मोक्षदा एकादशी व्रत से मिलता है धन ऐश्वर्य

Mokshada Ekadashi
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मोक्षदा एकादशी के प्रात: स्नान आदि करके व्रत और विष्णु पूजा का संकल्प लेते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थान पर स्थापित करें। उनका पंचामृत से अभिषेक करें। फिर उनको चंदन, रोली लगाएं।

आज मोक्षदा एकादशी है, एकादशी का हिन्दू धर्म में खास महत्व होता है, तो आइए हम आपको मोक्षदा एकादशी व्रत के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

मोक्षदा एकादशी का नाम भी है खास 

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी मनायी जाती है। इस बार 3 दिसंबर दिन शनिवार को मोक्षदा एकादशी मनायी जा रही है। पंडितों का मानना है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया था इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन उपवास रखने और गीता का पाठ करने से जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है और पूर्वजों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है, जो सभी मनोकामनाओं को पूरी करती है।

मोक्षदा एकादशी पर इनसे करें परहेज 

एकादशी पर कंद, चावल, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल, बैंगन खाने से परहेज करें। इस दिन इनका सेवन करने से व्रत का फल नहीं मिलता। जिन्होंने व्रत नहीं किया वह भी एकादशी में ये चीजें न खाएं। एकादशी के दिन भूलकर भी तुलसी दल न तोड़े, इससे देवी लक्ष्मी क्रोधित हो जाती हैं और धन हानि होती है। पूजा में भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाने के लिए इसे एक दिन पहले ही तोड़ लें।

मोक्षदा एकादशी का मुहूर्त

मोक्षदा एकादशी तिथि आरंभ- 2 दिसम्बर 2022 को रात 5 बजकर 39 मिनट से शुरू

मोक्षदा एकादशी तिथि समाप्त- 3 दिसम्बर 2022 को रात 5 बजकर 34 मिनट तक

पारण का (व्रत तोड़ने का) समय- 4 दिसंबर 13:14 से 15:19 तक

वैष्णव मोक्षदा एकादशी- 4 दिसम्बर 2022, रविवार

वैष्णव एकादशी के लिए पारण का समय- 5 दिसंबर सुबह 06:59 से 09:04 तक

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मोक्षदा एकादशी पर इन उपायों से दूर होंगे सभी संकट 

आजकल बहुत से घरों में पितृदोष होता है। कई लोगों की जन्मकुंडली में भी पितृदोष की शिकायत होती हैं। ऐसे लोगों को मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पितरों की शांति के लिए काले तिलों से विधिपूर्वक तर्पण करना चाहिए। इस एकादशी के इस उपाय से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है तथा पितृदोष दूर होता है। मोक्षदा पर इन उपायों से एकादशी पर से ही व्यक्ति को समस्त प्रकार के सुख-साधन प्राप्त होते हैं।

1. इसी दिन गीता जयंती होने के कारण यह एकादशी अत्यन्त पवित्र मानी गई है। इस दिन यदि घर में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया जाए और गीता के अध्यायों का ही हवन किया जाए तो उस व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।

2. शास्त्रों में एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित की गई है। इस दिन भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण की पूजा कर उन्हें तुलसी समर्पित करने से भी व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाए तो ऐसे व्यक्ति पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और उसे समस्त प्रकार के भंडार देती हैं।

मोक्षदा एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा

मोक्षदा एकादशी के प्रात: स्नान आदि करके व्रत और विष्णु पूजा का संकल्प लेते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थान पर स्थापित करें। उनका पंचामृत से अभिषेक करें। फिर उनको चंदन, रोली लगाएं। पीले फूल, वस्त्र, अक्षत्, धूप, दीप, पान, तुलसी पत्र आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को खीर, केला, श्रीफल और केसर भात का भोग लगाएं। इनमें से जो उपलब्ध हो, उसे चढ़ा सकते हैं. उनके लिए एक घी का दीपक जलाएं और उसमें काला या सफेद डाल दें। इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। अब मोक्षदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें। एकादशी कथा के समापन के बाद भगवान विष्णु की विधिपूर्वक आरती करें। उसके बाद अपनी मनोकामना व्यक्त कर दें। प्रसाद लोगों में वितरित कर दें। पूरे दिन फलाहार करते हुए भगवत भजन करें और रात्रि प्रहर में जागरण करें. अगले दिन प्रात: स्नान आदि करके भगवान विष्णु की पूजा करें और पारण करके व्रत को पूरा करें। पारण से पहले द्वादशी को किसी गरीब या फिर किसी ब्राह्मण को दान भी दें। इस प्रकार मोक्षदा एकादशी व्रत का पूजन पूरा होता है।

मोक्षदा एकादशी की कहानी

गोकुल नगर में वैखानस नाम का योग्य व प्रतापी राजा था. एक बार उसने स्वप्न में अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते देखा। यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसने अगले दिन यह बात अपने विद्वान ब्राह्मणों को बताते हुए पिता की नरक से मुक्ति का उपाय पूछा। इस पर ब्राह्मणों ने राजा को पास ही के पर्वत पर रहने वाले एक ऋषि के पास जाने की सलाह दी। ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। जहां उसने मुनि को प्रणाम कर अपना स्वप्न सुनाया और पिता की मुक्ति का उपाय पूछा। ये सुन मुनि ने आँखें बंद कर ध्यान लगाया। योग बल से सब जानकर उन्होंने राजा से कहा कि तुम्हारे पिता ने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को तो रति दे दी, पर सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को मांगने पर भी ऋतुदान नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। उपाय बताते हुए मुनि बोले कि हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत करें। उस उपवास के पुण्य को संकल्प कर अपने पिता को दे दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की नरक से अवश्य मुक्ति होगी। मुनि को प्रणाम कर राजा इसके बाद वापस अपने महल लौट आया। फिर मुनि के कहे अनुसार परिवार सहित एकादशी का व्रत कर उसका पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दिया, जिसके प्रभाव से राजा के पिता को नरक से मुक्ति मिल गई।

मोक्षदा एकादशी महत्व

एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए इस दिन व्रत जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर एवं सभी सांसारिक सुख भोगकर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से नीच योनि में गए पितरों को मुक्ति मिलती है। भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत के प्रभाव से प्राणी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। मोक्ष प्रदान करने वाली यह एकादशी मनुष्यों के लिए चिंतामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण कर बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। पौराणिक मान्यता है कि एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों को शमन करने की शक्ति होती है।भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मोक्षदा एकादशी का महत्व समझाते हुए कहा है कि इस एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने और सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसदिन किसी भी तरह के वर्जित कर्म से बचना चाहिए।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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