Jaishankar के सीधे हमले से झुँझला गयी Pakistani Army, Asim Munir के बचाव में उतरी पाकिस्तान सरकार

S Jaishankar
ANI

भारत–पाक संबंधों की हकीकत कोई गुप्त रहस्य नहीं है। दशकों से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें चाहे जितना भी लोकतंत्र का नाटक करती रहें, असली सत्ता रावलपिंडी के जनरल मुख्यालय (GHQ) में टिकी रहती है। जयशंकर ने जो कहा वह नया नहीं है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान पर सीधा प्रहार करते हुए कहा है कि भारत के साथ शत्रुता, आतंकवाद और वैमनस्य की जड़ पाकिस्तान की सेना है। हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में बोलते हुए उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत जिन चुनौतियों से जूझता रहा है, चाहे वह आतंकवादी ढांचा हो, प्रशिक्षण शिविर हों या वैचारिक शत्रुता, इन सबका मूल स्रोत पाकिस्तान की सेना है। जयशंकर के शब्दों में, “हमारी अधिकांश समस्याएँ पाकिस्तान की सेना से ही आती हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि भारत को पाकिस्तान के साथ किसी तरह की “हाइफ़नेशन मानसिकता” नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि दोनों देशों की क्षमता, शासन-व्यवस्था और वैश्विक प्रतिष्ठा में जमीन-आसमान का अंतर है। भारत की कूटनीति में स्वतंत्रता और सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने का दृढ़ संदेश देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी देश भारत की विदेशी साझेदारियों पर वीटो की उम्मीद न करे। इसी कार्यक्रम में अमेरिकी व्यापार नीति, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यात्रा और वैश्विक शक्ति-संतुलन पर बात करते हुए जयशंकर ने दोहराया कि भारत की विदेश नीति “किसी को खुश करने” के लिए नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय हितों की रक्षा” के लिए है।

दूसरी ओर, भारत की इन टिप्पणियों पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। इस्लामाबाद ने रविवार को कहा कि उसके सशस्त्र बल “राष्ट्रीय सुरक्षा का स्तंभ” हैं और जयशंकर के बयान “भड़काऊ और बेबुनियाद” हैं। पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने आरोप लगाया कि भारत “दुष्प्रचार अभियान” चला रहा है और पाकिस्तानी सेना किसी भी आक्रमण का “जिम्मेदार और प्रभावी” ढंग से सामना करने में सक्षम है।

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देखा जाये तो भारत–पाक संबंधों की हकीकत कोई गुप्त रहस्य नहीं है। दशकों से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारें चाहे जितना भी लोकतंत्र का नाटक करती रहें, असली सत्ता रावलपिंडी के जनरल मुख्यालय (GHQ) में टिकी रहती है। जयशंकर ने जो कहा वह नया नहीं है। भारत ने जो कहा है उसे दुनिया वर्षों से जानती है लेकिन अक्सर राजनयिक शिष्टाचार की ओट में छिपाती है।

दूसरी ओर, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया भी उतनी ही अनुमानित थी। अपनी सेना को “राष्ट्रीय सुरक्षा का स्तंभ” बताते हुए वही पुरानी रटी-रटाई लाइनें दोहराना। लेकिन असली प्रश्न यह है कि क्या पाकिस्तान की सेना सचमुच सुरक्षा का स्तंभ है या वह स्वयं पाकिस्तान की असुरक्षा और अस्थिरता का सबसे बड़ा उत्पादक है? एक ऐसा सैन्य ढांचा जो आतंकवाद को विदेश नीति का औजार बनाता हो, जो भारत-विरोध को राष्ट्रीय पहचान का आधार बनाए और जो अपने ही देश की आर्थिक बरबादी के बीच बजट का बड़ा हिस्सा खाता रहे, वह पड़ोसी देशों के लिए ही नहीं, अपने नागरिकों के लिए भी खतरा है।

जयशंकर की टिप्पणी पर पाकिस्तान की झुँझलाहट इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि यह तथ्य उनकी सबसे दर्दनाक नस पर चोट करता है कि पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली संस्थान आज विश्व मंच पर विश्वसनीयता संकट का सामना कर रहा है। आतंकवादी संरचनाओं से ऐतिहासिक संबंध, आर्थिक दिवालियापन और आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता ने उसकी छवि को खोखला बना दिया है।

देखा जाये तो भारत ने साफ कह दिया है कि आतंकवाद की जड़ें कहाँ हैं और वह अब आतंक के आकाओं का नाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोहराने से पीछे नहीं हटेगा। इसका असर FATF, IMF वार्ताओं और वैश्विक सुरक्षा विमर्श में पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ाने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जब भारत का शीर्ष राजनयिक सीधे पाकिस्तान की सेना को समस्या की जड़ बताता है तो यह संकेत है कि किसी भी आतंकवादी हमले की स्थिति में भारत की प्रतिक्रिया सीधी और सैन्य-संरचना केंद्रित हो सकती है।

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