भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जलवायु समझौते पर किए हस्ताक्षर

[email protected] । Apr 23 2016 11:02AM

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में एक उच्च स्तरीय समारोह में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये। समारोह की मेजबानी संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने की।

संयुक्त राष्ट्र। भारत ने 170 से अधिक देशों के साथ मिलकर यहां ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किए जो इस दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम है कि उसने विकासशील और विकसित देशों को धरती के बढ़ते तापमान का मुकाबला करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के मोर्चे पर काम शुरू करने के लिए एकसाथ ला खड़ा किया है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में एक उच्च स्तरीय समारोह में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये। समारोह में शासनाध्यक्षों, मंत्रियों, उद्योगपतियों और कलाकारों ने हिस्सा लिया और उसकी मेजबानी संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने की।

बान ने कहा, ‘‘यह इतिहास में एक अहम क्षण है। आज आप भविष्य से जुड़े एक संविदापत्र पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। हम समय से होड़ कर रहे हैं।’’ एक सौ इकहत्तर देशों के जलवायु समझौते के हस्ताक्षर समारोह में शामिल होने के साथ ही किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते पर एक दिन में ज्यादातर देशों का मौजूद रहना एक रिकार्ड है। इससे पहले 1982 में 119 देशों ने समुद्री नियम संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस हस्ताक्षर के बाद देशों को अपने यहां से इस समझौते को मंजूरी दिलानी होगी। जब यूएनएफसीसी से जुड़े कम से कम 55 देश, जिनका वैश्विक उत्सर्जन कम से कम 55 फीसदी हो, इस समझौते को घरेलू स्तर पर मंजूरी प्रदान कर देंगे तब उसके 30 दिनों के अंदर यह प्रभाव में आ जाएगा।

भारत ने कहा है कि धनी देशों के दशकों के औद्योगिक विकास के बाद जलवायु परिवर्तन से लड़ने का बोझ गरीब देशों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता। भारत ने हर परिवार को बिजली की आपूर्ति की सरकार की योजना के तहत 2022 तक अपनी नवीकरणीय विद्युत क्षमता चार गुणा बढ़ाकर 175 गिगावाट करने की योजना की घोषणा की है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसी हफ्ते के प्रारंभ में यहां के एक थिंक टैंक को संबोधित करते हुए कहा था कि अपनी विकास जरूरतों के बावजूद भारत जलवायु की सुरक्षा के लिए पूरी तरह कटिबद्ध है। जेटली ने कहा था, ‘‘विकास के जिस स्तर तक हम पहुंचे हैं, वह बहुत है लेकिन अब भी एक कठोर सत्य यह है कि हमें काफी सफर करना है। हमें और मकानों, बिजली, शौचालयों, सड़कों और फैक्टरियों की जरूरत है। अतएव ईंधन की हमारी आवश्यकता निश्चित ही बढ़ने जा रही है। इन सभी के बावजूद पर्यावरण को बचाने के हमारे अपने मापदंड बड़े कठोर हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी जिम्मेदारियों को लेकर सजग हैं।’’

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