इस तरह हुई थी बच्चों के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार की शुरुआत

the beginning of the National Bravery Award for Children

वे बच्चे साहस और धैर्य के कारण न केवल दूसरों की जान बचाते हैं बल्कि दूसरों के लिए सहायता, दया और परोपकार की मिसाल प्रस्तुत करते हैं जो अपने आप में अनोखा होता है।

गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान आपने उन बहादुर बच्चों की तस्वीर तो देखी ही होगी जो अपनी वीरता और साहस के बलबूते पुरस्कार पाने का दम रखते हैं। वे बच्चे साहस और धैर्य के कारण न केवल दूसरों की जान बचाते हैं बल्कि दूसरों के लिए सहायता, दया और परोपकार की मिसाल प्रस्तुत करते हैं जो अपने आप में अनोखा होता है।

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हर साल 16 साल के कम उम्र के बच्चों को उनके वीरता पूर्ण कार्यों के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार भारत सरकार और इंडियन काउंसिल फार चाइल्ड वेलफेयर द्वारा दिया जाता है। इन पुरस्कारों की शुरुआत 1957 में की गई थी।

वीरता पुरस्कारों की शुरूआत एक समारोह के दौरान 2 अक्टूबर 1957 में तब हुई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू रामलीला मैदान में एक कार्यक्रम में सम्मिलित हुए थे। कार्यक्रम के दौरान शार्ट सर्किट होने से शामियाने में आग लगने वाली थी। तभी 14 वर्षीय हरीश चन्द्र मेहरा नाम के एक स्काउट ने जलते हुए टैंट को चाकू से काट कर अलग कर दिया जिससे हजारों लोगों की जान बच गई। इस तरह पहला राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हरीश चन्द्र के साथ अन्य बच्चे को 4 फरवरी 1958 को प्रदान किया गया। वीरता पुरस्कारों का निर्धारण इंडियन काउंसिल फार चाइल्ड वेलफेयर द्वारा किया जाता है। इन पुरस्कारों को भारत पुरस्कार, संजय चोपड़ा पुरस्कार, गीता चोपड़ा पुरस्कार, बापू गायधनी पुरस्कार और सामान्य वीरता पुरस्कारों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 

इस साल 18 बच्चों को वीरता पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इनमें 11 लड़के और 7 लड़कियां शामिल हैं। साथ ही तीन बच्चों को यह पुरस्कार मरणोपरांत दिया जाएगा। इस वर्ष उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मेघालय, केरल, गुजरात, नागालैंड, पंजाब, केरल और छत्तीसगढ़ से इस पुरस्कार हेतु बच्चों का चयन किया गया है। इस साल यह पुरस्कार 24 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा एक विशेष कार्यक्रम के दौरान दिया जाएगा। साथ ही ये बहादुर बच्चे गणतंत्र दिवस समारोह में भी हिस्सा लेंगे।

कर्नाटक की नेत्रावती एम चव्हान को मरणोपरांत गीता चोपड़ा पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इस 14 वर्षीय बहादुर बच्ची ने पानी में डूबते हुए अपने दो साथियों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। पंजाब के करनबीर सिंह को पानी में डूबी हुई स्कूल बस से 15 बच्चों की जान बचाने के लिए संजय चोपड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। ओड़ीशा की ममता दलाई, मेघालय के बेटसवजान पेनलांग और केरल के सबस्टियन को बापू गैधानी पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इसमें बेटसवजान पेनलांग ने अपने भाई को जिंदा जलने से बचाया। वहीं ममता दलाई ने अपनी मित्र को मगरमच्छ से बचाया। सबस्टियन ने अपने एक दोस्त को रेल की पटरी पर कुचलने से बचाया। उत्तर प्रदेश की नाजिया को सट्टेबाजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्रदान किया गया है। उत्तराखंड के पंकज सेमवाल को वीरता पुरस्कार अपने मां और बच्चे की जान बचाने के लिए दिया गया है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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