इधर India ने सिंधु जल स्थगित की, उधर Kunar River पर बाँध बना कर पानी रोकेगा Taliban, एक एक बूंद के लिए तरसेगा Pakistan

Mawlawi Amir Khan Muttaqi
ANI

हाल के दिनों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सुरक्षा तनाव लगातार बढ़ता रहा है। दुरंड लाइन पर 2,640 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अक्टूबर 11 को हुई हिंसक झड़पों में दोनों पक्षों ने भारी हथियारों और टैंकों का इस्तेमाल किया।

जल संकट केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि अब राजनीतिक और सामरिक हथियार भी बन चुका है। जैसे भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर नियंत्रण किया उसी तरह अब तालिबान शासित अफगानिस्तान भी अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। हम आपको बता दें कि तालिबान सरकार ने कुनर नदी पर एक विशाल बाँध के निर्माण का आदेश दिया है, जिसका उद्देश्य सीधे तौर पर पाकिस्तान की जल आपूर्ति को सीमित करना है। यह कदम न केवल क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष का हिस्सा है, बल्कि पाकिस्तान के सामने एक और गंभीर संकट खड़ा कर रहा है।

हाल के दिनों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सुरक्षा तनाव लगातार बढ़ता रहा है। दुरंड लाइन पर 2,640 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अक्टूबर 11 को हुई हिंसक झड़पों में दोनों पक्षों ने भारी हथियारों और टैंकों का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान द्वारा काबुल और पाक्तिका प्रांत में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) समूहों के खिलाफ हवाई और जमीनी कार्रवाई ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया। परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों को भारी हताहतियों का सामना करना पड़ा। ऐसे समय में तालिबान का कुनर नदी पर बाँध निर्माण का आदेश स्पष्ट संदेश देता है: "पानी की हर बूंद का नियंत्रण अब हमारे हाथ में है।"

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देखा जाये तो इस कदम का पाकिस्तान के लिए रणनीतिक महत्व बड़ा है। लंबे समय से पाकिस्तान के लिए जल सुरक्षा एक गंभीर चुनौती रही है। भारत ने हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में सिंधु जल संधि को निलंबित कर पाकिस्तान पर दबाव डाला। 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित इस संधि के तहत सिंधु नदी और उसकी छह मुख्य सहायक नदियों के पानी का वितरण तय किया गया था। अब तालिबान का कुनर बाँध पाकिस्तान के लिए और जटिलता पैदा करेगा।

देखा जाये तो तालिबान के इस फैसले के प्रभाव कई स्तरों पर दिखते हैं। पहला, पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति पर तत्काल दबाव। कुनर नदी से आने वाला पानी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और अन्य उत्तरी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। बाँध निर्माण से पानी की मात्रा कम होगी, जिससे सिंचाई और पीने के पानी की समस्या बढ़ सकती है। दूसरा- यह कदम पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन सकता है। पानी पर नियंत्रण किसी भी राष्ट्र के लिए सामरिक शक्ति का पर्याय है। तीसरा- राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव है। दरअसल तालिबान का यह निर्णय पाकिस्तान के सामने दबाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। पाकिस्तान पर यह साफ संदेश जाता है कि न केवल सीमा पर बल्कि जल संसाधनों में भी उसे तालिबान के फैसलों का पालन करना होगा। यह भारत और अफगानिस्तान के संयुक्त रणनीतिक इशारों के साथ भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है, जिससे पाकिस्तान को जल और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर सतर्क रहना पड़ेगा।

इस पूरे परिदृश्य में स्पष्ट हो जाता है कि पानी अब केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और सामरिक हथियार बन चुका है। तालिबान का कुनर बाँध न केवल पाकिस्तान की जल नीति को चुनौती देगा, बल्कि उसे हाइड्रोलॉजिकल और आर्थिक संकट में भी डाल सकता है। यह पानी की हर बूंद के लिए पाकिस्तान को तरसने पर मजबूर करेगा।

देखा जाये तो, तालिबान के इस फैसले का संदेश एकदम स्पष्ट है: क्षेत्रीय शक्ति संतुलन केवल हथियारों और सैन्य बल से नहीं, बल्कि जल संसाधनों पर नियंत्रण से भी स्थापित किया जा सकता है। पाकिस्तान के लिए अब चुनौती यह है कि वह इस जल संकट और सीमा संघर्ष के बीच संतुलन बनाए रखे। दूसरी ओर, भारत और तालिबान की रणनीतियाँ यह संकेत देती हैं कि दक्षिण एशिया में पानी का खेल अब राजनीतिक और सामरिक रणभूमि का हिस्सा बन गया है।

बहरहाल, पानी की बूंद-बूंद की लड़ाई में तालिबान ने पाकिस्तान के लिए नया संकट पैदा कर दिया है। कुनर नदी पर बाँध का आदेश, सीमा पर हिंसा और भारत के जल कदम मिलकर पाकिस्तान को रणनीतिक और जल संकट दोनों मोर्चों पर चुनौती दे रहे हैं। इस नई स्थिति में पाकिस्तान के लिए हर बूंद की कीमत बढ़ने वाली है और तालिबान का यह साहसिक निर्णय क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा की दिशा बदलने की क्षमता रखता है।

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