Lambodara Sankashti Chaturthi 2024: लंबोदर संकष्टी चतुर्थी पर इस तरह करें भगवान श्रीगणेश की पूजा, मिलेगा दोगुना फल

Lambodara Sankashti Chaturthi 2024
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हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व होता है। इस साल 29 जनवरी 2024 को लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है। आइए जानते हैं लंबोदर संकष्टी चतुर्थी में किस प्रकार भगवान गणेश की पूजा करना फलदायी माना जाता है।

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व होता है। हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का व्रत व पूजा करने का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को लंबोदर संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है।

इस साल 29 जनवरी 2024 को लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है। मान्यता के मुताबिक इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से बुद्धि, विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि व खुशियों का आगमन होता है। तो आइए जानते हैं लंबोदर संकष्टी चतुर्थी में किस प्रकार भगवान गणेश की पूजा करना फलदायी माना जाता है।

पूजा सामग्री लिस्ट

भगवान गणेश की पूजा की थाल में जल, गंगाजल, पंचामृत, अक्षत, रोली, सिंदूर, दूर्वा, सुपारी, जनेऊ, दीपक, घी, फल, फूल, लड्डू, भगवान गणेश की प्रतिमा आदि को शामिल करें।

पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर भगवान गणेश का ध्यान करें। फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सूर्य देव को अर्घ्य देकर मंदिर की साफ-सफाई करें। इसके बाद एक चौकी पर साफ वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें। अब गणेश भगवान को रोली, अक्षत, पंचामृत, जनेऊ, सिंदूर, कूश, दूर्वा, सुपारी आदि अर्पित करें। फिर गजानन के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें और विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन भगवान गणेश चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है। वहीं भगवान गणेश को लड्डू को भोग अर्पित करें।

लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी मंत्र

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।

निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।।

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।

विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।

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