Prabhasakshi NewsRoom: Trump के पर कतरे गये तो India-Pak के बीच फिर शुरू हो सकता है युद्ध, US Court में अमेरिकी अधिकारियों ने दी दलील

Donald Trump
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हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप के दावे का समर्थन राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल के चार प्रमुख सदस्यों— विदेश मंत्री मार्को रूबियो, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट, वाणिज्य मंत्री हावर्ड लटनिक और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ली ग्रियर द्वारा हस्ताक्षरित घोषणाओं का हिस्सा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि उनकी वजह से ही भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम हुआ। ट्रंप के इस दावे को खारिज करते हुए भारत ने बार-बार कहा कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से फैसला लिया और संघर्षविराम कराने में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। अमेरिका में भी तमाम नेताओं और पूर्व अधिकारियों ने भी जब यह कहना शुरू कर दिया कि ट्रंप को हर चीज का श्रेय लेने की आदत है इसीलिए वह ऐसा कह रहे हैं तो ट्रंप अकेले पड़ गये। इस स्थिति को देख ट्रंप प्रशासन के अधिकारी राष्ट्रपति के बचाव में खड़े हो गये हैं। हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों का बचाव करने के दौरान अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों ने अमेरिकी अदालत में कहा कि राष्ट्रपति की व्यापारिक शक्तियों पर किसी भी प्रकार की रोक लगाने के प्रयास से बुरा असर पड़ सकता है। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि इस बुरे असर के परिणामस्वरूप अन्य बातों के अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच एक और संघर्ष पनप सकता है जिससे लाखों लोगों की जान को खतरा हो सकता है।

अमेरिकी अधिकारियों ने ट्रंप के उस दावे को दोहराते हुए अदालत से कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की थी। अधिकारियों ने यह भी कहा कि एक संघर्षविराम तब हुआ जब राष्ट्रपति ने हस्तक्षेप किया और दोनों देशों को अमेरिका में व्यापारिक पहुँच की पेशकश की। हम आपको याद दिला दें कि खुद ट्रंप ने पहले कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार रोकने की धमकी दी थी ताकि वे संघर्षविराम के लिए सहमत हों।

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हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप के दावे का समर्थन राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल के चार प्रमुख सदस्यों— विदेश मंत्री मार्को रूबियो, वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट, वाणिज्य मंत्री हावर्ड लटनिक और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ली ग्रियर द्वारा हस्ताक्षरित घोषणाओं का हिस्सा है, जो अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय (US Court of International Trade) में दायर की गईं। यह अदालत "लिबरेशन डे टैरिफ्स" को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। न्यूयॉर्क स्थित इस अदालत से अगले कुछ हफ्तों में निर्णय की अपेक्षा की जा रही है। हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति की विदेशी देशों पर शुल्क लगाने के लिए अमेरिकी कानूनों को लागू करने की शक्तियों को कमज़ोर करने के किसी भी प्रयास के विरुद्ध दलील देते हुए वाणिज्य मंत्री हावर्ड लटनिक ने भारत और पाकिस्तान जैसे "परमाणु शक्तियों" के बीच सैन्य संघर्ष और उसके बाद हुए संघर्षविराम का उदाहरण दिया।

वाणिज्य मंत्री ने कहा, "यह संघर्षविराम केवल तब संभव हो पाया जब राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्तक्षेप किया और दोनों देशों को अमेरिका के साथ व्यापारिक पहुँच की पेशकश की ताकि एक पूर्ण युद्ध को रोका जा सके।'' उन्होंने कहा कि इस मामले में राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित करने वाला कोई भी प्रतिकूल निर्णय भारत और पाकिस्तान को ट्रंप के प्रस्ताव की वैधता पर संदेह करने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और लाखों लोगों के जीवन को खतरा हो सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसा निर्णय महत्वपूर्ण व्यापार समझौतों को खतरे में डाल देगा और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के इस समय में चीन की आक्रामकता को भी बढ़ावा देगा।

वाणिज्य मंत्री लटनिक ने यह भी बताया कि अमेरिका ट्रंप द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के चलते चीन के साथ 90-दिन का समझौता करने में सक्षम रहा, जिससे अमेरिकी निर्यात पर चीनी शुल्कों में कमी आई। उन्होंने कहा कि भारत भी वर्तमान में अमेरिका के साथ एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के लिए बातचीत कर रहा है ताकि अमेरिका के व्यापार घाटे को कम किया जा सके। वहीं विदेश मंत्री रूबियो ने अपनी घोषणा में तर्क दिया कि कोई भी प्रतिकूल निर्णय अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर और अपूरणीय नुकसान पहुँचा सकता है, साथ ही वैश्विक स्तर पर अमेरिका के व्यापक रणनीतिक हितों को भी खतरे में डाल सकता है। उनके अनुसार, यदि राष्ट्रपति की अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियाँ अधिनियम (IEEPA) के तहत शुल्क लगाने की शक्ति को सीमित किया गया, तो इससे विदेशी शक्तियों को अमेरिका पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने का प्रोत्साहन मिल सकता है। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा IEEPA के अंतर्गत अतिरिक्त शुल्कों की धमकी ही वह कारण थी, जिससे अन्य देश प्रतिक्रिया देने से पीछे हटे।

हम आपको यह भी बता दें कि अभी पिछले सप्ताह ही भारतीय विदेश मंत्री ने विदेश मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों के साथ बैठक के दौरान ट्रंप के सभी दावों को खारिज करते हुए कहा था कि अमेरिकी नेताओं समेत खाड़ी देशों के कुछ नेताओं ने दोनों देशों से बात की थी, लेकिन 10 मई को हुआ संघर्षविराम सीधे भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच बातचीत का परिणाम था।

बहरहाल, अमेरिकी प्रशासन की ओर से अदालत में कही गयी बातों को भारत में विपक्षी दल कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि वह ट्रंप के दावों पर खुद चुप्पी तोड़ें। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि देश ट्रंप के दावों की सच्चाई जानना चाहता है।

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