सरकार बनाने में महिला मतदाताओं की होगी अहम भूमिका

Women voters
ANI

सबसे अच्छी बात यह है कि गॉव हो या शहर महिलाएं अब घर की चार दीवारी में कैद रहने वाली या पुरुष के कहे अनुसार मतदान करने वाली नहीं रही है। पुरुषों के हां में हां मिलाने वाली स्थिति से बहुत बाहर आ चुकी है आज देश की महिलाएं।

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 18 वीं लोकसभा के चुनाव का विगुल बज गया है। मुख्य चुनव आयुक्त राजीव कुमार ने 18 वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में मतदान का कार्यक्रम जारी कर दिया हैं वहीं 4 जून को मतगणना की तारीख तय की गई है। सीधी सी बात है कि 4 जून को दोपहर बाद तक 18 वीं लोकसभा की तस्वीर साफ हो जाएगी। खैर यह सब अलग बात है पर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में चुनावों में महिलाओं की बढ़ती सक्रिय भागीदारी तारीफे काबिल है। गत दो चुनावों ने देश की महिला वोटरों ने नई सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मजे की बात यह भी है कि 2019 के चुनाव में पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं ने अधिक मुखर होकर मतदान किया है। अब तो यह माना जाने लगा है कि देश के एक दर्जन के करीब राज्यों में महिलाओं के वोट ही नई सरकार के गठन में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। तस्वीर का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि मतदान ही नहीं चुनावों में सक्रियता से हिस्सा लेने और चुनावों में उम्मीद्वारी जताने में भी महिलाएं आगे आई हैं। देश के पहले और दूसरे लोकसभा के आमचुनावों में जहां 22 महिला सांसद चुन कर आई थी वहीं गत 2019 के आमचुनाव में 78 महिला सांसद चुन कर आई। हांलाकि आधी आबादी को मुख्य धारा में लाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा नए नए सब्जबाग दिखाने के बावजूद टिकट वितरण के समय महिलाओं की हिस्सेदारी कम ही रह जाती है। अनुभव तो यही बताता है कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा आधी तो दूर की बात एक तिहाई सीटों पर भी महिलाओं को टिकट नहीं दिए जाते है।

खैर सबसे अच्छी बात यह है कि गॉव हो या शहर महिलाएं अब घर की चार दीवारी में कैद रहने वाली या पुरुष के कहे अनुसार मतदान करने वाली नहीं रही है। पुरुषों के हां में हां मिलाने वाली स्थिति से बहुत बाहर आ चुकी है आज देश की महिलाएं। संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया में महिलाएं सक्रियता से हिस्सा लेने लगी हैं। चुनावों में उम्मीद्वारी भी जताती है तो चुनाव केंपेन के दौरान अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराती है। दूसरी और मतदान में आगे आकर हिस्सा लेने लगी है। पिछले चुनावों के आंकड़ों से यह सब साफ हो चुका है। इस साल देश में 96 करोड़ 88 लाख मतदाता है तो इनमें से महिला मतदाताओं की संख्या 47 करोड़ 15 लाख के करीब है। एक मोटे अनुमान के अनुसार पुरुषों की तुलना में करीब दो करोड़ महिला मतदाता कम है। कमोबेस यही स्थिति 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान थी। इस सबके बावजूद पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं के मतदान का आंकड़ा अधिक है। 2019 के चुनावों में पुरुष मतदाताओं का प्रतिशत 67.02 प्रतिशत रहा तो महिलाओं के मतदान का प्रतिशत 67.18 प्रतिशत रहा। पूर्वोत्तर, हिमाचल, गोवा, बिहार सहित बहुत से प्रदेशों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक रहा। यह तो रही मतदान की बात तो दूसरी और नई सरकार बनाने में भी महिला मतदाताओं की अधिक भूमिका रही है। देखा जाए तो महिलाओं ने जिस दल पर अधिक भरोसा जताया या यों कहे कि जिस दल को अधिक मत दिए उसी दल की सरकार बनी। मजे की बात यह है कि 2014 में मोदी सरकार बनने और 2019 में रीपिट होने का प्रमुख कारण भी महिलाओं को भाजपा और खासतौर से नरेन्द्र मोदी पर अधिक भरोसा जताने को जाता है। 2004 के चुनावों में 22 प्रतिशत महिलाओं ने भाजपा और 26 प्रतिशत पुरुषों ने कांग्रेस को वोट दिया था वहीं 2019 के चुनाव आते आते इसमें जबरदस्त बदलाव देखने को मिला। 2019 के चुनावों में महिलाओं द्वारा मोदी में विश्वास व्यक्त करने का आंकड़ा 36 प्रतिशत पहुंच गया। यानी कि 2019 के चुनावों में 36 फीसदी महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया। महिलाओं के अधिक मतदान का ही परिणाम रहा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और नरेन्द्र मोदी को जबरदस्त मेजोरिटी प्राप्त हुई।

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विगत दो लोकसभा चुनाव परिणामों से सबक लेते हुए अब सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के हर संभव प्रयास में जुट गए हैं। यही कारण है कि महिलाओं को लुभाने वाली योजनाएं और कार्यक्रम ना केवल घोषित किये जा रहे हैं अपितु राजनीतिक दलों के आने वाले चुनाव घोषणा पत्रों में महिला मतदाताओं को लुभाने के हर संभव प्रयास होंगे। क्योंकि एक बात साफ हो चुकी है कि आज की महिला स्वयं निर्णय लेने में सक्षम है और उसको दबाव या अन्य तरीके से प्रभावित नहीं किया जा सकता। कम से कम विगत चुनावों के परिणाम तो इसी और इंगित कर रहे हैं। खास तौर से आने वाले दिनों में चुनाव केंपेन महिला केंद्रीत हो तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता। देश की विभिन्न प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनावों में हम यह साफ रुप से देख चुके हैं। केन्द्र सरकार की उज्ज्वला योजना, मध्यप्रदेश की लाडली योजना, लखपति लाड़ली योजना, महिला मुखिया को नकद राशि और मुफ्त बस यात्रा ने कांग्रेस को कर्नाटक और तेलंगाना में देखा जा चुका है। आप महिला सम्मान योजना के माध्यम से महिलाओं को लुभाने का प्रयास कर रही है। लगभग सभी राजनीतिक दल इस दिशा में आगे आ रहे हैं और आने वाले दिनों में यह और अधिक स्पष्ट हो जाएगा।

खैर यह अलग बात है, पर यह साफ हो चुका है कि देश के लोकतंत्र के इस महापर्व में महिलाएं अग्रणी भूमिका निभाने जा रही है। अब महिला मतदाताओं को कमतर नहीं आंका जा सकता। महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। पर अब यह साफ हो जाना चाहिए कि चुनावों के दौरान आने वाले दिनों में महिलाओं की और सभी राजनीतिक दलों की नजर रहेगी और महिलाओं को मतदान के लिए अपने पक्ष में करने के हर संभव प्रयास होंगे। इसे देश और लोकतंत्र दोनों के लिए ही सकारात्मक प्रयास कहा जा सकता है तो दूसरी और दुनिया के देशों के लिए भी भारत की महिलाएं एक मिसाल बन कर सामने आ रही हैं। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि आने वाले चुनावों में राजनीतिक दलों की निगाहें महिला मतदाताओं की और ही रहेगी। 

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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