भारत, दक्षिण अफ्रीका ने 12 चीतों को Madhya Pradesh के कूनो लाने के लिए करार किया

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दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में दुनिया के सर्वाधिक 7,000 चीते वास करते हैं। अत्यधिक शिकार और आवासन क्षेत्र की कमी के कारण भारत में चीते पूरी तरह से लुप्त हो गए थे।

चीतों के पुनर्वास के महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत नामीबिया से आठ चीतों को लाए जाने के कुछ महीने बाद भारत और दक्षिण अफ्रीका ने आखिरकार अगले महीने अफ्रीकी देश से एक दर्जन चीतों को लाने और उन्हें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में फिर से भेजने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में दुनिया के सर्वाधिक 7,000 चीते वास करते हैं। अत्यधिक शिकार और आवासन क्षेत्र की कमी के कारण भारत में चीते पूरी तरह से लुप्त हो गए थे।

आखिरी चीता वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में देखा गया था जिसकी 1947 में मौत हो गई थी और 1952 में इस प्रजाति को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। दोनों देशों के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) के तहत 12 चीतों का एक प्रारंभिक समूह अगले महीने दक्षिण अफ्रीका से भारत आने वाला है। ये चीते 2022 में दक्षिण अफ्रीका के पड़ोसी नामीबिया से भारत लाए गए आठ चीतों में शामिल हो जाएंगे। वानिकी, मत्स्य पालन और पर्यावरण (डीएफएफई) ने एक बयान में कहा, ‘‘पिछली शताब्दी में अत्यधिक शिकार और आवासन स्थान के छिन जाने के कारण विलुप्त हुई इस चीते की प्रजाति को पूर्व में इसका आवासन स्थान रहे राज्य में फिर से लाने की पहल की जा रही है।’’

समझौता ज्ञापन भारत में व्यवहार्य और सुरक्षित चीता आबादी स्थापित करने के लिए पक्षकारों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, यह संरक्षण को बढ़ावा देता है और सुनिश्चित करता है कि चीता संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञता को साझा और आदान-प्रदान किया जाए और क्षमता का निर्माण किया जाए। नयी दिल्ली में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि समझौते पर पिछले सप्ताह हस्ताक्षर किए गए थे और सात नर एवं पांच मादा चीतों के 15 फरवरी तक कूनो पहुंचने की उम्मीद है।

भारत में प्रजातियों को फिर से लाने के लिए दक्षिण अफ्रीका से भेजे जा रहे चीतों के पिछले साल अक्टूबर में देश पहुंचने की उम्मीद थी, जब एक दक्षिण अफ्रीकी टीम भारत से लौटी थी। लेकिन इसमें देरी हुई क्योंकि अंतर-सरकारी समझौते को अंतिम रूप देने की प्रतीक्षा की जा रही थी। एक अधिकारी के मुताबिक, पिछले साल जुलाई से 12 दक्षिण अफ्रीकी चीते पृथक-वास में हैं और उनके इस महीने कुनो पहुंचने की उम्मीद थी लेकिन ‘‘दक्षिण अफ्रीका में कुछ प्रक्रियाओं में समय लगने के कारण’’ उनके स्थानांतरण में देरी हुई। पिछले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 72वें जन्मदिन पर चीता पुनर्वास कार्यक्रम के तहत पांच मादा और तीन नर चीतों के पहले समूह को नामीबिया से भारत लाया गया और उन्हें कुनो के एक बाड़े में पृथक-वास में रखा गया था।

उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि दक्षिण अफ्रीकी अधिकारियों को जल्द ही जानवरों के हस्तांतरण के लिए वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधी कन्वेंशन (सीआईटीईएस) के तहत एक निर्यात परमिट और एक प्रमाण पत्र प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि भारत ने सभी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया है। वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधीकन्वेंशन (सीआईटीईएस) एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका पालन राष्ट्र तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन करते हैं।

भारत भेजे जाने वाले इन 12 चीतों में से तीन को क्वाजुलु-नताल प्रांत में फिंडा पृथकवास बोमा में और नौ को लिम्पोपो प्रांत में रूइबर्ग पृथकवास बोमा में रखा गया है। उन्हें लेकर विमान जोहानिसबर्ग हवाई अड्डे से उड़ान भरेगा। दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण विभाग ने बृहस्पतिवार को एक बयान में कहा कि एक दशक तक हर साल 12 चीतों को भेजने की योजना है। भारत ने अभी तक इस संबंध में कोई बयान जारी नहीं किया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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