क्या सेना का ऑपरेशन कश्मीर के टूरिज्म को लील जाएगा?

Will the operation of the army kill Kashmir''s tourism?

कश्मीर में पहले भी इससे ज्यादा संख्या में आतंकी मारे जाते रहे हैं। पर वे अधिकतर विदेशी ही होते थे और वे एलओसी क्रास करते हुए मार गिराए जाते थे। यह पहली बार था कि इतनी संख्या में आतंकी बने स्थानीय युवकों को कश्मीर के भीतर ही मार गिराया गया हो।

सेना ने कश्मीर से आतंकियों के सफाए की खातिर आपरेशन ऑल आउट-2 की शुरूआत 13 आतंकियों की मौत के साथ करके यह संकेत दिए हैं कि वह जल्द से जल्द आतंकियों के गढ़ बन चुके दक्षिणी और उत्तरी कश्मीर से आतंकियों का सफाया कर देना चाहती है पर उसके अभियानों का दूसरा पहलू यह है कि यह ऐसे समय पर आरंभ हुए हैं जबकि कश्मीर में टूरिस्टों की आमद तेजी पकड़ रही है और ऐसी मुठभेड़ों को बाधित करने सड़कों पर उतरने वाले पत्थरबाज टूरिस्टों को भी निशाना बना रहे हैं।

दूसरी ओर जम्मू कश्मीर में इस बार की गर्मियां सीमांत क्षेत्रों के लोगों के लिए भयानक साबित हो सकती हैं। आशंका जाहिर करने वाले सेनाधिकारी इस साल के पहले तीन महीनों के दौरान सीमा पार से होने वाली कामयाब घुसपैठ के आंकड़ों का हवाला देते हैं। अप्रत्यक्ष तौर पर वे कहते थे कि सभी उपाय आतंकियों के कदमों को इस ओर बढ़ने से रोक नहीं पा रहे हैं।

पुलिस ने इसे माना है कि 1 अप्रैल को दो टूरिस्ट पत्थरबाजी में घायल हो गए। खबरें तो ऐसी और भी अधिक घटनाओं की मिली हैं पर पुलिस उससे इंकार करती है। चिंता या चर्चा का विषय यह नहीं है कि पुलिस ऐसी घटनाओं से इंकार क्यों कर रही है बल्कि चिंता कश्मीर में लौटते टूरिस्टों के कदमों के रूक जाने की आशंका से है।

वर्ष 2016 में सेना ने जब कश्मीर के आतंकवाद के पोस्टर ब्वॉय बन चुके आतंकी बुरहान वानी को मार गिराया था तो उसकी मौत के बाद से सुलग रही कश्मीर वादी में हालात अभी तक पटरी पर नहीं लौटे हैं। यह बात अलग है कि बुरहान वानी की मौत के एक साल बाद तक कश्मीर से दूरी बनाए रखने वाले पर्यटकों ने अब कश्मीर की ओर रूख किया ही था कि सेना ने आपरेशन ऑल आउट-2 को आरंभ कर पहले ही धमाके में 13 आतंकियों को ढेर कर दिया।

कश्मीर में पहले भी इससे ज्यादा संख्या में आतंकी मारे जाते रहे हैं। पर वे अधिकतर विदेशी ही होते थे और वे एलओसी क्रास करते हुए मार गिराए जाते थे। यह पहली बार था कि इतनी संख्या में आतंकी बने स्थानीय युवकों को कश्मीर के भीतर ही मार गिराया गया हो। इसने कश्मीर के हालात को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है इससे कोई इंकार नहीं करता है।

इन मौतों के बाद धधक रही कश्मीर वादी में हुर्रियती नेताओं को भी अपनी दुकानें फिर से खोलने का मौका मिल गया है। राजनीतिज्ञों ने भी अपनी दुकानदारी फिर से चालू कर दी है। और अगर कोई इन सबके बीच पिसने को मजबूर है तो वह आम कश्मीरी है जिसके सामने एक बार फिर रोजी रोटी का सवाल इसलिए खड़ा हो गया है क्योंकि आज भी अधिकतर कश्मीरी पर्यटन व्यवसाय से ही रोजी रोटी कमाते हैं और टूरिज्म पर भयानक साया मंडराने लगा है।

हालांकि कश्मीर के ताजा हालात के चलते कहीं से कोई बुकिंग रद्द होने की कोई खबर नहीं है पर टूरिस्टों पर हुए पत्थरबाजों के हमलों के बाद होटल मालिकों को डर है कि ऐसी घटनाएं एक बार फिर पर्यटकों के कदमों को रोक सकती हैं। माना कि पुलिस ऐसी घटनाओं को लो प्रोफाइल पर रख रही है पर कोई इसके प्रति आश्वासन देने को राजी नहीं है कि टूरिस्ट पत्थरबाजों के निशाने नहीं बनेंगे।

स्पष्ट शब्दों में कहें तो कश्मीर का टूरिज्म फिर से ढलान पर जाने लगा है। अभी तक मौत की घाटी के तौर पर जानी जाने वाली कश्मीर वादी पर्यटकों के लिए तरस रही थी। बुरहान वानी की मौत के बाद रोजी रोटी को तरसने वाले कश्मीरियों की किस्मत में शायद यही लिखा है कि जब भी हालात अनुकूल होने लगते हैं कोई ऐसा धमाका जरूर हो जाता है जो उनके पेट पर लात मार देता है।

आधिकारिक आंकड़ा आप सेना के उस दावे की धज्जियां उड़ा रहा है जिसमें सेना ने पिछले साल भी जीरो घुसपैठ का दावा किया था और इस साल भी वह कहती थी कि आतंकियों को किसी भी कीमत पर इस ओर घुसने नहीं दिया जाएगा। पर आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, इस साल अभी तक पहले तीन महीनों में तकरीबन 24 बार सशस्त्र आतंकियों के दलों ने भारत में घुसने की कोशिश की। हालांकि सबसे अधिक बार एलओसी पर प्रयास किया गया और रोचक तथ्य इन आंकड़ों का यह था कि एलओसी पर होने वाले करीब 18 प्रयासों में वे कामयाब भी रहे। हालांकि अधिकारी यह बता पाने में सक्षम नहीं हैं कि इन 18 प्रयासों में कितनी संख्या में आतंकी घुसने में कामयाब रहे हैं। पर गैर-सरकारी सूत्र कहते थे कि घुसने में कामयाब रहने वालों की संख्या अच्छी खासी है।

घुसपैठ के मामले में पिछले साल भी कुछ ऐसा ही हाल था। हालांकि वर्ष 2015 में सेना ने जीरो घुसपैठ का दावा किया था पर अब उसी द्वारा मुहैया करवाए गए आंकड़े कहते थे कि वर्ष 2015 में कुल 121 घुसपैठ की कोशिशें हुई थीं और उनमें से 33 में आतंकियों को कामयाबी भी मिली थी। जबकि वर्ष 2014 में भी 222 प्रयासों में से 65 में और वर्ष 2013 में 97 कोशिशों में आतंकी घुसपैठ में कामयाब हुए थे।

इन कामयाब प्रयासों में कितने आतंकी घुसने में कामयाब हुए थे इसके प्रति एक सेनाधिकारी का कहना था कि आंकड़ा बता पाना मुश्किल है और जो राडार या अन्य तरीकों से नजर आए थे उनकी संख्या बताना देशहित में नहीं है। इतना दावा जरूर वे करते थे कि घुसने में कामयाब हुए अधिकतर आतंकियों को बाद में एलओसी या फिर उससे आगे के जंगलों में घेर कर मार डाला गया था।

घुसपैठ के इन आंकड़ों के बीच अब सेनाधिकारी कहते थे कि घुसपैठ के क्रम पर रोक लगा पाना संभव नहीं है। उनके बकौल, एलओसी पर अभी भी कई नदी-नालों, खाईयों और दरियाओं पर तारबंदी नहीं है। बर्फ भी कई किमी तारंबदी को तहस नहस कर चुकी है। और ऐसे में इस बार की गर्मियां भी एलओसी पर हॉट समर ही बनी रहेंगी क्योंकि पाकिस्तान अपने यहां रूके आतंकियों को अधिक से अधिक संख्या में धकेलने को उतावला है जिसके लिए वह सीजफायर को भी दांव पर लगा सकता है।

-सुरेश एस डुग्गर

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़