गणेश चतुर्थी पर गणपति को ले आएं घर, कष्टों को हर लेंगे बप्पा

Ganesha chaturthi festival brings happiness in life
शुभा दुबे । Aug 24 2017 11:28PM

गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, 10 दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है।

गणेश चतुर्थी भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को पड़ती है। शिवपुराण में कहा गया है कि भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण तिथि है, जबकि गणेशपुराण के अनुसार गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को हुआ था। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, 10 दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है।

महत्व

विघ्न विनायक गणेश जी का यह त्योहार वैसे तो पूरे देश भर में उल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है जहां दस दिनों के लिए सारा वातावरण गणेशमय हो जाता है। छोटी जगहों से लेकर बड़े−बड़े होटलों तक में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। शायद ही कोई ऐसा श्रद्धालु हो जो इस दिन गणेश जी की प्रतिमा स्थापित नहीं करता हो। ओम गण गण गणपते नमः और गणपति बप्पा मोरया का जयघोष दस दिनों तक गूंजता रहता है। गणेशजी को चढ़ाए जाने वाले लड्डुओं की इन दिनों भरमार रहती है।

भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। उनके अनन्त नामों में सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन− ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह−नगरों में प्रवेश तथा गृह नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है। देवसमाज में गणेशजी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। भगवान श्री गणेशजी की पूजा किसी भी शुभ कार्य के करने के पहले की जाती है। मोदक इनका मनभावन भोग है और चूहा इनका प्रिय वाहन है। इनकी शादी ऋद्धि तथा सिद्धि के साथ हुई। इस पर्व से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन के रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है।

गणपति मूर्ति स्थापना

भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए मध्याह्न के समय गणेश पूजा के लिये ज्यादा उपयुक्त है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।

मध्याह्न में गणेश पूजा का समय- 11.13 से 13.44 तक

पूजन विधि

इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि के बाद सोने, तांबे, मिट्टी आदि की गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनका आह्वान किया जाता है। उनका तिलक कर पान, सुपारी, नारियल, लड्डु तथा मेवे चढ़ाए जाते हैं। उन्हें कम से कम 21 लड्डुओं का भोग लगाने की परम्परा है। इनमें से पांच लड्डुओं को गणेशजी के पास ही रहने देना चाहिए बाकी लड्डुओं का प्रसाद बांट देना चाहिए। सुबह और शाम को गणेशजी की आरती की जानी चाहिए और पूजन के बाद नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्म्णों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिए। गणेशजी का पूजन करने से रिद्धि−सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है जीवन के सभी कष्ट भी दूर होते हैं। इसके अलावा जीवन में शुभ अवसरों का आगमन होने लगता है। गणेशजी भक्तों को विशेष रूप से प्रेम करते हैं यदि आप सच्चे मन से उनका ध्यान लगाएंगे तो वह किसी न किसी रूप में आपकी मदद करने अवश्य आएंगे। उनसे किसी का कष्ट नहीं देखा जाता। वह अत्यंत दयालु हैं। वह सभी के मन की इच्छा को पूर्ण करने वाले हैं।

कथा

एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिये भोगवती नामक स्थान पर गये। उनके चले जाने के पश्चात माता पार्वती ने अपने मैल से एक पुतला बनाया जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा। माता ने गणेश को द्वार पर बैठा दिया और कहा कि जब तक मै स्नान करूं किसी भी पुरुष को अन्दर मत आने देना। कुछ समय बाद जब भगवान शंकर वापस आये तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया, जिससे क्रुद्ध होकर भगवान शंकर ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया और अन्दर चले गये। पार्वती जी ने समझा कि भोजन में विलम्ब होने से भगवान शंकरजी नाराज हैं सो उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोस कर शंकरजी को भोजन के लिये बुलाया।

शंकरजी ने दो थालियों को देखकर पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिये है, तो पार्वती ने जबाब दिया कि यह दूसरा था पुत्र गणेश के लिये है जो बाहर पहरा दे रहा है। यह सुनकर भगवान शंकर बोले कि मैंने तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है। यह सुनकर पार्वती जी को बहुत दु:ख हुआ और वह भगवान महादेव से अपने प्रिय पुत्र गणेश को जीवित करने की प्रार्थना करने लगीं। तब शंकरजी ने हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया जिससे बालक गणेश जीवित हो उठा और माता पार्वती बहुत हर्षित हुईं। उन्होंने पति और पुत्र को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया। चूंकि यह घटना भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुयी थी इसलिये इस तिथि का नाम गणेश चतुर्थी रखा गया।

चंद्र दर्शन दोष से बचाव

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक झेलना पड़ता है। इस दिन चन्द्र को अर्घ्य देना चाहिए लेकिन उनकी ओर देखना नहीं चाहिए। फिर भी यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाएं तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-

सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः। 

सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥

  

आरती−

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता तेरी पार्वती पिता महादेवा। जय गणेश...

एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी।

माथे पर सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी। जय गणेश...

अन्धन को आंख देत, कोढि़न को काया।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया। जय गणेश...

हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करे सेवा। जय गणेश...

दीनन की लाज राखो, शम्भु पुत्र वारी।

मनोरथ को पूरा करो, जाये बलिहारी। जय गणेश...

-शुभा दुबे

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