Chaiti Chhath 2023: चैती छठ पर घाटों के किनारे होती है खास पूजा

Chaiti Chhath
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छठ का पर्व प्रकृति को समर्पित है. छठ पूजा में डूबते सूर्य की उपासना की जाती है। पंडितों का मानना है कि छठी मईया की पूजा करने से संतान को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इसके साथ संतान सुख के लिए भी छठ का व्रत रखा जाता है।

चैती छठ का हिन्दू धर्म में खास महत्व है, इस दिन भक्त कठिन उपवास रख सूर्य देवता को अघर्य देते हैं तो आइए हम आपको चैती छठ व्रत की पूजा विधि और महत्व के बारे में बताते हैं।

जानें चैती छठ के बारे में

लोक आस्था का महापर्व चैती छठ पूजा कल 25 मार्च 2023 को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। इसी के साथ व्रतियों ने छठ व्रत भी शुरू कर दिया है। और अब उदयीमान सूर्य को अर्घ्‍य देकर यह छठ पर्व संपन्‍न होगा। छठ पर्व साल में 2 बार मनाया जाता है, एक छठ कार्तिक माह में दिवाली के बाद मनाई जाती है, वहीं इससे पहले चैत्र माह में भी चैती छठ मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में साल में दो बार छठ मनाया जाता है। एक बार कार्तिक महीने में दूसरी बार चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यमुना छठ मनाया जाता है। इसे यमुना जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पंडितों का मानना है कि यमुना जयंती के दिन मां यमुना का जन्मदिन है। इसलिए इस दिन भक्त यमुना नदी में स्नान कर विविध प्रकार के व्यंजन चढ़ाते हैं। इसके अलावा इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। कुछ भक्त यमुना छठ पर कठिन व्रत भी करते हैं। भक्त सुबह-शाम यमुना जी की पूजा करते हैं और व्रत करने के बाद अगले दिन 24 घंटे के बाद उपवास तोड़ा जाता है। साथ ही महिलाएं घर में विविध प्रकार की मिठाइयां तैयार करती हैं और देवी यमुना को चढ़ाती हैं और इसे सभी सम्बन्धियों में बांट देती हैं। 

चैती छठ 2023 सूर्य अर्घ्य का शुभ समय

चैती छठ महापर्व में 27 मार्च को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, इस दिन सूर्य पूजा का समय शाम 06 बजकर 36 मिनट पर है। 28 मार्च को चैती छठ का समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद होगा। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने का समय सुबह 06 बजकर 16 मिनट पर है।

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छठ पूजा का महत्व

छठ का पर्व प्रकृति को समर्पित है. छठ पूजा में डूबते सूर्य की उपासना की जाती है। पंडितों का मानना है कि छठी मईया की पूजा करने से संतान को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इसके साथ संतान सुख के लिए भी छठ का व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में छठ पूजा का महत्व काफी अधिक है. कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की षष्‍ठी से शुरू होने वाले इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्‍ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। 

चैती छठ की महत्वपूर्ण तिथियां

25 मार्च, शनिवार: नहाय खाय

26 मार्च, रविवार: खरना

27 मार्च, सोमवार: डूबते सूर्य को अर्घ्य, समय: शाम 06:36 बजे

28 मार्च, मंगलवार: उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, पारण के साथ व्रत का समापन, समय: सुबह 06:16 बजे

चैती छठ में 36 घंटे तक रखना होता है उपवास 

छठ पूजा पर्व के पहले दिन नहाय खाय में पवित्र नदी में स्नान करके अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी खाकर व्रत शुरू किया जाता है. अगले दिन निर्जला रहते हैं और शाम को खरना होता है, जिसमें व्रती गुड़ की खीर और रोटी कहते हैं. फिर 36 घंटे तक निर्जला व्रत रहने के बाद 27 मार्च, सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को छठव्रती अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसके बाद 28 मार्च को उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही महापर्व का समापन हो जाएगा। 

जानें अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त

36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद 27 मार्च सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को छठव्रती अर्घ्य अर्पित करेंगे। इस बार अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य देने का शुभ मुहूर्त शाम को 5:28 बजे से रहेगा। वहीं उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5:55 बजे से रहेगा। इस समय पर अर्घ्य देने से जीवन में अपार सुख-समृद्धि आएगी। 

चैती छठ को यमुना छठ के रूप में मनाया जाता है 

चैती छठ या यमुना छठ का हिन्दू धर्म में खास महत्व होता है। इस दिन यमुना नदी के हर घाट पर यमुना जी की पूजा और आरती होती है। साथ ही मां यमुना को छप्पन भोग अर्पित किए जाते हैं और शहरों में झाकियां निकाली जाती है। मथुरा और वृंदावन में यमुना छठ का विशेष महत्व है। इस दिन ही वल्लाभाचार्य जी ने यमुना अष्टक की रचना भी की थी।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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