सिनेमा की हर धारा में फिट हैं अभिनेता नसीरुद्दीन शाह

profile of hindi actor naseeruddin shah
प्रीटी । Jul 14 2018 5:07PM

नसीरुद्दीन शाह, बॉलीवुड के उन चंद कलाकारों में से हैं जिन्होंने सिनेमा की दोनों धाराओं में बड़ी कामयाबी हासिल की। कई राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके नसीर को अभिनय की चलती फिरती पाठशाला भी कहा जाता है।

नसीरुद्दीन शाह, बॉलीवुड के उन चंद कलाकारों में से हैं जिन्होंने सिनेमा की दोनों धाराओं में बड़ी कामयाबी हासिल की। कई राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके नसीर को अभिनय की चलती फिरती पाठशाला भी कहा जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत फिल्म ‘निशांत’ से की थी जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियां थीं। ‘निशांत’ एक कला फिल्म थी। यह फिल्म कमाई के हिसाब से तो पीछे रही पर फिल्म में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की सबने सराहना की।

इसके बाद नसीरुद्दीन शाह ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई कला फिल्में कीं। कला फिल्मों के साथ वह व्यवसायिक फिल्मों में भी सक्रिय रहे। ‘मासूम’, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, ‘सरफ़रोश’ जैसी फिल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिनेमा की हर धारा में फिट हैं। हॉलीवुड फिल्म ‘द लीग ऑफ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमैन’ और पाकिस्तानी फिल्म ‘खुदा’ में भी शाह अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। उन्होंने एक फिल्म का निर्देशन भी किया है।

पद्म भूषण और पद्मश्री से सम्मानित हो चुके शाह सैन्य पृष्ठभूमि वाले परिवार से संबंध रखते हैं। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रूख किया। इसके बाद वह रंगमंच और हिन्दी फिल्मों में सक्रिय हो गए। अपने फिल्मी सफर के बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में पूरा ब्योरा लिखा है। जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे वह घर से भाग कर मुंबई गये थे ताकि फिल्मों में काम कर सकें।

आत्मकथा में वह बताते हैं कि आंखों में फिल्मी सितारा बनने का सपना लिए 16 साल की उम्र में वह भाग कर मुंबई चले गए थे और किसी तरह ‘अमन’ और ‘सपनों के सौदागर’ जैसी फिल्मों में ‘एक्स्ट्रा’ के रूप में काम भी पा गए थे लेकिन बाद में अभिनेता दिलीप कुमार के परिवार ने उन्हें सहारा दिया। नसीर ने आत्मकथा में लिखा है कि एक दोस्त की गर्लफ्रेंड से मिलने के बाद उन्हें यह विचार आया था क्योंकि उसके पिता फिल्मों में चरित्र अभिनेता का किरदार निभाया करते थे। उसने उन्हें भरोसा दिया था कि उसके पिता सपनों की नगरी मुंबई में उनके ठहरने का इंतजाम करवा देंगे और उनकी मदद करेंगे। नसीरुद्दीन उनके साथ लगभग एक महीने तक रहे लेकिन बाद में उनसे विनम्रता से घर छोड़ने के लिए कह दिया गया जिसके बाद वह वापस सड़क पर आ गए। उस समय उनके पास खर्च के लिए कोई रकम नहीं थी और फिर उन्होंने एक जरी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया। वे लोकल ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करते थे यहां तक कि उन्होंने ताज पेलैस होटल में बेलबॉय के पद के लिए भी आवेदन किया था।

आखिरकार नसीरुद्दीन शाह को नटराज स्टूडियो में ‘एक्स्ट्रा’ के तौर पर काम मिल गया जिसके लिए उन्हें साढ़े सात रूपये दिए गए। इस काम को दिलाने में उस लड़की के रिश्ते के भाई ने उनकी सहायता की थी। यह फिल्म ‘अमन’ थी जिसमें राजेंद्र कुमार एक चिकित्सक के किरदार में थे। यह दृश्य राजेंद्र के किरदार के निधन का दृश्य था और शाह विलाप करने वाले लोगों में से एक थे।

राज कपूर की ‘सपनों के सौदागर’ में नसीरुद्दीन शाह अपने आप को नहीं ढूंढ पाए थे। नसीरुद्दीन शाह के पिता के हस्तक्षेप के बाद शाह की यह यात्रा जल्दी ही खत्म हो गई। वे दो महीने से बेटे के अदृश्य होने से चिंतित थे। नसीरुद्दीन शाह के पिता अजमेर शरीफ की दरगाह के प्रबंधकों में से एक थे और इस मामले में उन्होंने मुंबई में अपनी एकमात्र परिचित दिलीप कुमार की बहन से संपर्क साधा। एक दिन वह फुटपाथ पर बैठे थे और एक थोड़ी परिचित-सी लग रही महिला ने उन्हें कार में बैठने के लिए कहा और वह कार को सीधे दिलीप कुमार के पाली हिल वाले बंगले पर ले गईं। दिलीप साहब के बंगले पर रूकने के दौरान उन्हें बंगले के तलघर में रहने को जगह दी गई थी लेकिन नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि उन्हें पूरे घर में कहीं भी आने जाने की आजादी थी।

पुरानी यादों को याद करते हुए वे लिखते हैं कि मैं अकसर उनके ड्राइंग रूम में जाया करता था जहां एक शेल्फ पर छह या सात फिल्मफेयर पुरस्कार एक कतार में रखे हुए थे। मैंने उनमें से एक को उठाने का प्रयास किया और वह मुझे बहुत भारी मालूम हुआ, मैंने सोचा कि यह जड़ा हुआ है। खैर मैंने किसी तरह उसे एक हाथ से उठाया और दूसरा हाथ लहराते हुए एक धन्यवाद भाषण दिया। वहां रहने के दौरान एक बार उन्होंने दिलीप साहब से बात की तो उन्होंने उनके अभिनेता बनने के ख्वाब को लेकर उन्हें हतोत्साहित किया। दिलीप साहब से उन्हें इस बात पर एक छोटा सा लेक्चर देते हुए कहा कि अच्छे परिवार से आने वाले लड़कों को फिल्म जगत में नहीं आना चाहिए। नसीरुद्दीन आज भी दिलीप कुमार को एक बेहतर अदाकार मानते हैं और उनकी तारीफ करते हैं।

नसीरुद्दीन शाह को अब तक मिले बड़े पुरस्कारों का ब्यौरा इस प्रकार है-

-नसीरुद्दीन शाह को 1987 में पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

-1979 में फ़िल्म 'स्पर्श' और 1984 में फ़िल्म 'पार' के लिए उन्हें सर्वोत्कृष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

-1981 में 'आक्रोश', 1982 में 'चक्र', 1984 में 'मासूम', 1985 में 'पार' तथा 'अ वेनस्डे' के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के अवार्ड से सम्मानित किया गया।

-फ़िल्म 'इक़बाल' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

-प्रीटी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़