Vishwakhabram: अब Taliban जैसा शासन चाहता है Bangladesh! पड़ोसी देश में लोकतंत्र और हिंदुओं पर बड़ा खतरा मंडराया

अमेरिका स्थित बांग्लादेशी पत्रकार और 'ठिकाना न्यूज़' के संपादक खालिद मुहीउद्दीन को दिए गए एक साक्षात्कार में मुफ्ती फैज़ुल करीम ने कहा कि अगर हम चुनाव जीतकर सत्ता में आते हैं तो हम शरीयत कानून लागू करेंगे और शासन प्रणाली अफगानिस्तान जैसे होगी।
बांग्लादेश अब कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों की गिरफ्त में पूरी तरह आ चुका है। बांग्लादेश के शासन से लेकर प्रशासन तक के हर फैसले से स्पष्ट हो रहा है कि इस्लामिक कानूनों का ही वहां पालन हो रहा है और लोकतंत्र तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द सिर्फ सजावट के लिए रह गये हैं। वैसे इस्लामिक कानूनों का पालन तक तो फिर भी ठीक था लेकिन अब बांग्लादेश अफगानिस्तान की राह पर बढ़ना चाह रहा है जो बड़े खतरे का संकेत है। हम आपको बता दें कि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की ताजा कार्रवाई के तहत जमात-चर मोंई (Jamaat-e-Char Monai) नामक संगठन के शीर्ष नेता मुफ्ती सैयद मोहम्मद फैज़ुल करीम ने खुला ऐलान कर दिया है कि उनका संगठन बांग्लादेश को तालिबान-शासित अफगानिस्तान की तर्ज़ पर इस्लामी राज्य में बदलना चाहता है। यह बयान न केवल बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता पर हमला है, बल्कि दक्षिण एशिया में बढ़ते कट्टरपंथी उभार का भी संकेत देता है।
हम आपको बता दें कि 1 जुलाई को अमेरिका स्थित बांग्लादेशी पत्रकार और 'ठिकाना न्यूज़' के संपादक खालिद मुहीउद्दीन को दिए गए एक साक्षात्कार में मुफ्ती फैज़ुल करीम ने कहा कि अगर हम चुनाव जीतकर सत्ता में आते हैं तो हम शरीयत कानून लागू करेंगे और शासन प्रणाली अफगानिस्तान जैसे होगी। उनका यह बयान सीधे तौर पर बांग्लादेश की मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देता है। हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान की तालिबानी शासन व्यवस्था को दुनिया भर में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और असहमति रखने वालों के दमन के लिए जाना जाता है। उस मॉडल का बांग्लादेश में प्रचार करना केवल धार्मिक कट्टरता को वैधता प्रदान करना है।
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अपने कट्टर एजेंडे को नरम बनाने के लिए करीम ने यह भी कहा कि शरीयत के अंतर्गत हिंदू अल्पसंख्यकों को अधिकार दिए जाएंगे। लेकिन यह कथन न केवल अस्पष्ट है, बल्कि गहरे संदेह के घेरे में भी आता है, क्योंकि शरीयत कानून की मूल संरचना धर्मनिरपेक्षता और समान नागरिक अधिकारों के बिल्कुल विपरीत है। हम आपको यह भी बता दें कि बांग्लादेश के इतिहास में ऐसे प्रयास पहले भी देखे गए हैं जब अल्पसंख्यकों को 'धार्मिक सहिष्णुता' के नाम पर दबाव का सामना करना पड़ा।
हम आपको बता दें कि बांग्लादेश ने 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी इस विचार के तहत पाई थी कि वह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा, जहां सभी धर्मों को समान स्वतंत्रता मिलेगी। लेकिन जमात-चर मोंई जैसे संगठनों की बयानबाज़ी न केवल इस बुनियादी विचार को झुठलाती है, बल्कि इस्लामी कट्टरता को लोकतांत्रिक माध्यमों से सत्ता में लाने का प्रयास भी करती है।
देखा जाये तो दक्षिण एशिया पहले ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में इस्लामिक कट्टरपंथ का दंश झेल रहा है। अब यदि बांग्लादेश में भी यही वायरस फैलता है, तो यह न केवल क्षेत्रीय शांति को खतरे में डालेगा, बल्कि भारत सहित पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक सुरक्षा चुनौती बन जाएगा। भारत के साथ 4,096 किमी लंबी सीमा साझा करने वाला बांग्लादेश यदि तालिबानी राह पर बढ़ता है, तो इससे सीमा पार आतंकवाद, शरणार्थी संकट और सांप्रदायिक तनाव जैसी कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
बहरहाल, जमात-चर मोंई जैसे संगठनों का राजनीतिक रूप से सक्रिय होना और खुलेआम तालिबानी शासन की वकालत करना एक गहरी चिंता का विषय है। यह केवल बांग्लादेश के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए एक चुनौती है। बांग्लादेश की जनता और वहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं को इस वैचारिक आक्रमण के प्रति सचेत रहना होगा और धर्मनिरपेक्षता की उस नींव की रक्षा करनी होगी जिस पर उनके देश का निर्माण हुआ था।
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