नाड़ी देखकर रोग जानने की प्राचीन चिकित्सा पद्धति, जानें नाड़ी परीक्षण में आए आधुनिक बदलाव

pulse diagnosis

आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में हो रहे सभी परिवर्तनों का प्रभाव हमारे हृदय की गति पद पड़ता है। यदि हमारे दिल की धड़कन की गति में किसी प्रकार का बदलाव आता है तो इसका सीधा प्रभाव हमारी धमनियों की धड़कन पर पड़ता है।

आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। हज़ारों वर्षों से इसका उपयोग मनुष्य के रोगों का निदान करने के लिए किया जा रहा है। आयुर्वेद का मतलब है जीवन का ज्ञान इसीलिए आयुर्वेद में रोगी के लक्षण के साथ-साथ उसके मन, प्रकृति, दोषों और धातुओं की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसका उपचार किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में तीन प्रमुख तत्व होते हैं- वात, पित्त और कफ। शरीर में इनमें से एक का भी संतुलन बिगड़ने से व्यक्ति बीमार हो जाता है। आयुर्वेद में रोगों का उपचार करने की आठ विधियाँ हैं जिनमें से नाड़ी परीक्षण एक है। इसमें चिकित्सक मरीज की नाड़ी की गति नापकर उसके स्वास्थ्य और रोगों के बारे में पता लगाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर और मस्तिष्क की सभी गतिविधियों का पता नाड़ी अध्ययन द्वारा लगाया जा सकता है। नाड़ी परीक्षण से कई गंभीर बीमारियों का पता लगाकर रोगी का उपचार किया जाता है। आज के इस लेख में हम आपको नाड़ी परीक्षण के बारे में जानकारी देंगे-

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क्या है नाड़ी परीक्षण

आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में हो रहे सभी परिवर्तनों का प्रभाव हमारे हृदय की गति पद पड़ता है। यदि हमारे दिल की धड़कन की गति में किसी प्रकार का बदलाव आता है तो इसका सीधा प्रभाव हमारी धमनियों की धड़कन पर पड़ता है। इस प्रकार चिकित्सक हमारी नाड़ी की गति देखकर हमारे स्वास्थ्य और रोग का पता लगाते हैं।

नाड़ी परीक्षण करने का सही समय

नाड़ी परीक्षण के लिए सबसे सही समय सुबह खाली पेट होता है। दरअसल, भोजन करने या तेल मालिश करने के बाद नाड़ी की गति असामान्य व अस्थिर हो जाती है जिसकी वजह से नाड़ी की गति का ठीक से पता नहीं चल पता है। इसी तरह अगर मरीज भूखा-प्यासा हो तब भी नाड़ी परीक्षण से रोग का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

नाड़ी परीक्षण की प्रक्रिया

नाड़ी परीक्षण करने के लिए पुरुषों के दाएं हाथ की और स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी की गति का अध्ययन किया जाता है। हालांकि, कभी कभी रोग की सटीक जानकारी हासिल करने के लिए दोनों हाथों की नाड़ी भी देखी जाती है। नाड़ी परिक्षण के दौरान हाथ की पहली तीन उंगलियों (तर्जनी, मध्यमा और अनामिका) का प्रयोग किया जाता है। नाड़ी परीक्षण में हथेली से लगभग आधा इंच नीचे उँगलियों के माध्यम से नाड़ी की गति का अध्ययन किया जाता है। चिकित्सक नाड़ी की गति से वात, पित्त व कफ के स्तर को देखते हुए रोग का पता लगाता है। यदि नाड़ी की गति 68 -74 के बीच हो तो इसे सामान्य माना जाता है। इससे कम या ज़्यादा गति होने पर व्यक्ति अस्वस्थ माना जाता है।

कई गंभीर व लाइलाज बीमारियों का पता चल सकता है

नाड़ी परीक्षण से सर्दी-बुखार से लेकर उच्च रक्तचाप, मधुमेह, त्वचा के रोग, जोड़ों के दर्द जैसे कई गंभीर रोगों के बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा नाड़ी परीक्षण से ना सिर्फ शारीरिक बल्कि स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगों के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। कुछ अनुभवी व कुशल चिकित्सक रोगी की नाड़ी परीक्षण से ही गंभीर और लाइलाज बीमारियों का भी पता लगा लेते हैं। अगर रोगी की नाड़ी बहुत धीमी या अनियमित गति से चल रही हो या रुक-रुक के चल रही हो तो इसका मतलब है रोगी को कोई लाइलाज या जानलेवा है।

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नाड़ी परीक्षण में आए हैं आधुनिक बदलाव

अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह ही आयुर्वेद में भी तकनीकी विकास की मदद से कई आधुनिक बदलाव आए हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में ऐसा ही एक अहम और आधुनिक बदलाव इलेक्‍ट्रोत्रिदोषग्राफ मशीन के आविष्‍कार से आने से हुआ है। इलेक्‍ट्रोत्रिदोषग्राफ (ईटीजी) मशीन की सहायता से इलेक्‍ट्रोत्रिदोषग्राम तकनीक का अविष्‍कार संभव हो पाया है। इस तकनीक की मदद से नाड़ी परीक्षण पद्धति को कम्यूटर की मदद से कागज पर साक्ष्‍य रूप में प्रस्‍तुत करने का प्रयास सफल हो पाया है। इस आधुनिक तकनीक में शरीर को इक्‍कीस सेक्‍टर में बांटकर इन हिस्‍सों का ईटीजी मशीन की सहायता से स्‍कैन किया जाता है। स्‍कैन की गई ट्रेसिंग को कम्‍प्‍यूटर द्वारा एनालिसिस करके रिपोर्ट के रूप में प्रस्‍तुत कर दिया जाता है। इस प्रकार स्कैन में मिले डाटा को अध्ययन करने से शरीर में त्रिदोष (वात, पित्‍त और कफ) की क्‍या स्थिति और स्तर के बारे में पता लगाया जा सकता है। यह एक सस्ती परीक्षण विधि है जिससे व्यक्ति के शरीर में कौन सा अंग कैसे काम कर रहा है इसका पता लगाया जा सकता है। ईटीजी की सहायता से कई रोगों की सटीक जानकारी प्राप्त करके उनका निदान किया जा सकता है।

- प्रिया मिश्रा

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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