Kurma Dwadashi 2025: कूर्म द्वादशी व्रत से सभी बाधाएं होंगी दूर, रहेंगे संकट मुक्त

Kurma Dwadashi 2025
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पंडितों के अनुसार कूर्म द्वादशी के दिन सुबह स्नान के आदि के बाद व्रत का संकल्प लें। उसके बाद साफ वस्त्र धारण करके घर के मंदिर की साफ सफाई करें। फिर मंदिर में साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद सिंदूर, लाल फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें।

आज कूर्म द्वादशी है, हिंदू धर्म में कूर्म द्वादशी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु दूसरी बार कूर्म यानी कछुए के रुप में अवतरित हुए थे। कूर्म द्वादशी का दिन भगवान विष्णु के कुर्म अवतार को ही समर्पित किया गया है। कूर्म द्वादशी व्रत से व्यक्ति के सारे पापों का नाश हो जाता है और मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको कूर्म द्वादशी व्रत की पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें कूर्म द्वादशी के बारे में 

कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी की तिथि होती है। कूर्म संस्कृत का शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ कछुआ होता है। कूर्म द्वादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने समुंद्र मंथन के लिए कछुए का अवतार लिया था, जो भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है। जिस समय मंदराचल पर्वत समुद्र मंथन धसने लगा तब भगवान ने कच्छप रूप धारण करके इस पर्वत का भार अपनी पीठ पर लिया था। कूर्म द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से और व्रत रखने से साधक को सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है। कूर्म द्वादशी के दिन घर में कछुआ लाने को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। पंडितों के अनुसार चांदी व अष्टधातु का कछुआ घर व दुकान में रखना अति शुभकारी होता है। काले रंग का कछुआ को ओर भी शुभ बताया जाता है, इससे जीवन में हर तरह की तरक्की की संभावना बढ़ती है। 

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कूर्म द्वादशी के दिन ऐसे करें पूजा, मिलेगा लाभ 

पंडितों के अनुसार कूर्म द्वादशी के दिन सुबह स्नान के आदि के बाद व्रत का संकल्प लें। उसके बाद साफ वस्त्र धारण करके घर के मंदिर की साफ सफाई करें। फिर मंदिर में साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद सिंदूर, लाल फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें। इस दिन कुर्म स्तोत्रम् का पाठ अवश्य करें। अंत में आरती करके भोग लगाएं और सब में वितरित करें। कूर्म द्वादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत करने वाल व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति व कुछए की प्रतिमा को पूजा स्थल पर रखा जाता है और फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है। इस दिन कुर्म स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान को भोग अर्पित करें, जिसमें फल, मिठाई और विशेष रूप से तुलसी के पत्ते शामिल हों। पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद सभी में वितरित करें।

जानें कूर्म द्वादशी का महत्व भी है खास 

शास्त्रों में कूर्म द्वादशी के व्रत का विशेष महत्व है। कूर्म भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है। जो उन्होंने समुद्र मंथन के समय लिया था। भगवान विष्णु के इस रूप की पूजा करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन का व्रत करने से भक्तों से सार कष्ट दूर होते हैं और उनको मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

इसलिए मनाई जाती है कूर्म द्वादशी

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यों के राजा बलि ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद तीनों लोकों में असुरराज बलि का राज हो गया। देवताओं की शक्तियां खो गईं। इसके बाद सभी देवता श्री हरि विष्णु के पास सहायता के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को सुझाव दिया कि वो समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करें और फिर उसका पान करें। ऐसा करने से उनको अपनी खोईं शक्तियां मिल जाएंगी, लेकिन समुद्र मंथन का काम बहुत कठिन था। देवता काफी शक्तिहीन हो गए थे, ऐसे में इस समस्या का समाधान भी देवताओं को श्री हरि विष्णु ने दिया। भगवान विष्णु देवताओं से बोले कि वो दैत्यों को पास जाकर उनको अमृत और उससे मिलने वाले अमरत्व के बारे में बताएं। साथ ही उनको समुद्र मंथन के लिए मना लें। इसके बाद देवता दैत्यों के पास गए और मिलकर समुद्र मंथन की बात कही। पहले तो दैत्यों ने यह सोचकर मना कर दिया कि वो अकेले समुद्र मंथन करेंगे और सबकुछ प्राप्त कर लेंगे, लेकिन ऐसा करना दैत्यों के बस का भी नहीं था। अंत में समूद्र संथन से निकलने वाली अमूल्य वस्तुओं और अमृत के लालच में दैत्यों को देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने पर विवश कर दिया। इसके बाद दैत्य और देवता क्षीर सागर पहुंचे। समुद्र मंथन के लिए उन्होंने मद्रांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग का रस्सी की रस्सी बनाई। समुद्र मंथन शुरू होने के कुछ ही समय बाद मद्रांचल पर्वत समुद्र में धंसने लगा। तभी भगवान विष्णु कूर्म (कछुए) अवतार में मद्रांचल पर्वत के नीचे आ गए और ऐसे में पर्वत उनकी पीठ पर आ गया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के कारण ही समुद्र मंथन हो पाया, समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकला एवं जिसका पान कर के देवताओं को उनकी शक्तियां वापस मिल गईं।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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