कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते कराह रही है भारतीय अर्थव्यवस्था

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यदि पिछले साल की ही बात करें तो पता चलता है कि यहां के ऑटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट, लघु उद्योग समेत असंगठित क्षेत्र में काफी सुस्ती छाई हुई थी। जिसके परिणाम स्वरूप बैंक एनपीए की समस्या से अब तक निपट रहे हैं।

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले जनता कर्फ्यू और उसके महज कुछ दिनों बाद ही पूरे देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर डाली। लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स से भारतीय अर्थव्यवस्था कराह उठी है। क्योंकि आनन-फानन में घोषित लॉकडाउन में ज़रूरी सेवाओं के अलावा अन्य सभी तरह की सेवाएं बंद कर दी गई हैं। जिसका फलाफल यह निकल रहा है कि कारोबार थम गया है, अधिकतर दुकानें प्रायः बंद हैं, आमलोगों की आवाजाही पर रोक है। दो टूक शब्दों में कहें तो पहले से ही विभिन्न प्रकार की क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुश्किलें झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ताजा कोरोना वायरस का हमला एक बड़ी मुसीबत लेकर आया है या फिर विदेशी ताकतों के द्वारा लाया गया है, यह जांच का विषय है। क्योंकि कोरोना के कहर से भारतीय अर्थव्यवस्था कराह उठी है।

यदि पिछले साल की ही बात करें तो पता चलता है कि यहां के ऑटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट, लघु उद्योग समेत असंगठित क्षेत्र में काफी सुस्ती छाई हुई थी। जिसके परिणाम स्वरूप बैंक एनपीए की समस्या से अब तक निपट रहे हैं। वहीं, हमारी सरकार निवेश के ज़रिए, विभिन्न प्रकार के नियमों में राहत और आर्थिक मदद देकर अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने की कोशिश तो कर रही थी। लेकिन, कोरोना वायरस के अप्रत्याशित प्रकोप अथवा सुनियोजित षड्यंत्र से उत्पन्न विचित्र हालातों के बीच मोदी सरकार भारत को आसन्न आर्थिक तबाही से बचा पाएगी, ऐसा दूर-दूर तक प्रतीत नहीं होता। क्योंकि अपने शासन के महज 6 वर्षों में मोदी सरकार ने नोट बन्दी, जीएसटी और लॉकडाउन सरीखे फैसले तो युगांतकारी लिए, लेकिन इसकी आड़ में यहां के शासन-प्रशासन ने क्या-क्या गोरखधंधे किये, भुक्तभोगी जनता से ज्यादा इसे कोई नहीं समझा पायेगा!

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इस बात में कोई दो राय नहीं कि कोरोना से हाल बेहाल किये अपने देश में बेरोज़गारी आने वाले वक्त में अपना ही पुराना रिकॉर्ड तोड़ डालेगी। क्योंकि करोना वायरस के कहर की वजह से जितनी फैक्ट्रियां बंद हैं, वहां कितनी नौकरियां दांव पर लग चुकी हैं और हमारी गिरती अर्थव्यवस्था पर उनका क्या असर होगा, यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी। लेकिन, इस बीच आ रही सरकारी किंतु-परन्तु के बीच सिर्फ इतना ही बताया जा सकता है कि कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए विचित्र हालात ने मानो अर्थव्यवस्था का पहिया जाम कर दिया है। आलम यह है कि ना तो कहीं उत्पादन हो रहा है और ना ही कहीं उसकी मांग है। बस, घुट-घुट कर लोग बाग अपने अपने घरों में हैं और दुकानों पर समझो ताले लगे हुए हैं।

वहीं, प्रति क्षण बदलते हालात के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने गत एक अप्रैल से शुरू हुए वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 5.2 प्रतिशत कर दिया है, इसका भी हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। क्योंकि इससे पहले भले ही 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया था। लेकिन ताजा जारी हुई रेटिंग्स हमारी बेतुकी नीतियों की पोल खोलने को काफी हैं। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि इससे अगले साल 2021-22 के लिए इसी रेटिंग एजेंसी ने 6.9 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है, जो इससे पहले 7 प्रतिशत था।

वहीं, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के एक अनुमान के मुताबिक, एशिया-प्रशांत क्षेत्र को कोविड-19 से तक़रीबन 620 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। क्योंकि सरकार ने लॉकडाउन की यह घोषणा कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए की है। ऐसा इसलिए कि लोग अपने घरों में रहेंगे, सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहेगी, जिससे वायरस कम से कम फैलेगा। दरअसल, लॉकडाउन का गंभीरता से अनुपालन भले ही कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ हमें अपेक्षित जीत तो दिला सकता है, लेकिन इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या अतिरिक्त प्रभाव पड़ेगा और उससे आम जनजीवन कैसे और कितना हद तक प्रभावित होगा और उससे किस प्रकार निपटा जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

जानकारों की राय में, लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ेगा। इस क्षेत्र से ही हमारी अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत जीडीपी आता है। जबकि यह क्षेत्र लॉकडाउन के दौरान काम नहीं कर सकता है। जब इस क्षेत्र के लोग कच्चा माल नहीं ख़रीद सकते, बनाया हुआ माल बाज़ार में नहीं बेच सकते तो उनकी कमाई प्रायः बंद ही हो जाएगी। यह कौन नहीं जानता कि हमारे देश में छोटे-छोटे कारखाने और लघु उद्योगों की बहुत बड़ी संख्या है, जिन्हें नगदी की समस्या पैदा हो जाएगी। क्योंकि जब उन सबकी कमाई नहीं होगी तो ये लोग खर्च कहां से करेंगे। प्रायः महसूस किया जाता है कि ऐसे लोग बैंक के पास भी नहीं जा पाते हैं। इसलिए ऊंची ब्याज़ दर पर क़र्ज़ ले लेते हैं और फिर उस क़र्ज़जाल में ऐसे फंस जाते हैं कि जिससे निकलना किसी भी मेहनतकश इंसान के लिए मुश्किल नहीं तो कठिन अवश्य होता है।

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यहां पर यह भी बताना जरूरी है कि अनौपचारिक क्षेत्रों में फेरी वाले, विक्रेता, कलाकार, लघु उद्योग और सीमा पार व्यापार शामिल हैं, जिस वर्ग से सरकार के पास टैक्स नहीं आता। इसलिए वह भी इन वर्गों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देना अपने लिए फायदेमंद नहीं समझती है। वहीं, लॉकडाउन के इतर कोरोना वायरस के प्रभाव से भी विभिन्न कंपनियों को नुक़सान पहुंच सकता है। इसलिए इनके दूरगामी हितों की रक्षा की तैयारी भी अभी से ही करनी होगी।

यही नहीं, जो लोग इससे या अन्य वजहों से बीमार हैं, वो काम नहीं कर सकते हैं। वहीं, कितने ही लोग सेल्फ़ आइसोलेशन में हैं, जिनका अपना कारोबार या दुकान तो है, लेकिन वो बीमारी के कारण उसे चला नहीं पाएंगे। ऐसे में जो ख़र्चा बीमारी के ऊपर होगा, वो उस व्यक्ति या उसके संस्थान के बचत से ही निकाला जाएगा। ऐसे में यदि ये वायरस नियंत्रण में नहीं आया तो ये असर और भी ज़्यादा हो सकता है।

यह कौन नहीं जानता कि जब लॉकडाउन से लोग घर पर बैठेंगे, तो इससे कंपनियों में काम नहीं होगा। और जब काम ही नहीं होगा तो व्यापार कैसे होगा। फिर यह अर्थव्यवस्था आगे कैसे बढ़ेगी। स्वाभाविक बात है कि लोग जब घर पर बैठते हैं, तो इससे टैक्सी बिज़नेस, होटल सेक्टर, रेस्टोरेंट्स, फ़िल्म, मल्टीप्लेक्स आदि सभी प्रभावित होते हैं। स्पष्ट है कि जिस सर्विस के लिए लोगों को बाहर जाने की ज़रूरत पड़ती है, उस पर बहुत गहरा असर पड़ेगा, क्योंकि बात 21 दिनों की है। अनियंत्रित कोरोना संक्रमण का यदि यही प्रकोप रहा तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं। क्योंकि जो घर के इस्तेमाल की चीज़ें हैं, जैसे- आटा, चावल, गेहूं, सब्ज़ी, दूध-दही वो तो लोग ख़रीदेंगे ही। लेकिन जो लग्ज़री की चीज़ें हैं, जैसे- टीवी, कार, एसी, इन सब चीज़ों की खपत काफ़ी कम हो जाएगी। इसका पहला कारण तो यह है कि लोग घर से बाहर ही नहीं जाएंगे, लिहाजा ये सब वस्तुएं नहीं खरीदेंगे। वहीं, दूसरा कारण ये होगा कि लोगों के दिमाग़ में नौकरी जाने का बहुत ज़्यादा डर बैठ गया है, जिसकी वजह से भी लोग पैसा ख़र्च करना कम कर देंगे।

जानकारों की मानें तो कोरोना वायरस के इस पूरे दौर में नेशनल लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर एविएशन, पर्यटन, होटल सेक्टर पर पड़ने वाला है। क्योंकि एविएशन सेक्टर का सीधा-सा हिसाब होता है कि जब विमान उड़ेगा तभी कमाई होगी। लेकिन फ़िलवक्त जहां अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक लगा दी गई है, वहीं घरेलू उड़ानें भी सीमित हो गई हैं। लेकिन, कंपनियों को तो कर्मचारियों का वेतन देना ही है। भले ही राजस्व क्षति के इस भयानक दौर में वो वेतन 50 प्रतिशत कम क्यों न कर दें। उन्हें यह भी पता है कि हवाई जहाज़ का किराया भी देना है, उसका रखरखाव भी करना है और क़र्ज़ भी चुकाने हैं। लेकिन यह सब कैसे संभव होगा, क्या सरकार कोई मदद पैकेज देगी, यह यक्ष प्रश्न है।

रही बात पर्यटन की तो यह जितना ज़्यादा होता है हॉस्पिटैलिटी का काम भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ता है। लेकिन, अब आगे लोग विदेश जाने में भी डरेंगे। उन्हें अपने ही देश में खुलकर घूमने की आदत बनाने में भी समय लग सकता है। ऐसे में पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र को बहुत बड़ा धक्का पहुंचेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि ये महीने बच्चों की छुट्टियों के हैं, लेकिन लोग कहीं भी घूमने नहीं जाएंगे। इससे समझा जा सकता है कि कारोबार कितना प्रभावित हो रहा है और होने वाला भी है। वहीं, बैंकिंग सेक्टर की बात करें तो जो अच्छा बैंक है उसे ज़्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए। दरअसल, बैंक का कोराबार यह होता है कि वो पैसा जमा करते हैं व लोन देते हैं। लेकिन, अभी बहुत ही कम लोग होंगे जो बैंक से लोन ले रहे होंगे। इससे कमज़ोर बैंकों का बिज़नेस ठप्प पड़ सकता है। कई लोगों का क़र्ज़ लौटाना भी मुश्किल हो सकता है, जिससे बैंकों का एनपीए भी बढ़ जाए, तो हैरत की बात नहीं होगी।

यदि आपको याद हो तो इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन ने स्पष्ट कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ़ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि यह एक बड़ा लेबर मार्केट त्रासदी और आर्थिक संकट भी बन गया है जो कि लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। उसके अनुसार, कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में ढाई करोड़ नौकरियां ख़तरे में हैं। जानकार भी नौकरियों पर ख़तरे की बात से सहमति जताते हैं। उनके मुताबिक, जो-जो सेक्टर इस बुरे दौर से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे, उन उन से जुड़ीं नौकरियों पर भी सबसे ज़्यादा ख़तरा होगा। बहरहाल, एविएशन सेक्टर में 50 प्रतिशत वेतन कम करने की ख़बर तो पहले ही आ चुकी है। लेकिन, रेस्टोरेंट्स बंद हैं, क्योंकि लोग घूमने नहीं निकल रहे हैं। दुकान बंद हैं, इसलिए लोग नया सामान नहीं ख़रीद रहे हैं। लेकिन, इनसे जुड़ीं कंपनियों को किराया, वेतन और अन्य ख़र्चों का भुगतान तो करना ही है। इसलिए सुलगता सवाल यह भी है कि क्या ये नुक़सान झेल रहीं कंपनियां ज़्यादा समय तक इस भार को सहन कर पाएंगी, जवाब होगा नहीं, जिसका सीधा असर इनसे जुड़ीं नौकरियों पर पड़ेगा। यह ठीक है कि सरकार ने सभी कंपनियों से अपनी नौकरी से विभिन्न कर्मियों को नहीं निकालने की अपील है, लेकिन इसका बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा। क्योंकि अधिकतर भारतीय नौकरियों में काम अधिक और वेतन व अन्य सुविधाएं नाम मात्र की होती हैं, जिससे किसी का भी जीवन यापन बमुश्किल हो पाता है।

वैसे तो समकालीन दुनिया ने 2008 की मंदी का दौर भी देखा था, जब कंपनियां धड़ाधड़ बंद हुईं थीं और एक साथ कई सौ-हजार लोगों को बेरोज़गार भी होना पड़ा था। इसलिए स्वाभाविक सवाल है कि क्या ये दौर 2008 की मंदी जैसा ही है या कई मायने में उससे भी अलग है? जानकार इससे साफ़ इनकार करते हुए कहते हैं कि यह उससे भी ख़राब दौर हो सकता है। क्योंकि उस समय तो एयर कंडिशन जैसी चीज़ों पर टैक्स कम हुए थे। तब, सामान की कीमत कम होने पर भी लोग उसे ख़रीद रहे थे, लेकिन लॉकडाउन में सरकार यदि अपना टैक्स ज़ीरो भी कर दे तो भी उसे कोई ख़रीदने वाला नहीं है। लिहाजा, विशेषज्ञ मौजूदा स्थितियों को सरकार के लिए भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं। क्योंकि अचानक ही उसके सामने कोरोना त्रासदी से उपजे लॉकडाउन जैसी एक विशाल समस्या आ खड़ी हुई है। यहां यह स्पष्ट कर दें कि 2008 के दौर में तो कुछ कंपनियों को आर्थिक मदद देकर संभाला गया था। लेकिन, आज यदि सरकार ऋण भी दे तो उसे सभी को देना पड़ेगा। क्योंकि हर सेक्टर में उत्पादन और ख़रीदारी प्रभावित हुई है। किंतु सरकार सबको लोन देने का जोखिम कितना उठा पाएगी, यह वक्त बताएगा।

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बहरहाल, इस बात में कोई दो राय नहीं कि कोरोना वायरस का असर पूरी देश-दुनिया पर पड़ा है। चीन-अमेरिका जैसे बड़े देश और मज़बूत अर्थव्यवस्थाएं भी इसके सामने लाचार दिखाई दे रहे हैं। इटली-फ्रांस की हालत से सभी वाकिफ ही हैं। इस कोरोना त्रासदी से भारत में विदेशी निवेश के ज़रिए अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने की कोशिशों को भी बड़ा धक्का पहुंचेगा। क्योंकि जब विदेशी कंपनियों के पास भी पैसा ही नहीं होगा तो वो निवेश में भी रूचि नहीं दिखाएंगी। हालांकि, जानकारों का यह भी कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा, यह निकट भविष्य में घटित होने वाली दो बातों पर निर्भर करेगा। पहला तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में और कितनी गंभीर होती है, और दूसरा ये कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है। अब जो भी हो, लेकिन किसी भी नेतृत्व के लिए यह स्थिति किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

-कमलेश पांडे

(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)

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