क्या है नेट जीरो उत्सर्जन, जिसके टारगेट से भारत ने खुद को दूर रखने का किया फैसला

Net Zero Emission
अभिनय आकाश । Oct 29 2021 1:13PM

सीओपी26 सम्मेलन से पहले ही भारत ने जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखने से इनकार कर दिया है। भारत की ओर से कहा गया है कि दुनिया को उत्सर्जन कम करने के रास्ते खोजने चाहिए ताकि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के खतरे को टाला जा सके।

स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में इस महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र वैश्विक जलवायु सम्मेलन या कान्फ्रेंस ऑफ पार्टी 26 (सीओपी26) काआयोजन होने जा रहा है, जिसके लिये दुनियाभर के आमंत्रित नेता और पर्यावरण से जुड़े लोग तैयारियों में जुटे हुए हैं। सीओपी26 का मुख्य एजेंडा नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य कैसे हासिल किया जाए। हालांकि सम्मेलन से पहले ही भारत ने जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखने से इनकार कर दिया है। भारत की ओर से कहा गया है कि दुनिया को उत्सर्जन कम करने के रास्ते खोजने चाहिए ताकि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के खतरे को टाला जा सके। चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। ग्लासगो में अगले सप्ताह के जलवायु सम्मेल में भारत पर इसे कुछ दशकों में जीरो करने का ऐलान करने का दबाव है।

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 नेट जीरो' उत्सर्जन क्या है 

क्लाइमेट चेंज के लिए क्लोरो-फ्लोर कॉर्बन, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार है। 'नेट जीरो' जिसे कॉर्बन न्यूट्रैलिटी भी कहा जाता है, इसका मतलब यह नहीं है कि कोई देश ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बिल्कुल ही न करे यानी एकदम जीरो कर दे। इसका मतलब यह है कि कोई देश वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का जितना उत्सर्जन कर रहा है, उतना ही उसे सोख और हटा भी रहा है यानी वातावरण में वह देश ग्रीन हाउस गैसों को न बढ़ा रहा हो।

नेट जीरो की घोषणा करना जलवायु संकट का समाधान नहीं

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण सचिव आरपी गुप्ता ने संवाददाताओं से कहा कि नेट जीरो की घोषणा करना जलवायु संकट का समाधान नहीं है। यह अधिक महत्वपूर्ण है कि आप जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने से पहले वातावरण में कितना कार्बन पहुंचा रहे हैं। गुप्ता ने भारत सरकार की गणना का हवाला देते हुए कहा कि अब और सदी के मध्य तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने वातावरण में 92 गीगाटन कार्बन और यूरोपीय संघ 62 गीगाटन छोड़ेगा। बता दें कि भारत ने पेरिस समझौते में उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 2030 तक GDP के 33 से 35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा था और 2016 तक उसने 24 प्रतिशत कम कर लिया था।

बिना ठोस कदमों के इन लक्ष्यों के कोई मायने नहीं 

संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन जीरो करने का लक्ष्य तिथि निर्धारित किया। यानी इस बिंदु तक ये देश न केवल ग्रीनहाउस गैसों की एक मात्रा का उत्सर्जन करेंगे बल्कि जितने  जंगलों, फसलों, मिट्टी और कार्बन का असर कम करने वाली टेक्नोलॉजी सोख सकेंगी। चीन और सऊदी अरब ने इसके लिए 2060 का लक्ष्य रखा है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि बिना ठोस कदमों के इन लक्ष्यों के कोई मायने नहीं हैं।

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