विपक्ष और विदेशी राजदूतों की आलोचना के बीच श्रीलंकाई सरकार ने आपातकाल लगाने का किया बचाव

Sri Lanka
Google Creative Commons.

सरकारी सूचना विभाग ने शनिवार को एक बयान में कहा, “श्रीलंका वर्तमान में स्वतंत्रता के बाद सबसे खराब आर्थिक संकट और राजनीतिकअस्थिरता का सामना कर रहा है,जिसकाकारण कई लघु और दीर्घकालिक कारक हैं।आम धारणा यह है कि इस गंभीरस्थिति से निपटने के लिये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने के स्तर पर कई गहन सुधार किए जाने की जरूरत है।”

कोलंबो|  श्रीलंकाई सरकार ने देश में आपातकाल लागू करने के फैसले का बचाव करते हुए शनिवार को कहा कि अभूतपूर्व आर्थिक संकट से निपटने के लिये यह जरूरी था। हालांकि इस फैसले को लेकर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को विपक्ष और विदेशी राजदूतों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है जिनका कहना है कि इससे सुरक्षा बलों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कार्रवाई का अधिकार मिल जाएगा।

राष्ट्रपति ने शुक्रवार को कैबिनेट की एक विशेष बैठक में शुक्रवार आधी रात से आपातकाल लागू होने की घोषणा की थी। महज एक महीने में यह दूसरा मौका है जब देश में आपातकाल घोषित किया गया है।

राजपक्षे ने इससे पहले अपने निजी आवास के सामने लोगों के बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के बाद एक अप्रैल को आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। उन्होंने हालांकि पांच अप्रैल को इसे हटा लिया था। यह घोषणा ऐसे समय हुई जब छात्र कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार रात से संसद का घेराव कर रखा है।

छात्रों ने आवश्यक वस्तुओं की कमी और मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने में असमर्थता के लिए सरकार के इस्तीफे की मांग करते हुए परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार को बंद कर दिया। सरकारी सूचना विभाग ने शनिवार को एक बयान में कहा, “श्रीलंका वर्तमान में स्वतंत्रता के बाद सबसे खराब आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है, जिसका कारण कई लघु और दीर्घकालिक कारक हैं। आम धारणा यह है कि इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने के स्तर पर कई गहन सुधार किए जाने की जरूरत है।” बयान में कहा गया, “इसमें प्राथमिकता में यथासंभव कम से कम समय में विदेशी मुद्रा की कमी का प्रबंधन और आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की आपूर्ति को बहाल करना है।”

सरकार ने कहा कि वित्तीय सहायता प्राप्त करने और बकाया कर्ज के पुनर्गठन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सहित बहु-पक्षीय संस्थानों के साथ चर्चा चल रही है।

आपातकाल की जरूरत की वजह बताते हुए बयान में कहा गया, “समाज में राजनीतिक स्थिरता और शांति दो प्रमुख शर्तें हैं जिनकी मांग ऐसे कार्यक्रमों की सफलता के लिए आत्मविश्वास और ताकत बनाने के वास्ते की जाती है।” श्रीलंका 1948 में ब्रिटिश राज से आजाद होने के बाद से अब तक के सबसे भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। संकट आंशिक रूप से विदेशी मुद्रा की कमी के कारण हुआ है।

विदेशी मुद्रा की कमी के कारण देश मुख्य खाद्य पदार्थों और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता है। यही वजह है कि इन वस्तुओं की भारी कमी है और कीमतें काफी ज्यादा। इस्तीफे के लिए बढ़ते दबाव के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ दिया था। चल रही बातचीत पर टिप्पणी करते हुए, आईएमएफ के कोलंबो मिशन के प्रमुख मासाहिरो नोज़ाकी ने कहा,“आईएमएफ टीम एक डिजिटल मिशन में 9 मई से 23 मई तक श्रीलंकाई अधिकारियों की आर्थिक टीम के साथ संपर्क करेगी और अधिकारियों के आईएमएफ समर्थित कार्यक्रम जारी रखने के अनुरोध पर चर्चा जारी रखेगी।

आईएमएफ के आकलन के मुताबिक श्रीलंका का कर्ज टिकाऊ नहीं है। इसलिए, आईएमएफ वित्तपोषण के लिए एक त्वरित वित्तीय व्यवस्था के माध्यम से अनुमोदन के लिए पर्याप्त आश्वासन की आवश्यकता होगी कि ऋण स्थिरता को बहाल किया जाएगा।

श्रीलंका को अपने बढ़ते आर्थिक संकट से निपटने के लिए कम से कम चार अरब अमरीकी डॉलर की आवश्यकता है, और विश्व बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ-साथ चीन व जापान जैसे देशों के साथ वित्तीय सहायता के लिए उसकी बातचीत चल रही है।

जाफना जिले के लिए तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) के सांसद एम ए सुमंथिरन ने श्रीलंका की मौजूदा आर्थिक संकट के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे को दोषी ठहराया और कहा कि टीएनए इस बात का पक्षधर है कि मौजूदा शासकों को सरकार पूरी तरह से पद छोड़ देनी चाहिए और इसे विपक्ष को सौंप देना चाहिए। इस सवाल के जवाब में कि भारत और अमेरिका कैसे श्रीलंका की मदद कर सकते हैं, सुमंथिरन ने कहा, “उन्हें सरकार को पद छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

भारत, अमेरिका और सभी मित्र देशों को सत्ता में बैठे लोगों को पद छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मुझे ऐसा हुए बिना देश के लिए कोई बदलाव नजर नहीं आता।

आपातकाल की वर्तमान स्थिति पुलिस और सुरक्षा बलों को लोगों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने की व्यापक शक्ति देती है। देश के मानवाधिकार निकाय, वकीलों के मुख्य निकाय, विपक्ष और यहां तक कि राजनयिक समुदाय के कुछ सदस्यों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की। श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग ने कहा कि वह आपातकाल लागू होने से बेहद चिंतित है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा है और अधिकारियों ने शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता के अधिकार को गैरकानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़