ट्रंप और किम ने इतिहास तो रच दिया पर क्या कुछ सकारात्मक परिणाम निकल पाएगा?

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अंकित सिंह । Jul 1 2019 4:04PM

उत्तर कोरिया की आधिकारिक समाचार एजेंसी ‘कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ की मानें तो दोनों नेता कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण के मामले पर नई सिरे से सकारात्मक बातचीत करने को राजी हो गए।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया की सीमा में दाखिल होने के साथ ही एक नया इतिहास रच दिया। उत्तर कोरिया की धरती पर कदम रखने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने हैं डोनाल्ड ट्रंप। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि उनके उत्तर कोरिया में कदम रखने पर कई कोरियाई लोगों की आंखे भर आई थीं। कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन से ट्रंप की यह तीसरी मुलाकात है जो खासी रोचक बताई जा रही है। इससे पहले ट्रम्प और किम के बीच अभी तक दो बार शिखर वार्ता कर चुके हैं। सबसे पहले वे पिछले साल सिंगापुर में मिले थे और इसके बाद दोनों ने फरवरी में हनोई में शिखर वार्ता की। इस तीसरी मुलाकात को ट्रंप और किम जोंग-उन ने ‘‘ऐतिहासिक’’ और ‘‘अद्भुत’’ बताया है। उत्तर कोरिया की आधिकारिक समाचार एजेंसी ‘कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ की मानें तो दोनों नेता कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण के मामले पर नई सिरे से सकारात्मक बातचीत करने को राजी हो गए।

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आखिर विवाद क्या है? 

अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच का विवाद काफी पुराना है। दोनों देशों के बीच 1945 से विवाद चलता आ रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद कोरिया को उससे अलग कर दिया। रूस और चीन ने मिलकर एक उसे कम्युनिस्ट राष्ट्र में परिवर्तित कर दिया और नाम दिया उत्तर कोरिया। बाद में कोरिया दो हिस्सो में बंट गया और उत्तर कोरिया पर किम II सुंग का शासन रहा जिसे सोवियत संघ का संरक्षण मिला हुआ था तो दक्षिण कोरिया को अमेरिका का साथ था। बाद में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया। इस युद्ध में उत्तर कोरिया की जीत हुई। तभी उत्तर कोरिया को बड़ा झटका देते हुए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्‍ताव पारित करवा लिया जिसके बाद अमेरिका के कुछ सहयोगी देशों की सेना दक्षिण कोरिया की मदद के लिए पहुंच गई। परिणामस्वरूप यह हुआ कि उत्तर कोरिया जीती हुई बाजी हार गया। इस दौरान उत्तर कोरिया के सबसे अधिक लोग मारे गए। इसी दौरान अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर कुछ प्रतिबंध भी लगा दिए। तब से अमेरिका उत्तर कोरिया को कांटे की तरह चुभ रहा है। तभी से अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच तनातनी जारी है। 

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हाल का विवाद

उत्तर कोरिया लगातार अमेरिका को नई चुनौती देते हुए अपने परमाणु हथियार में वृद्धि करता रहा। इस दौरान 1994 में दोनों देशों के बीच परमाणु कार्यक्रम रद्द करने पर संधि भी हुई पर उत्तर कोरिया इसका लगातार उल्लंघन करता रहा। 1998 में उत्तर कोरिया ने अपनी पहली लंबी रेंज की मिसाइल का परिक्षण किया। UN के परमाणु निरस्त्रीकरण संधि पर सहमति के बावजूद उत्तर कोरिया एक के बाद एक परमाणु परिक्षण करता रहा। दोनों देशों के बीच राष्ट्रपति जार्ज बुश के कार्यकाल के दौरान रिश्तों में काफी खटास देखने को मिला। किम जोंग II की मुत्यु के बाद किम जोंग उन के हाथ में सत्ता आई और उत्तर कोरिया अमेरिका को चेतावनी देते हुए परीक्षण करता रहा। ट्रंप ने सत्ता में आते ही उत्तर कोरिया को चेतावनी देते हुए कहा कि वह धमकी देना बंद कर दे। हालांकि धीरे-धीरे ट्रंप प्रसाशन उत्तर कोरिया से संपर्क साधने की कोशिश करता रहा। 

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क्या है परमाणु निरस्त्रीकरण संधि?

परमाणु निरस्‍त्रीकरण संधि का उद्देश्‍य परमाणु हथियारों और इसके तकनीक के प्रसार को रोकना है। देशों के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों में सहयोग को आगे बढ़ाना और परमाणु निरस्‍त्रीकरण का लक्ष्‍य हासिल करना भी इस संधि का एक बड़ा उद्देश्य है। 1 जुलाई, 1968 को अमल में आई इस संधि में अब तक 191 देश शामिल हो चुके हैं। इन देशों में परमाणु हथियार संपन्‍न देश भी शामिल हैं। यह संधि 1970 में प्रभाव में आई और मई 1995 में इसे विस्‍तार दिया गया। 2020 में परमाणु निरस्‍त्रीकरण संधि पर ताजा समीक्षा की जानी है। 

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ट्रंप-किम की मुलाकात में अब तक क्या हुआ

एक-दूसरे का अपमान करने के लिए निजी टिप्पणियां करने तक पहुंच चुके डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन के बीच अब तक हुए मुलाकातों से कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। बातचीत की शुरूआत अमरीका ने इस शर्त के साथ की थी कि उत्तर कोरिया को अपने सारे परमाणु कार्यक्रम बंद करने होंगे। पूर्णतः शांति स्थापित करने के लिए दोनों दोशों के नेता मिले तो जरूर है पर नतीजा सकारात्मक नहीं रहा। पिछली दो मुलाकातों को बेनतीजा माना गया और तीसरे से बहुत ज्यादा उम्मीद थी। ऐसे में यह देखना होगा कि उत्तर कोरिया अमेरिका के दबाव झुकता है या फिर अपने परमाणु कार्यक्रमों को जारी रखता है। 

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