेस ने लोकसभा में जो व्यवहार किया वह संसदीय लोकतंत्र इतिहास को दागदार करने वाला है। देश के मारे गए 39 बेकसूर लोगों को श्रद्धांजलि देने और इस घटना की सूचना देश को देने से बड़ा कांग्रेस के पास कौन सा मुद्दा था जिसको लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में उसके सांसद लोकसभा के वेल तक में कूद गए? 2019 के लोकसभा चुनाव को सम्मुख देख कर कांग्रेस पार्टी इतनी बदहवास हो रही है कि वह सरकार के हर कदम का विरोध करने का मन बना चुकी है और संसद का दुरुपयोग राजनीतिक प्रचार के लिए करने के प्रयास में दिख रही है। विरोध करना कांग्रेस का संवैधानिक अधिकार है परंतु क्या किसी को श्रद्धांजलि के समय भी वह अपने क्षुद्र हितों को ही प्राथमिकता देगी?

-राकेश सैन

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