बमबारी और महामारी के बीच, भूखों को खाना खिलाने के वन-मैन मिशन पर जुटे यह भारतीय शेफ
इस साल, जब महामारी का प्रकोप पूरी दुनिया में फैला तब इसका असर बगदाद शहर में भी हुआ है। बता दें कि श्रीवास्तव 54 साल के हो गए है और इस वक्त भी वह बगदाद में रहकर वन-मैन डिलीवरी सेवा को फिर से शुरू किया है।
एक जगह जहां बगदाद में बम गिराए जा रहे थे तो वहीं भारत के दमन श्रीवास्तव अपने काम में जुटे हुए थे। एक लग्जरी होटल में काम करने वाले सेफ दमन श्रीवास्तव खंडहर बन चुकी बगदाद में भुखों को भोजन परोसते है। अल राशीद होटल में काम कर रहे श्रीवास्तव के सहयोगियों ने एक-एक करके बगदाद शहर से चले गए है लेकिन 27 वर्षीय श्रीवास्तव इस बमबारी वाले शहर में बिना अपनी जान की परवाह किए वहीं रूके हुए है और दर्जनों लोगों को दैनिक आधार पर भोजन परोस रहे है। इस साल, जब महामारी का प्रकोप पूरी दुनिया में फैला तब इसका असर बगदाद शहर में भी हुआ है। बता दें कि श्रीवास्तव 54 साल के हो गए है और इस वक्त भी वह बगदाद में रहकर "वन-मैन डिलीवरी सेवा" को फिर से शुरू किया है।
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इस दौरा वह अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भोजन खिला रहे है, जिनमें से कई अपनी नौकरी खो चुके हैं। मार्च के बाद से श्रीवास्तव के रसोई में हर सप्ताह लगभग 500 भोजन तैयार किए जाते हैं। वह उन्हें अपनी कार से शहर भर में पहुँचाते है।टीओआई से बात करते हुए श्रीवास्तव ने कहा कि “इस साल की स्थिति ने मुझे उस दुख की याद दिला दी जो मैंने पहले देखा था। इराक में, मैंने ऐसे लोगों को देखा जो भोजन के लिए भीख माँगने के लिए नियमित रूप से मेरे होटल आते थे।
घर से काम करना और अपनी पत्नी और आठ साल की बेटी की मदद से श्रीवास्तव के लिए अपने दान को जारी रखना काफी आसान हो गया है। श्रीवास्तव ने कहा, अपने काम में व्यस्त होने ले पहले हम जल्दी उठते हैं, भोजन को पैक करते हैं और फिर लोगों को वितरित करते है। उन्होंने बताया कि दूसरों ने भी मदद के लिए कदम बढ़ाया है। पिछले महीने, स्कूल की शिक्षिका सारा मैरिक ने भी खाना बनाने में मदद की और जरूरतमंदो की मदद की।
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ला ट्रोब विश्वविद्यालय के एक मास्टर्स छात्र साईं किरण ने कहा कि, मैं अपनी नौकरी गंवा चुका हुं और कोविड-19 संकट के कारण मेरे पास खानें को कुछ नहीं था लेकिन श्रीवास्तव की मदद से मूझे खाना खानें को मिला। श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि “जब मैं पहली बार ऑस्ट्रेलिया आया, तो मुझे नौकरी खोजने में कुछ महीने लग गए। श्रीवास्तव 1995 में जॉर्डन के लिए इराक छोड़ने के सालों बाद 1995 में ऑस्ट्रेलिया चले गए। श्रीवास्तव एक फिलिस्तीनी से मिले जिन्होंने अपने नए फ्रेंच रेस्तरां में काम पर रखा था। श्रीवास्तव ने याद किया कि कैसे जॉर्डन के पूर्व राजा हुसैन ने भोजनालय का दौरा किया और भोजन को इतना पसंद किया कि उन्होंने अपनी विशेष रूप से डिजाइन की गई घड़ी उन्हें गिफ्ट में दी।
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