लव जिहाद के शोर के बीच जानिए भारत में क्या है इंटरफेथ मैरिज

Love Jihad

शादी एक पवित्र बंधन है और इस बंधन की पवित्रता बनाए रखने में ही हर व्यक्ति की भलाई है। हालांकि कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि कानून को अपना काम करना पड़ता है और इसी अनुरूप कानून ने एक रास्ता अख्तियार किया है।

हाल के सालों में भारत में लव जिहाद टर्म का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ है! लव-जिहाद को लेकर भारत की चर्चा न केवल देश भर में, बल्कि विदेशों तक में हुई है। कोई इसे युवाओं पर अत्याचार बता रहा है, तो कोई इसे धर्म की रक्षा बता रहा है। ऐसे में तमाम प्रदेशों की सरकारें भी इस पर अलग-अलग कानून बना रही हैं, इसलिए समझना आवश्यक हो जाता है कि लव जिहाद के साथ-साथ, भारत में इंटरफेथ मैरिज के क्या प्रोविजन हैं?

आइये इसे जानने की कोशिश करते हैं...

भारतवर्ष में धर्म के नाम पर होने वाले विवाद काफी ज्यादा हैं। विवाह के संदर्भ में अगर कानूनी पृष्ठभूमि की बात की जाए, तो 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक मामले के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई सारे इंटर रिलिजन मैरिज के मामले आए, जहां अच्छा खासा विवाद हुआ।

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इन सभी स्थितियों को देखकर, उत्तर प्रदेश में लव-जिहाद का नया कानून लाया गया। राज्यपाल द्वारा धर्मांतरण से जुड़े अध्यादेश यानी यूपी प्रोहिबिशन आफ अनलॉफुल कन्वर्जन आफ रिलिजन ऑर्डिनेंस 2020 को मंजूरी दी गई। सरकार के अनुसार, महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए कानून लाया गया है। इसमें अगर कोई अपने धर्म को छिपाकर, किसी को धोखा देकर शादी करता है, तो उसे 10 साल की सजा होगी। इस अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के लिए 15 हज़ार के जुर्माने के साथ 1 से 5 साल की सजा का प्रावधान भी है। साथ ही अगर अनुसूचित जाति / जनजाति समुदाय की नाबालिगों व महिलाओं के साथ यह होता है तो 25 हज़ार के जुर्माने के साथ 3 से 10 साल की जेल होगी।

वहीं, मध्यप्रदेश की बात करें, तो दिसंबर के आखिरी सप्ताह में, कुल 19 प्रावधानों के साथ लव जिहाद विरोधी विधेयक 'धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020' को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। मतलब अगर किसी व्यक्ति पर, किसी नाबालिग अनुसूचित जाति / जनजाति की बेटियों को बहला-फुसलाकर शादी करने का अपराध सिद्ध होता है, तो उसे 2 से 10 साल तक की पनिशमेंट मिलेगी। इसी प्रकार से अगर कोई व्यक्ति धन और संपत्ति के लालच में अपना धर्म छोड़ कर शादी करता है तो उसकी शादी अवैध मानी जाएगी इसमें ₹50000 तक जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

ज़ाहिर तौर पर यह बेहद कठोर कानून है और यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम भी है। अगर अंतर धार्मिक विवाह के नियमावली की बात करें, तो भारत में मुख्य रूप से 4 अधिनियम हैं, जिनके जरिए विवाह की मान्यता कानूनी शक्ल लेती है।

इसमें हिंदू विवाह अधिनियम हैं, जिसे 1955 विवाह अधिनियम कहा जाता है। इसी प्रकार मुस्लिम पर्सनल ला 1937 मौजूद है, तो भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 भी मौजूद है। साथ ही पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम 1936 भी लागू है। ज़ाहिर तौर पर इन तमाम कानूनों के अतिरिक्त, भारत में अगर दो अलग-अलग धर्मों के लोग भी आपस में विवाह करना चाहते हैं, तो विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत वह विवाह कर सकते हैं।

इसमें किसी एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के धर्म को अपनाना पड़ता है और इस तरीके से विवाह का पंजीकरण किया जा सकता है। इसी क्रम में बात की जाए, तो इंडियन कांस्टीट्यूशन के अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान द्वारा दिया गया है। इसका मतलब किसी भी व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उसके नियमों को पालन करने की छूट दी गई है।

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यह मनुष्य का मौलिक अधिकार भी है। वह स्वेच्छा से अपने धर्म का परिवर्तन भी कर सकता है, खासकर विवाह के बाद।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 की बात करें, तो 1954 में इसे लागू किया गया था और यह अधिनियम 1873 के विशेष विवाह अधिनियम को ही प्रतिस्थापित करता है। जाहिर तौर पर अलग-अलग धर्म के लोगों के द्वारा आपस में विवाह करने के बाद यह अधिनियम उसे रजिस्ट्रेशन का राइट देता है। ना केवल इंडियन, बल्कि विदेशों में रह रहे भारतीय नागरिकों पर भी यह अधिनियम लागू होता है। हालांकि इसके तहत कुछ शर्ते हैं, जिसके अनुसार अगर दो व्यक्ति विवाह कर रहे हैं, उन दोनों का कोई पक्षकार यानी पति या पत्नी जीवित नहीं होना चाहिए। 

साथ ही दोनों को मानसिक विकार ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे वह अपनी सहमति या असहमति ना दे सकें। इसमें संतान उत्पत्ति के योग्य होना भी एक शर्त मानी जा सकती है उम्र की बात की जाए तो पुरुष की 21 और महिला की 18 वर्ष की उम्र अनिवार्य है।

इन तमाम बातों को अगर हम देखते हैं, तो यह सामने आता है कि शादी एक पवित्र बंधन है और इस बंधन की पवित्रता बनाए रखने में ही हर व्यक्ति की भलाई है। हालांकि कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि कानून को अपना काम करना पड़ता है और इसी अनुरूप कानून ने एक रास्ता अख्तियार किया है।

- मिथिलेश कुमार सिंह

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