पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक भारत के चारो ओर मची उथल-पुथल, युद्ध की लपटें, दम तोड़ती अर्थव्यवस्था तो कहीं सत्ता का उलटफेर
भारत के नक्शे पर नजर डालें तो उसके आसपास के देशों में आपको कहीं युद्ध के बारूद बरसते, कहीं महंगाई से हलकान सड़कों पर प्रदर्शन करते लोग, वहीं कहीं पॉलिटिकल ड्रामे के हालात दिखेंगे।
अक्सर ये कहा जाता है कि अगर हमारे पड़ोसी अच्छे हैं तो हमारी रोजमर्रा की कई छोटी-बड़ी बातों की फिक्र यूं ही खत्म हो जाती है। यही फॉर्मूला देशों पर भी लागू होता है। अगर हमारे पड़ोसी देश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और उथल पुथल मची है तो हमें इससे क्या कहकर हम पीछा नहीं छुड़ा सकते। ये तो वही बात हो गई कि अगर आपके पड़ोसी के घर में आग लगी हो और आप अपना दरवाजा बंद कर लें, तो आप सुरक्षित नहीं रहेंगे। इसका असर हम पर भी पड़ना लाजिमी है। भारत के नक्शे पर नजर डालें तो उसके आसपास के देशों में आपको कहीं युद्ध के बारूद बरसते, कहीं महंगाई से हलकान सड़कों पर प्रदर्शन करते लोग, वहीं कहीं पॉलिटिकल ड्रामे के हालात दिखेंगे। रूस और यूक्रेन की जंग के डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। लेकिन फिर भी ये जंग जारी है। श्रीलंका के हालात से सभी वाकिफ हैं जहां की अर्थव्यवस्था कंगाली की राह पर है। पाकिस्तान के सियासी नाटक और सत्ता के फेरबदल ने दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींचा। वहीं अब नेपाल के डगमगाती अर्थव्यवस्था को लेकर भी चर्चाएं तेज हैं। यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी जगह उथल-पुथल मची है।
नेपाल की डगमगाती अर्थव्यवस्था
भारतीय उपमहाद्वीप के दो छोरों पर स्थित दो देश जिसको लेकर कहा जा रहा है कि उनकी स्थिति लगभग एक जैसी हो सकती है। उत्तर में स्थित नेपाल इन दिनों आर्थिक अव्यवस्था से जूझने की दिशा में कदम बढञा रहा है जिस तरह की समस्या से श्रीलंका इन दिनों दो-चार हो रहा है। श्रीलंका की तरह, नेपाल विदेशी मुद्रा भंडार के लिए पर्यटन और सीमित वस्तुओं के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है। देश को अपने आयात व्यय को पूरा करने की आवश्यकता है। जहां एक तरफ 2019-21 के दौरान श्रीलंका सरकार द्वारा किए गए कुछ उपायों ने वर्तमान स्थिति को जन्म दिया है, वहीं पिछले साल राजनीतिक संकट के बाद से ही नेपाल में आर्थिक संकट को तेज कर दिया था। श्रीलंकाई सरकार ने अपनी आय को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर कर कटौती की घोषणा की और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय किए। इसके परिणामस्वरूप राजस्व कम हो गया और श्रीलंका आवश्यक वस्तुओं के आयात को लेकर जूझने लगा।जुलाई 2021 से नेपाल में राजनीतिक संकट के बाद केपी शर्मा ओली सरकार के जाते ही विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आनी शुरू हो गई। नेपाल को सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा सोयाबीन तेल और ताड़ के तेल से प्राप्त होते थे। नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार जुलाई 2021 के मध्य में 11.75 अरब डॉलर से घटकर इस साल फरवरी में 9.75 अरब डॉलर हो गया।
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सेंट्रल बैंक चीफ बर्खास्त
वित्तीय संकट इतना गंभीर है कि नेपाल सरकार ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने को लेकर केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निलंबित कर दिया है। यह केवल दूसरी बार है जब नेपाल के केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निर्धारित पांच साल के कार्यकाल से वंचित किया गया है। गवर्नर के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नेपाल के केंद्रीय बैंक ने वाहनों और अन्य महंगी या लग्जरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की घोषणा के केंद्रीय बैंक के फैसले के बाद की गई। बर्खास्त राज्यपाल महा प्रसाद अधिकारी को केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने नियुक्त किया था, जिन्होंने चेतावनी दी थी कि नेपाल श्रीलंका की ओर बढ़ रहा है। नेपाल के वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने भरोसा दिलाया था कि देश श्रीलंका की राह पर नहीं जा रहा है।
श्रीलंका की कंगाली
श्रीलंका दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका है। देश में महंगाई दर हट से ज्यादा बढ़ गई है। देश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं, जनता राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से पूछ रही है कि आखिर हमारा देश कंगार क्यों हो गया है? श्रीलंका में मौजूदा संकट की शुरुआत 2019 में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के तहत सरकार बनने के बाद शुरू हुई थी। श्रीलंका के खजाने में आमद की तुलना में अधिक बहिर्वाह देखा गया क्योंकि उन्होंने चुनावी वादे के तहत कर कटौती की घोषणा की। अब हालत यह है कि दूध, दाल, रोटी और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए नागरिक आसमान छूती कीमतों का भुगतान कर रहे हैं। कुछ दिन पहले तक एक लीटर नारियल तेल 350 रुपये में मिलता था। अब इसकी कीमत 900 रुपये प्रति लीटर हो गई है।
नवंबर 2019 में सरकार बनने के बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने करों को 15 फीसदी से घटाकर आठ फीसदी कर दिया। इससे देश को सालाना राजस्व में 60 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक और गलती उनके लिए प्रावधान किए बिना वादे करना था। श्रीलंका पर्यटन और आयात पर निर्भर देश है। जब कोविड -19 महामारी के दौरान पर्यटन ठप हो गया और सभी क्षेत्रों में आय में भारी गिरावट आई, तो बेरोजगारी बढ़ गई। खजाना खाली हो गया। श्रीलंका के लिए माल आयात करना मुश्किल हो गया। तीसरी बड़ी गलती अपने बढ़ते कर्ज पर कड़ी निगरानी रखी जा रही थी। श्रीलंका पर विदेशी कर्ज दो साल में 175 फीसदी तक बढ़ गया है। देश का कुल कर्ज अब 2.66 लाख करोड़ रुपये है।
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पाकिस्तान का सियासी ड्रामा
पाकिस्तानी कप्तान इमरान खान की सत्ता से विदाई हो चुकी है और अब उनकी जगह शहबाज शरीफ सत्ता में आ गए हैं। इसके साथ ही एक महीने से चल रहे सियासी ड्रामे के द इंड हो गया। इमरान सरकार गिर गई। 342 सदस्यीय सदन में 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। जिसके बाद आज पाकिस्तान को शहबाज शरीफ के रूप में नया राष्ट्रपति मिल गया। लेकिन बीते एक महीने से पाकिस्तान की सियासत में उथल-पुथल मची रही। 8 मार्च को विपक्षी दलों द्वारा इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने से लेकर नियाजी खान के रन आउट होकर पैवेलियन जाने तक पाकिस्तान ने इसे दुनियाभर के लिए नाटक का मंच बना दिया था। नेशनल असेंबली को भंग करके इमरान खान को लग रहा था कि उन्होंने छक्का मारकर मैच जीत लिया है। लेकिन पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रन आउट करार दे दिया। पाकिस्तान का तो इतिहास कहता है कि न तो कोई प्रधानमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा कर पाया है और ना ही इज्जत से कुर्सी छोड़ पाया है। इमरान खान भी इसी परंपरा का हिस्सा बन गए।
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रूस-यूक्रेन युद्ध
रूस और यूक्रेन के बीच लगातार 46वें दिन भी जंग जारी है। दिन गुजरने के साथ ही रूसी सेना आक्रामक होती जा रही है। दूसरी तरफ रूसी आक्रमण का जमकर मुकाबला कर रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की भी कदम पीछे हटाने को तैयार नहीं है। रूस के दक्षिणी सैन्य जिले के कमांडर जनरल एलेग्जेंडर ड्वोर्निकोव को यूक्रेन युद्ध की बागडोर सौंपी है। यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था में इस साल अनुमानित रूप से 45.1 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि जंग में अब तक 1,793 नागरिकों की मौत हो गई है। वहीं, 2,439 लोग घायल हुए हैं। दूसरी तरफ वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि इस साल यूक्रेन की अर्थव्यवस्था लगभग आधी हो चुकी है। 10 अप्रैल को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जंग की वजह से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को 45% से ज्यादा का नुकसान हुआ।
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