बड़े पर्दे पर ''राजनीतिक'' मुद्दों को उतारने में माहिर हैं प्रकाश झा

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[email protected] । Feb 27 2018 1:57PM

फिल्मकार प्रकाश झा का जन्म बिहार के बेतिया जिले में 27 फरवरी 1952 को हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने राज्य में ही ग्रहण करने के बाद उन्होंने दिल्ली के रामजस कालेज से बीएसी किया और उसके बाद पेंटर बनने के लिए मुंबई का रुख किया।

फिल्मकार प्रकाश झा का जन्म बिहार के बेतिया जिले में 27 फरवरी 1952 को हुआ। प्राथमिक शिक्षा अपने राज्य में ही ग्रहण करने के बाद उन्होंने दिल्ली के रामजस कालेज से बीएसी किया और उसके बाद पेंटर बनने के लिए मुंबई का रुख किया। यहां वह जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला लेने का प्रयास कर ही रहे थे कि एक फिल्म की शूटिंग उन्हें देखने को मिली, बस फिर क्या था उन्होंने फिल्मों में अपना भाग्य आजमाने की ठान ली और पहुंच गये पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में।

1973 में उन्होंने संपादन के कोर्स में दाखिला लिया लेकिन कुछ समय बाद छात्रों के आंदोलन के चलते संस्थान कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया और झा ने मुंबई का रुख किया। उसके बाद झा कभी भी अपना कोर्स पूरा करने के लिए वापस नहीं गये।

1974 में उन्होंने स्वतंत्र रूप से अपना कैरियर शुरू किया और पहली डॉक्यूमेंट्री 'अंडर द ब्लू' का निर्माण किया। आठ साल तक वह वृत्तचित्र ही बनाते रहे। उनके यह वृत्तचित्र काफी लोकप्रिय भी हुए जिनमें 'बिहार शरीफ के दंगे' और 'फेसेज ऑफ्टर स्टॉर्म' प्रमुख हैं। यह दोनों प्रदर्शन के कुछ ही समय बाद प्रतिबंधित कर दिये गये थे। बाद में 'फेसेज ऑफ्टर स्टॉर्म' के लिए गैर फीचर फिल्म श्रेणी में झा को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

1983 में उन्होंने बतौर फिल्म निर्देशक अपना कैरियर 'हिप हिप हुर्रे' से शुरू किया। इस फिल्म में राज किरण और दीप्ति नवल ने अभिनय किया था। उन्हें असली पहचान 1984 में आई फिल्म 'दामुल' से मिली जिसमें उन्होंने बिहार के मजदूरों की दशा दिखाई थी। यह फिल्म उस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म चुनी गई थी। 1986 में उन्होंने 'परिणति' का निर्देशन किया। इसके अलावा झा की 'मृत्युदंड', 'गंगाजल', 'अपहरण' और 'राजनीति' फिल्में भी बॉलीवुड की सर्वाधिक हिट फिल्मों में शुमार हुईं।

झा ने अब तक 25 वृत्तचित्र, 15 फीचर फिल्में, दो टेली फिल्में और तीन टीवी धारावाहिकों का निर्माण और निर्देशन किया। फिल्मों के साथ−साथ झा की राजनीति में भी रूचि रही और उन्होंने बेतिया से दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार मिली जिसके बाद से उन्होंने राजनीति से तौबा कर ली है और अपने एक एनजीओ के माध्यम से बिहार में सामाजिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध निर्देशक झा को अब तक निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फिल्मफेयर अवार्ड और स्टार स्क्रीन अवार्ड समेत अनेकों पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

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